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साहित्य-समीदा
१. द्रव्य संग्रह-नेमिचन्द सिद्धान्तदेव, वनिका व उनके काव्यों पर अच्छा विवेचन किया है। और उनमें पद्यानुवादकर्ता पं. जयचन्द जी छावड़ा, सम्पादक प. वणित विषयों की मालोचना भी की है। और अपभ्रंश दरबारीलाल जी कोठिया, प्रकाशक श्री गणेशप्रसाद वर्णी काव्यों में पाये जाने वाले रस, अलंकार एवं छन्द योजना जैन प्रथमाला, वाराणसी पृ० १५६ मूल्य २ रुपये ५० पर भी अपने विचार व्यक्त किये हैं। उनमें चर्चित पैसा।
प्रकृति चित्रण, समाज और संस्कृति तथा दार्शनिक प्रस्तुत कृति का प्रकाशन वर्णी ग्रंथमाला से किया
मन्तव्यों पर भी विचार किया है। इस तरह प्रस्तुत । पुस्तक पठनीय है और सम्पादक ने उसे स्वा. पुस्तक अपभ्रंश माहित्य का अच्छा दिग्दर्शन कराती है। ध्याय प्रेमियों के अतिरिक्त विद्यार्थियों के लिए भी उप- और विधानों लिया, योगी बनाने का प्रयत्न किया है। इसमें द्रव्य संग्रह के है। यह निबन्ध डा. हीरालाल जी एम. ए. डी. लिट लघु और वह दोनों रूपों को सानुवाद दिया गया है। जबलपा को fam. पौर प्रथम परिशिष्ट में सस्कृत भी हिन्दी व्याख्या के साथ विद्वान हैं। डा. साहब से समाज को माशा करनी चाहिए दे दी है, जिससे विद्यार्थियों को उसके हार्द को समझने- पिय ने मौलिक सोनी या समझाने में सहायता मिलेगी। सम्पादक ने अपनी प्रस्ता- संस्कृति के मौलिक तत्त्वो का विश्लेषण करेंगे, जिससे वना में उसके कर्तृत्व भादि पर विस्तृत प्रकाश डाला
जन साधारण उसके मूल्य को प्रांक सके । भारतीय ज्ञानहै। इस पुस्तक प्रकाशन के साथ कोठिया जी ने प्रयत्न
पीठ का यह सुन्दर प्रकाशन बहुन ही उपयोगी है। द्वारा वर्णी ग्रन्थमाला को उज्जीवित करने का भी प्रयत्न किया है, उससे दो ग्रंथों का प्रकाशन भी हो चुका है, और
३. कविवर बनारसीवाम-लेखक डा. रवीन्द्रग्रंथ भी छपने वाले हैं। इससे माशा की जा सकती है कुमार जन प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ काशी। पु० सख्या कि भविष्य मे यह ग्रन्थमाला कुछ ठोस और नये प्रकाशन ३५२ मूल्य सजिल्द प्रति का १०) रुपया। करने में समर्थ हो सकेगी। इसके लिए ग्रन्थमाला के प्रस्तुत ग्रन्थ एक शोध-प्रबन्ध है, जिस पर लेखक को मंत्री और मम्पादक धन्यवाद के पात्र हैं। ममाज को आगरा विश्व विद्यालय से पी. एच. डी. की डिगरी मिली चाहिए कि वह ग्रन्थमाला को पार्थिक सहयोग प्रदान करे है। ग्रन्थ में सात अध्याय है, जिनमे कविवर बनारसीदास जिससे वह अपनी प्रगति में समर्थ हो सके।
के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचार किया गया है। २. अपभ्रंश भाषा और साहित्य-डा. देवेन्द्रकुमार शोधक दृष्टि में किया गया यह प्रयल जहा कवि के जैन एम. ए. पी-एच. डी., प्रकाशक, भारतीय ज्ञानपीठ जीवन को उजागर करता है वहा उनके व्यक्तित्व और काशी, पृष्ट मस्या ३४८ मूल्य सजिल्द प्रतिका १०) रु.। कृतित्व पर समीक्षक दृष्टि में प्रकाश भी डालता है।
प्रस्तुत प्रन्थ एक शोध-पूर्ण प्रबन्ध है जिस पर लेखक कविवर बनारसीदास १७वी शताब्दी के एक प्रतिमा को पी एच डी की डिग्री मिली है। इसमे अपभ्रंश भाषा सम्पन्न कवि थे और हिन्दी के प्रात्म-चरित के प्रथम और उसके साहित्य पर प्रकाश डाला गया है। प्रन्थ में लेखक हैं, जिसमे अपने ५५ वर्ष के जीवन की अच्छी और ग्यारह अधिकार हैं। जिनमें अपभ्रंश भाषा का स्वरूप बुरी सभी घटनामों का सुन्दर पद्यों में अंकन किया गया तथा व्याकरण दिया है। पश्चात् राजनीति पर भी है। ऐसा चरित ग्रंथ हिन्दी में दूसरा अवलोकन मे नही प्रकाश डाला है। इसके बाद अपभ्रंश के कुछ कवि और पाया है। समयसार के अध्यन के कारण कवि का जीवन