________________
मेवाड़ के पुर ग्राम की एक प्रशस्ति
राम रामचन्द्र के साथ-साथ महाराणा सांगा का भी उल्लेख शासनकाल में लिखी वि० सं० १५८१ की शानार्णव की है। स्मरण रहे वि० स० १५८४ वाली यह प्रशस्ति महा- एक ग्रंथ प्रशस्ति (यह ग्रन्थ यशोदानन्दजी के दिगम्बर जैन राणा सांगा की अब तक प्राप्त ग्रन्थ प्रशस्तियों में अन्तिम मन्दिर में संग्रहीत है) देखने को मिली है इसके कुछ प्रशस्ति है। वि० म० १५६४ की एक वरांग चरित८ की समय बाद इनके इतिहास मे कुछ व्यवधान पाता है। प्रशस्ति में जो प्राया नामक ग्राम में लिखा गया था, राव कछवानों में गृहकलह भी इसी काल में होता है। इयका सूर्यसरण और उसके पुत्र पूरणमल का उल्लेख है । सभव है
लाभ उठाकर ही इन सोलंकियों ने चाटमू तक का भाग कि पावा पूरणमल को जागीर में दिया हो। सूर्यसेन का
इनसे जीत लिया था। माम्बेर की एक न मूर्ति के वि० ज्येष्ठ पुत्र पृथ्वीराज या तो अपने पिता के जीवनकाल में स०१५९३ के लेख में राव सूर्यसेन को शासक वणित ही मर चुका था अथवा उसका राजत्व काल अत्यन्त प्रल्प किया है११ । लेख बहत ही अधिक अस्पष्ट है। "वि० रहा होगा, क्योकि वि० सं० १६०१ की जम्बू स्वामि सं० १५९३ के पश्चात् कुछ अक्षर पढे नहीं जाते हैं। चरित की प्रशस्ति में जो भी वधीचंद जी के मन्दिर मे
और प्रम्बावती वास्तव्ये खंडेलान्वये मादि शब्द है इसका संग्रहीत है, टोडा के शासक का नाम राव रामचन्द्र
अर्थ यह लिया जाना चाहिए कि अम्बावती के रहने वाले दिया है। इन मोलंकियो का कावाहो से बराबर मघर्ष रहा
खंडेलवाल गोत्र के धेष्ठियों ने महाराजा "सूर्यसेणि" के
गज्य में उक्त मूर्ति को प्रतिष्ठापित कराया। इस क्षेत्र में प्रतोन होता है । आमेर के कटावाहा राजा१०वीगज के
वि० सं० १५९४ में बीरमदेव मेडतिया ने प्राक्रमण कर बर्द्धमान कथा का प्रशस्ति
चाटसू पर अधिकार कर लिया था। इसके समय भी वि० मवत् १५८४ वर्षे चैत्र सुदि १४ शनिवारे पूर्वा
सं० १५९४ माघ सुदी २ की षट्पाहुड की एक प्रशस्ति नक्षत्रे श्री चम्पावती कोटे राणा श्री श्री श्री मग्राम
देखने को मिली है। इसे मालदेव ने दूसरे वर्ष ही हटा राज्ये राउ श्री रामचन्द्र राज्ये ।
दिया था। वि०म० १५९५ की वरांगचरित की प्रशस्ति [राज थान के जैन भडारों की सूची भाग ० ७७]
मे जो सांखोण ग्राम (टोंक के पास) की है राय मालदेव यह प्रशस्ति महाराणा सागा की अब तक ज्ञात
राठोड़ के शासन काल का उल्लेख किया है । इनसे प्रशस्तियो मे अन्तिम प्रशस्ति है।
सोलंकियों ने शीघ्र ही क्षेत्र वापस ले लिया था। चाटसू ८ वगगन्ति की प्रशस्ति
आदि क्षेत्र को शाह यालम ने मोलकियों से छीन लिया "स. १५६४ व शाके १४५६ कातिग मासे शुक्ल
इसके समय१२ को लिखी वि० स० १६०२ वैशाख सुदी पक्षे दशमी दिवसे शनैश्चर वासरे घनिष्टा नक्षत्रे
१० की षट्पाहुड की एक प्रशस्ति जो चाटसू में लिखी गडयोगे पावा नाम महानगरे श्री मूर्यसेणि राज्य
गई थी देखने को मिली है। इस शाह मालम का अलवर प्रवर्तमाने कुवर धी पूर्णमल प्रनापे......"
राज के जैन भडारों की सूची भाग ४ पृ० १६४] ११. सवत् १५६३ वर्षे-चालूक्यान्वये मोलंकी गोत्रे महाहै 'जम्बूस्वामी चरित की प्रशस्ति"
राजा मूर्यसेणि नस्यराणि सीतादे द्वि० राणी सुहागदे सवन् १६०१ वर्षे ग्राषाढ़ सुदि १३ भोमवासरे टोडा
तत्पुत्री महाकवर पृथ्वीराज पूर्णमल राज्य प्रवर्तमाने गढवास्तव्ये गजाधिराज राब श्री रामचन्द्र विजय
अम्बावनी वास्तव्ये खंडलान्वये....." राज्ये....."
[भनेकान्त वर्ष १६ पृ० २१२] १०. ज्ञानार्णव को प्रशस्ति"सवत् १५५१ वर्षे मरस्वती गल्छे-पाम्बेरगण
संवत् १६०२ वर्षे वैशाख सुदि १० तिथी रविवासरे स्थानात् कूरमवशे महाराजाधिराज पृथ्वीराज राज्ये वहेलान्वये समरत गोष्ठि पंचायतन शास्त्र ज्ञानार्णवं
उत्तर फाल्गुन नक्षत्रे गजाधिराज शाह मालम राज्ये लिखापितं"।
चम्पावती मध्ये......"