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पतियान दाई : एक गुप्तकालीन जैन मन्दिर
सागर ने इसे रामदास और पद्मावती पढ़ कर यह अनुमान का विग्रह होकर बहुव्रीहि समास होता है। प्रतः पतियाम' लगाया था कि मूर्ति का प्रतिष्ठापक कोई रामदास नामक शब्द अपभ्रश का या तव शब्द नही; बल्कि मूल या व्यक्ति था जिसका निवासस्थान पद्मावती रहा होगा। तत्सम ही शब्द है। और 'दाई' शब्द 'धात्री', 'दायी' मेरे अनुमान से रामदास की पत्नी का नाम पद्मावती या 'देवी' मे से किमी का भी अपभ्रंश या तद्भव रूप हो होना चाहिए, जिसका बनवाया यह मन्दिर पद्मावती मकता है। मन्दिर के नाम से विख्यात हया होगा तथा यही नाम छोड़ कर शेष सभी ब्राह्मणो के घर जल गये। बेघर कालान्तर में प्रबोध ग्रामीणों द्वाग "पतियान दाई" हो
गह्मणो ने इसे अग्निला का महत्त्व माना जिनके गया होगा३४ । इस अनुमान में प्रथम आपत्ति तो यह है
प्राग्रह मे मोमगर्मा उमे मगम्मान लेने चला पर कि वह एक अस्पष्ट लेख और उसके अनिश्चित पाठ पर
अग्निना ने उसे आता देखा तो समझी कि यह मुझे प्राधारित है, और दूमगे आपत्ति यह है कि पद्मावनी अधिक कष्ट देगा। अत वह अपने पुत्रो के साथ शब्द का अपभ्रंश प या मुग्वसुख के लिए गढ़ा गया रूप पर्वत की चोटी मे कूद कर मर गई और तीर्थर "पदमावई" या 'पउमावई' हो सकता है, 'पतियान' या ।
नेमिनाथ की यक्षी हुई। उम यक्षी का नाम पाम्रादेवी 'पतियानदाई' नही।
या अम्बिका हुमा, क्योंकि आम्रवृक्ष से उसका एक इम प्रतिमा का वास्तविक और मौलिक नाम पनि
विशेष प्रकार का नाता जुड़ चुका था, इसीलिए यान दाई' ही है। इसमें पतियान' शब्द मे पति (मिह के उमकी प्रतिमा मे उसके ऊपर आम का वृक्ष और रूप में है) यान (वाहन) जिसका ऐमी३५, इस प्रकार
उसके एक हाथ में पाम का गुच्छा दिखाया जाता है। ३४. अनेकान्त, (अगस्त '६३), वर्ष १६, किरण ३ पृ.
वह अपने एक पुत्र को गोद मे और दूसरे को साथ १०३ ।
में लेकर पर्वत से कूदी थी इसीलिए उसकी प्रतिमा ३५. इस प्रतिमा-फरक में अनेक प्रतिमाए हैं जिनमे में एक बालक उपकी गोद मे और एक बालक उसके
विशालतम और मुख्यतम है अम्बिका की। यह देवी पात्र में दिखाया जाता है। उसे मरी हुई देख कर अपने पूर्व जन्म में एक ब्राह्मणी थी और उसका उमका पति सोमगर्मा भी व्याकुल होकर मर गया वाहन सिंह अपने पूर्व जन्म में उसका पति था। पौर सिह बना और उनके वाहन के रूप मे उसकी इसकी कथा अत्यन्त मार्मिक और मनोरंजक है। सेवा करने लगा। इसीलिए अम्बिका की प्रतिमा में बाइसवे तीर्थकर नेमिनाथ के समय गिरिनगर में एक वाहन (यान) के रूप में सिंह दिवाया जाता है। मोमशर्मा ब्राह्मण रहता था। उसने पितृश्राद्ध के यह कथा कुछ-कुछ भिन्न रूपों में श्वेताम्बर और ममय ब्राह्मणों को निमन्त्रित किया परन्तु उमकी दिगम्बर ग्रन्थों में उपलब्ध है। देखिएपत्नी अग्निला ने ब्राह्मणों से पूर्व ही एक जैन मुनि (१) पुण्याथव कथाकोप में यक्षी कथा, को माहार करा दिया जिस पर क्रुद्ध होकर ब्राह्मण (२) वादिचन्द्र का अम्बिका कथासार, भोजन किये बिना ही चले गये। इस पर भी क्रुद्ध
(३) प्रभावक चरित में विजयसिंह मूरिचरित, होकर सोमशर्मा ने अग्निला को घर से निकाल दिया (४) पुरातन प्रबन्ध संग्रह में देव्या. प्रबन्ध पौर
और वह अपने पुत्रों शुभंकर और प्रभंकर के साथ (५) अम्बिका से संबन्धित विभिन्न लेखों के लिए देखिए ऊर्जयन्त पर्वत पर रहने लगी। उसके पुत्र भूग्व से टिप्पणी ४२ तथा व्याकुल हुए तो उसके पुण्य प्रभाव से एक आम का (६) अम्बिका की प्रतिमा के लक्षणों के लिए देखिए वृक्ष बेमौसम ही पुष्जित-फलित हो उठा। उसने उन टिप्पणी ४० तथा फलों से अपने पुत्रों की भूख शान्त की। उधर गिरि- (७) अम्बिका-प्रतिमानों के विभिन्न रूपों के लिए नगर में, संयोगवश प्राग लगी और अग्निला का घर देखिए टिप्पणी ४१।