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अनेकान्त
है। टोडा से कुछ ही दूर स्थित टोंक से ११ मूर्तियों के पूर्णमल उत्पन्न हुए। टोड़ा से प्राप्त वि० सं०१६०४ के लेख वि० सं० १५१० के मिले हैं जिनमें पाश्र्वनाथ की एक बहचित५ लेख में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह मूर्ति पर "इंगरेन्द्र" नामक शासक का उल्लेख है। या दिल्ली के बादशाह सलेमशाह और टोडा के राव सूर्य सेन तो यह स्थानीय शासक है अथवा ग्वालियर के राजा पृथ्वीराज एव रामचन्द्र का उल्लेख किया गया है। दूगर सिंह के लिए प्रयुक्त हुमा है । स्मरण रहे कि डूगर
सूर्यसेन बहुत ही वृद्धावस्था में मरा प्रतीत होता है। सिंह तोमर के लेख वि. स. १५१० माघ सुदी ८ मे भी
वि० स० १५६७ तक६ वह जीवित था। उसके पौत्र रामउसे "इंगरेन्द्र देव" लिखा है-[सिद्धि संवत् १५१० वर्षे
चन्द्र को वि० स० १५८० में ही चाटसू जागीर में दे दी माघ सुदी-महाराजाधिराज श्री ()गरेन्द्र देव...] वि० स० १५२४ की मामेरशास्त्र भंडार में संग्रहीत
गई थी। इसके समय की लिखी चाटसू घट्यावली आदि कातंत्रमाला की प्रशस्ति में टोंक में अल्लाउद्दीन नामक
स्थानों की कई प्रशस्तियां देखने को मिली हैं। इनमें एक शासक का उल्लेख है, जिसकी कई प्रशस्तिया वि० स० ।
सबसे उल्लेखनीय वि० सं० १५८३ भाषाढ़ सुदी ३ बुध१५१५ से लेकर १५८८ वि० तक की नैनवां प्रादि स्थानो
वार और वि० स० १५८४ चैत्र सुदी १४ को है जिनमे की लिखी और भी देखने को मिली हैं। टोड़ा में ही ५. "सवत् १६०४ वर्षे शाके १४६६ मिगसर वदि २ लिखी गई एक३ ग्रन्थ प्रशस्ति मे जो वि० स १५३७
दिने बद्धनीयती। प्रो० पान्हड तस्य पुत्र नराहण... फाल्गुन सुदी ६ रविवार की है यहां के शासक का नाम ..."राजाधिराज राज श्री सूर्यसेणि ॥ तस्य पुत्र राज गयासुद्दीन बणित किया है। प्रतएव इतना अवश्य निश्चित
श्री पृथ्वीराज ।। तस्य पुत्र राज श्री राव रामचन्द्र है कि राव सुरत्राण को वि.सं. १५३७ के पूर्व अवश्य
राज्ये वर्तमाने ॥ तस्य कुवर भ. परसराम ।। टोड़ा छोड़ देना पड़ा था और दीर्घकाल यह मेवाड़ मे
पातिसाहि सेरसाह सूर । तस्य पुत्र पातिसाहि असलेरहा हो ऐसा प्रतीत होता है।
मसाहि ।। को वारी वर्तमान ॥ सर्व भूयि भो षसम मांवा के मन्दिर के एक प्रकाशित शिलालेख और
षोडा लाख ११ को पसमु राज श्री संग्रामदेव । तस्य टोड़ा के शिलालेखों में इस राव सूर्यसेन की वंशावली दी
पुत्र उदर्यासघ देवराणो कुभलमेर राज्ये वर्तमाने..." हुई है। इसके दो रानियां थीं जिनके नाम है-सीतादेवी
[मरु भारती वर्ष ५ अंक १ पृ. २०] और सोभाग्यदेवी४ । सोभाग्यदेवी से पृथ्वीराज पोर
६. सुदर्शन चरित की प्रशस्ति३. "संवत् १५३७ फाल्गुण सुदि ६ रविवारे उत्तरा "सवत् १५९७ वर्षे माघ मासे कृष्ण पक्षे द्वितीयाया
नक्षत्रे...''सुरत्राण गयासुद्दीन राज्य प्रवर्तमाने टोडा तिथी बुध बासरे पुष्य नक्षत्रे श्री कुन्दकुन्दान्वये...... नगरे....."
तोडागढ़ महादुर्गात् राजाधिराज सोलंकीराउ श्री [राजस्थान के जैन भंडारों की सूची भाग २ पृ. ६०८]
सूर्यसेन विजयराज्ये......" ४. ब्रह्म चालुक्य वंशोद्भव सोलंकी गोत्र विस्फुरम् ।
[प्रशस्ति संग्रह पृ० १८६] - योवर्द्धते प्रजानन्दी सूर्यसेणः प्रतापवान् ॥१२॥ ७. करकंडु चरिउ की प्रशस्तितस्यराजाधिराज देस्त्रे (स्त्रियो) च विचक्षणे।
"संवत् १५८१ वर्षे चैत्र वदि ६ गुरु वासरे घटयावर्तते च तयो मध्ये पूर्वा शीतास्ययास्मृता ॥१६॥ वली नाम नगरे राउ श्री रामचंद्र राज्य प्रवर्तमाने" द्वितीया च जिताख्याता नाम्नी सोभागदे-च।
[उक्त पृ०६६] तत्पुत्री चवरी जातोकुलगुण विशारदो ॥१४॥
चन्द्रप्रभचरित की प्रशस्तिप्रथमे पृथ्वीराजो द्वितीय पूर्णमलवाक् ।
"संवत् १५८३ वर्षे प्राषाढ़ सुदि ३ पुष्य नक्षत्रे राणा शोभन्ते एनराजन् पुत्र पौत्रादि संयुतः ॥१५॥ श्री संग्रामराज्ये चम्पावती नगरे राव श्री रामचन्द्र मावा का वि० सं० १५९३ का मेख (अप्रकाशित)
प्रतापे......"
[उक्त पृ. ६६]