Book Title: Anekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 334
________________ भी शिरपुर पानाव स्वामी बिनति ३.१ दोनों गापामों को बसुनन्दि की मान कर ब्रह्मदेव द्वारा है। उनसे बहुन बाद का विद्वान बतलाना संगत नहीं उदघृत बतलाया है । पर लिखित प्रति में वे नहीं हैं। जान पड़ता। ऊपर के इस सब विचार विनिमय से स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मदेव ने वसुनन्दि के उपासकाचार से उक्त दोनो ऐसी स्थिति में नेमिवन्द सिद्धान्तदेव, ब्रह्मदेव पौर गाथाए नही ली, वे गाथाएं वसुनन्दि रचित भी नहीं हैं। सोमराज श्रेष्ठी के समकालिख के विरोध की जो दीवार उनमे पहनो गाथा वट्टकर के मूलाचार की है, और दूसरी खड़ी की गई थी वह धराशायी हो जाती है। उसमे कोई भी किसी प्राचीन प्रन्य की होगी। वह उनकी टीका में बल नहीं रहता। प्रतः उन तीनो का समकालिक होना नही है । पं. जवाहरलाल शास्त्री ने शामिल की है। इससे प्रसिद्ध नहीं है । मुख्तार साहब से चर्चा होने पर उन्होंने कोठियाजी ने वसुनन्दि के माधार पर जो ब्रह्मदेव का समय भी उन तीनो को समकालिक बतलाया है। विद्वानों को निर्णय करना चाहा है, वह टीक नही है। प्रतिपादेव वस्तु स्थिति पर गम्भीरता से विचार कर पूर्वापर स्थिति स० ११५० के बाद के विद्वान नहीं ठहरते। किन्तु वे भार बलवान प्रमाणो को साक्षी में ही लिखना चाहिए, उससे पूर्ववर्ती हैं। उनका समय भोजदेव के समकालीन जिससे वह प्रामाणिक माना जा सके। श्री शिरपुर पार्श्वनाथ स्वामी विनति नेमचचंद धन्नुसा जैन शिरपुर के सम्बन्ध मे अनेककाव्य रचे गये है। जिनमे खरदूषण विद्याधर धीर, जिनमुग्व विलोकन व्रत घरधीर। शिरपुर की महिमा का वर्णन किया गया है, जिनमे वहा वसतमाम प्रायो तिहा काल, क्रीडा करवाने चालो भूपाल। की मूर्ति के प्रतिशयों का भी वर्णन मिलता है। यहा ऐसे पद्मावती महित सेवे धरणीद, शिरपुर वदो पास जिनः २ ही एक ऐतिहासिक काव्य पाठकों की जानकारी के लिए लगी तणा प्रतिभा हिमग, वालुननो निपायर्या बिर। दिया जा रहा है। पूजी प्रतिमा जल लियो विधाम, गखो विब ने पनिठाम ।। इस ऐतिहासिक काव्य को मैं श्री विष्णुकुमार जी बहनकाल गमेतिहां गये, प्रतिमा एल को मुरगये। कलमकर मु० जिन्तूर (परभणी) के सौजन्य से प्रकाशित पद्मावति ॥३॥ कर रहा हूँ। उन्होने यह काव्य थी काष्ठासत्र दि. जैन येलचनगरी एलच करे राज, मन्दिर, कारजा के पुराने साचे पर से लिया था। कुष्टरोग करी पीडयो घात (वाज)। "प्रणमि सद्गुरुपाय, विश्वसेन वाराणसी ठाय । रजनी समये होये तनुक्रम, वामादेवी वर्ण सुमाम, नवकर उब शरीर पायाम ।। दा(दि)न कर उगवे होय तनु जोम ॥ श्री पाश्र्वजिनेश्वर विघ्नविनाश, दुःख देखत काल बहुत गयो, (तब) राजा एल बन गयो। कमठासूर मर्दन मोक्षनिवास । पपावती ॥४॥ पद्मावती सहित सेवे धरणीद, शिरपुर वंदो पास जिनद ॥१ क्रीडा करता लागी तृषाल, लंकानगरी रावण करे राज, चंदनखा भगिनी भरतार (ज)। बुडत च(ज) लतल देखो बटको यार ।

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