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अनेकान्त
लगे कर्म शत्रुओं का क्षय करने में सक्षम हो जाता है जो मूल्यांकन करने से उन्नति के उच्च शिखरों का स्पर्श क्षण क्षण के मूल्य को पहचानने में निपुण होता है ।" सुनिश्चित है। उठो, समय को पहचानो। जीवन का यह समय काम दुघा धेनु है, इसकी सेवा से मन चाहा प्रत्येक क्षण मंगलमय है, उसे क्रियाबहुल कर सुखी जीवन वरदान मिल सकता है। एक-एक ईंट रखने से महान् की प्राधार शिला रक्खो। भवन का निर्माण यदि सम्भव है तो एक एक क्षण का
नरभव की विफलता
सन्त कुमुदचन्द
मैं तो नर भव वादि गमायो॥ न कियो तप जप व्रत विधि सुन्दर, करम भलो न कमायो ॥१॥ विकट लोभते कफ्ट कूट करि, निपट विर्ष लपटायो। विटल कुटिज शठ संगत बैठो, साधु निकट विघटायो । कृपण भयो कछु दान न दीनी, विन विन बाम मिलायो। जब जोवन जंजाल पच्चो तब, परतिरिया चित लायो ॥३॥ अंत समै कोउ संग न पावत, झूठहिं पाप लगायो। 'कुमुवचन्द्र' कहे चक परी मोह, प्रभुपद जस नहि गायो ॥४॥
'अनेकान्त' के स्वामित्व तथा अन्य व्योरे के विषय में प्रकाशन का स्थान
वीर-सेवा-मन्दिर भवन, २१ दरियागंज, दिल्ली प्रकाशन की अवधि
द्विमासिक मुद्रक का नाम
प्रेमचन्द राष्ट्रीयता
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२१, दरियागज, दिल्ली प्रकाशक का नाम
प्रेमचन्द, मन्त्री वीर-सेवा-मन्दिर राष्ट्रीयता
भारतीय
२१, दरियागंज, दिल्ली सम्पादक का नाम
डा. प्रा. ने. उपाध्याये एम. ए. डी. लिट्, कोल्हापुर डा०प्रेमसागर, बडीत
यशपाल जैन, दिल्ली गष्ट्रीयता
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मार्फत वीर-सेवा-मन्दिर २१, दरियागंज, दिल्ली स्वामिनी संस्था
वीर-सेवा-मन्दिर २१, दरियागंज, दिल्ली मैं, प्रेमचन्द घोषित करता है कि उपरोक्त विवरण मेरी जानकारी और विश्वास के अनुसार सही है। १५-२-६७
ब.प्रेमचन्द (प्रेमचन्द)
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