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भनेकान्त
केपास-पास राज्य था वि० सं० १६०० की लिखी लघु सं०१३७६ एवं १३७५ के दो दिगम्बर जैन लेख१७ संग्रहणी सूत्र की एक प्रशस्ति (जो अलवर१३ में लिखी मिले हैं जिन्हें मैंने वीरवाणी (जयपुर) में प्रकाशित कराये गई थी) छाणी गुजरात के ग्रन्थ भण्डार में संग्रहीत है। हैं जिनसे की इस तथ्य की पुष्टि होती है। प्रशस्ति में चाटसू के वि० सं० १६२३ में भारमाल कछावा ने अधि- पद्मनन्दि और शुभचंद्र का उल्लेख है। विजोलियां के एक कृत कर लिया था ऐसा उपासकाध्ययन अन्य की एक१४ लेख में इनकी वंशावली इस प्रकार दी हुई है१८प्रशस्ति से प्रकट होता है। टोड़ा की जगन्नाथ बावड़ी
१. वसंतकीति, २. विशालकीति, ३. शुभकीर्ति, ईसर बाबड़ी आदि के लेखों में वहां के शासक का नाम
४. धर्मचंद्र, ५. रनकीति, ६. प्रभाचंद्र, ७. पद्मनन्दि, जगन्नाथ दिया हुआ है१५।।
८. शुभचद्र। ___ इस प्रशस्ति में दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि
पाबू के दिगम्बर जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा भी इन्हीं वि० सं० १५५१ में पुर ग्राम में दिगम्बरों की बड़ी वस्ती
शुभचंद्र ने की थी। इसके शिलालेख को मैंने वीरवाणी में होना अनुमानित होता है। केन्द्रीय मेवाड़ से दिगम्बरो का
सम्पादित करके प्रकाशित कराया था। इसमे "मूलसंघे प्रभाव १४वीं शताब्दी से कम हो गया था। महारावल
बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे" ही वर्णित है१९ । इस तेजसिंह, समरसिंह भादि के समय से ही श्वेताम्बरो का
प्रशस्ति मे दी गई वशावली नैणसी की वशावली से भिन्न प्राबल्य हो गया था. फिर भी श्वेताम्बरों के साथ-साथ
है। नैणसी की दी हुई वशावली में दुर्जनशाल, हरराज दिगम्बरों का भी उल्लेख १६ इस क्षेत्र में बराबर मिलता
सुरत्राण ऊदा बैरा ईसरदास राब दलपत्त राव अणदा है। मुझे हाल ही में चित्तौड़ के पास के गगारार मे वि०
राव श्यामसिंह मादि नाम है किन्तु शिलालेखों और १३. "संवत् १६०० वर्षे भाद्रपद मासे शुक्लपक्षे १३ रवी प्रशस्तियों में उल्लेखित सोढा, सूर्यसेण; पृथ्वीराज, राम पातिशाह श्री साह पालम राज्ये प्रलवह महादुर्गे..." चन्द्र आदि के नाम इसमे नही होने से यह अप्रमाणिक है।
[प्रशस्ति संग्रह पृ० ११० बाई अमृतलाल शाह] मूल प्रशस्ति इस प्रकार है१४. उपासकाध्ययन की प्रशस्ति
"सवत् १५५१ वर्षे आषाढ सुदी १४ मंगल बासरे "संवत १६२३ वर्षे पोष वदि २ शुक्रवासरे श्रीपाश्व- ज्येष्ठा नक्षत्रे श्रीपुर नगरे श्रीब्रह्म चालुक्य बेटो श्री राजानाष चैत्यालये गढ़ चम्पावती मध्ये राजाधिराज श्री धिराज राय श्री सूर्यसेन राज्य प्रवर्तमाने श्री मूलमधे भारमल कछावा राज्ये......"
[भाम्बेर शास्त्र भंडार के सौजन्य से प्राप्त १७. (१) ॐ सिद्धि ॥ संवत् १३७६ । १५. अथ संवत्सरेस्मिन श्री नपति विक्रमादित्य राज्ये (२) व मूल सधे । संवत् १६५४ वर्षे शाके १५१६ प्रवर्तमाने....."पुर
(३) नंदिसघे भट्टारक श्री जय [को]त्ति देवाना" बरे....."नपतिमणिकिल जगन्नाथः स पाथोधिवत'.. एवं-(२) ......१३७५ वर्षे कात्तिक ।
[जगन्नाथ बावड़ी की प्रशस्ति] (३) "दि चतुर्दशी प्राते श्रीमूलसधे । "संवत् १६६१ वर्षे शाके १५२६ प्रवर्तमाने उत्तरायण (४) श्री [भीमसेन शिष्य...." भानी महामांगल्य प्रदेशे चैत्र मासे शुक्लपक्षे दशमी १८. भाकियोलोजिकल सर्वे माफ वेस्टर्न इंडिया १९०५-६ समस्त पृथ्वीपति पातिसाह श्री मकबर राज्ये टोडा पृ० ५७ । नगरेकछवाहा श्री जगन्नाथ जी राज्ये......" १९. "स्वस्ति संवत् १४९४ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरी
[ईसर बावड़ी प्रशस्ति] श्रीमूल संगे (घ) बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे भट्टा[मरु भारती वर्ष ५ अंक १ पृ. २०-२१] रिक पनन्दि देव तत्पढें श्रीशुभचंद्रदेव भट्टारिक श्री १६. "चित्तौड़ पौर दिगम्बर जैन सम्प्रदाय" नामक मेरा संघर्व गोव्यंदमात्री देवसी दोशी करणा जिनदास..." मेख शोष पत्रिका वर्ष १६ अंक ३-४ में प्रकाशित ।
[मूल लेख से