Book Title: Anekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 367
________________ शोध-कण चंपावती नगरी नमचंद धन्नूसा जैन अंदाजा ४ माह हुए मुझे एक मराठी टाइप किया ___ "मोम् नमः श्रीवासुपूज्य स्वामीने" हमा कागद मिला है। मैं उस पर अधिक प्रकाश डालने अति प्राचीन (चतुर्थ) काल में गोदावरी नदी के के लिए खूब प्रयत्नशील रहा हूँ। मगर अाज तक मैं कुछ दक्षिण में तीन योजन (१२ कोस) दूरी पर बिंदु सुधा भी जान न सका। यह कागद बीड (मराठवाडे का एक नदी के किनारे चंपावती (बीड, निजाम इलाका) में जिला है) में मन्दिर जी की हस्तलिखित पोथी में अलग कलिकंदन नाम का एक सार्वभौम राजा हो गया। वह प्राप्त हमा है। उस पर लिखा है :-'संस्कृत प्रति पर जान जैन या पड़ोस के कुछ राजा उसके मांडलिक थे। उस से प्रतिलिपि १ याने इस कागद का मूल प्राधार संस्कृत कलिकंदन राजा ने प्रधान के हाथ से चीन के मुलक से भाषा का कोई लेख है। वह माज तक प्राप्त नहीं हुमा । अनन्त द्रव्य खर्च कर भगवान श्री वासुपूज्य स्वामी की हो सकता है वह कागद वहां के किसी हस्तलिखित पोथी अतिशय सुन्दर ऐसी मूर्ति मंगाई, फिर अमरावती के राजमें होगा। ऐसी पोथियों का वहां एक संदूक भरा हुमा है। वाड़े मुजब मनोहर मंदिर बना कर उसमें उस मूर्ति की इस कागद पर से इतना तो सुनिश्चित हुमा कि, बीडा स्थापना की। इस समारंभ के लिए अनेक देशों से लोग का प्राचीन नाम चंपावती नगरी है। और वहां के कलि इकट्ठा हुए थे, उनके लिए ५ योजन (२० कोस) को कंदन नाम के जैन राजा ने जो किला बांधा है वह भाज जगह अपूर्ण पड़ी थी। भी है तथा इसो किले में प्राप्त हुयी एक संगमरमर की सफेद पाषाण की अंदाजा २' ऊंची थी १००८ वासुपूज्य ___इस समय कुल सड़सठ राजा पाये थे, इनमें कुछ भगवान की प्रतिमा वहां के जिन मंदिर मे मूलनायक के माडलिक और कुछ मित्र थे। इन राजाओं ने भगवान के सामने १ लक्ष मोहर का नजराना किया, इससे भगवान रूप में विराजमान है। यह किला अभी किन्ही मुसलमान के लिए सुवर्ण का सिंहासन बनाया गया। फकीरों का वसति स्थान हुमा है। और वहा जिनमदिर के कुछ स्तंभ मादि विखरे हुए हैं। पास में एक मसजिद इस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा किसी उद्यान में हुई थी और बड़े वाद्यों के ठाट मे गांव में लाकर किले में से का कुछ भाग है। इस पत्र पर से वह कलिकंदन राजा बहुत प्राचीन होगा, ऐसा लगता है, मगर वह मूलनायक जिनमंदिर मे सुवर्ण सिंहासन पर स्थापना की गई। आमश्रीवासपूज्य स्वामी के दर्शन करने पर ऐसा लगता है वह त्रित लोगों का सत्कार राजा कलिकदन ने अच्छी तरह से मूर्ति ज्यादा से ज्यादा १०-११वी सदी की होगी। वहा किया था। काले पाषाण के एक प्राचीन मूर्ति पर तेलगू मे लेख कुछ ही काल बाद इस कलिकदन राजा के वंशजों अंकित है उसमें एक राजा और उसके मां का नाम दिया पर किसी यवन राजा ने हमला किया। समय देख कर है। उस लेख का यदि पूरा वाचन हो तो इस नगरी के उस राजा ने इस मूर्ति को किले के किसी तलघर में यथा राजा कलिकंदन के जैन इतिहास पर अधिक प्रकाश स्थापित कर ऊपर मिट्टी डालकर देश त्याग किया। पड़ सकता है। वह लेख इस प्रकार है : तब से यहां यवनों की सत्ता चालू हो गई। उसके "भूल संस्कृत से प्रति नक्कल भी बहुत काल बाद किसी यवन राजा ने किले में धन के

Loading...

Page Navigation
1 ... 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426