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पतियान दाई एक गुप्तकालीन जैन मन्दिर
गोपीलाल अमर पतौरा ग्राम
महाराज सर्वनाथ के सं० १९७° और २१४ 10 के दो११ मध्यप्रदेश में, सतनासे दक्षिणपूर्व में लगभग १० मील कांस्य-अभिलेखों में पृष्ठपुरिका देवी का नाम पाया है. और उचहरा से उत्तर-पश्चिम में लगभग १० मील पर इससे भी सर कनिंघम के मत की पुष्टि होती है जैसाकि पतौरा नाम का एक साधारण ग्राम है। प्राचीन पृष्टपुर आगे कहा जाएगा,१२ सर कनिंघम प्रस्तुत मन्दिरमें प्राप्त माज पतौरा हो गया प्रतीत होता है। समुद्रगुप्त की प्रयाग मूर्ति को भी पृष्टपुरिका देवी की मानते हैं ।१३ प्रशस्तिर में पिष्टपुर (पष्टपुरक)का उल्लेख है।३ सर ए मन्दिर की स्थिति और प्राकार प्रकार कनिधमने उसे पृष्टपुरी ही, पढ़ा था जिसके पश्चात् ही पतौरा से पूर्व में चार मील पर, सतना से दक्षिणउस प्रशस्ति में, उनके अनुसार महेन्द्रगिरिक, उद्यारक और पश्चिम में छह मील पर और उचहरा से उत्तर में पाठ स्वामिदत्त का उल्लेख है।४ यदि सर कनिधम का यह
मील पर सिन्दुरिया नाम की एक पहाड़ी है। इसी पहाड़ी पाठ प्रामाणिक मान लिया जाय तो हम न केवल पृष्टपुरी
पर एक छोटा सा टोला है जिस पर एक लघुकाय मन्दिर से पतौरा का ही, बल्कि महेन्द्र गिरिक से महियार५ का खण्ड स्थित है । इस मन्दिर को 'पतियान दाई'१४ या
और उद्यारक से उचहरा का भी समीकरण कर सकेंगे। 'डबरी की मढ़िया१५ कहते हैं। गुप्त यूग के महाराज संक्षोभ के सं २०६के एक और यह उत्तरमुख मन्दिरखण्ड बाहर से साढ़े छह फूट
समचतुष्कोण और सीढी से सात फुट ऊंचा है। भीतर से १. इसका उच्चारण सर. ए. कनिंघम ने पिथावरा
इसकी लम्बाई साढे चार फुट, चौड़ाई साढ़े पांच फुट और (Pithaora) किया है।
ऊचाई छह फुट है। समूचे मन्दिर को सात फुट आठ इंच २.मी. पाई. पाई., जिल्द ३, अभिलेख सं. १, पृ.१ १. सी. पाई. माई., जिल्द ३, अभिलेख सं. २८,पृ.१२६, फलक १।
फलक १८। ३. ......'कोसलक महेन्द्रमहाकान्तारकव्याघ्रराजकरल- १०. वही, अभिलेख स. ३१, पृ.१३५, फलक २०॥
कमण्टराजपष्टपरकमहेन्द्रगिरिकोटट्ररकस्वामित्सरण्ड- ११. (अ) 'भगवत्याः पिष्टपरिक (1) देव्याः खण्डफटपल्लकदमन"....'
प्रतिसंस्कारकरणाय...।'
११. (ब) ......'तेनापि मानपुरे कातिकदेवकुल (') ४. ए. पार., ए. एस. माई., चिल्द , पृ.१०॥
भगवत्याः पिष्टपुरिकादेव्याः पूजानिमित्तम्.....।' ५. वही, पृष्ठ ३३ और भागे।
१२. देखिये मागे टिप्पणी ३३॥ ६. वही, पृष्ठ ५ और मागे।
१३. ए. पार., ए. एस., जिल्द ६, पृ ३१॥ मी. पाई.माई., जि. ३ अभिलेख सं. २५ पृ. ११२, १४. सर कनिंघम इसका उच्चारण 'पतनी देवी फलक १५ बी (द्वितीय)।
(Pataini Devi) करते हैं। देखिये वही। ......"तमेव स्व () गसोपानपंक्तिमारोपयता १५. दो टेकड़ियों के बीच स्थित होने से इसे यह नाम भगवत्याः पिष्टपुर्याः कार्तिकदेवकुले....।'
मिला बताते हैं।