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मेवाड़ के पुरग्राम को एक प्रशस्ति
रामवल्लभ सोमानी
श्री वृद्धिचद जी दिगम्बर जैन मन्दिर जयपुर के कि पुर के पश्चात् ही सुरत्राण को बदनोर दिया गया ग्रन्थ भडार मे सग्रहीत लब्धिसार नामक एक हस्तलिखित था। पृथ्वीराज का लेख वि० सं० १५५७ पेशाब मुरी प्रन्थ को प्रशस्ति (अथ स. १३६) जो वि० सं० १५५१ शुक्रवार का नाउलाई के मन्दिर का मिला है जिसमें आषाढ सुदी १४ की है उन्लेखनीय है। इस प्रशस्ति से स्पष्टत उल्लेखित है कि वह उस समय कंभसमढ़ में पता चलता है कि मेवाड़ के पुर ग्राम में ब्रह्म चालुक्य प्रशासक था । टोडा भी पृथ्वीराज ने कुंभमगढ़ से बाकर वश के शासक सूर्यसेन का अधिकार या। यह सूर्यसेन केही दिलाया था। कौन था? इसका उल्लेख टोड़ा से प्राप्त अन्य कई लेखो टोडा पर मुसलमानों का अधिकार कबमा था? और प्रशस्तियो मे अवश्य मिलता है। यह राव सुरत्राण इस सम्बन्ध मे निश्चित तिथि देना तो कठिन है किन्तु का ही नाम होना चाहिए, जिसे टोड़ा से मुसलमानो ने इतना अवश्य सत्य है कि पूर्वी राजस्थान में १५वी निकाल दिया था और मेवाड़ मे महाराणा रायमल के शताब्दी से ही सघर्ष प्रारम्भर हो गया था। मेवाइके समय में पाकर के रहा था। इसकी पुत्री तारादेवी बडी महाराणा पोर मालवे के सुल्तान दोनों ही इसे अपनेप्रसिद्ध थी जिसका विवाह उक्त महाराला के पुत्र पृथ्वी- प्रभाव में लेना चाहते थे। कुमा के समय में यह संघर्ष राज के साथ इसी शर्त पर हुआ था कि वह टोडा से बगबर विद्यमान था। टोडा को भी कुभा ने मुसलमानों मुसलमानों को निकाल देवे।
से हो जीतकर वापस सोलकियों को दिलाया था। एकमेवाड के इतिहास में राव मुरत्राण को बदनोर लिंगमाहात्म्य में इसका स्पष्टत: उल्लेख है। तोडा मंडनजागीर मे देना उल्लिखित है । उक्त ग्रंथ भडार मे वि. माहीच्च सहसा जित्वा शकंदुज्जय" उस ममय सेढवदेव म० १५५६ की एक षट्कर्मोपदेशमाला की एक प्रशस्ति अथवा सोड़ा वहाँ का शासक था। इसका उल्लेख बि. और देखने को मिली है जो भीलवाड़ा ग्राम की है। यह स. १४९२ माघ मुदि ५ को लिखी जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में पुर मे ६ मील दूर है। इस प्रशस्ति मे गव माण या ----- -- - - ... --~-- उल्लेख है। भाण (बून्दी का हाडा) को भीलवाड़ा देते २. वि० सं० १५४१ में लिखित "गुरु गणरलाकर" समय महाराणा ने सुरत्राण को बदनोर दे दिया हो। काव्य से पता चलता है कि हाडावटी पर मालवा के अथवा इसके पूर्व भी कुछ कारणों से परिवर्तन कर दिया सुल्तान का अधिकार हो चुका था। हाडावटी हो। इस सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है कि
मालव देश नायक प्रजाप्रियऽहमदमुख्य मन्त्रिणा।
श्रीमण्डपक्ष्माघर भूमि वामिना, मंघाधिनायेन पचंडराव मुरत्राण को बदनोर कर दिया गया था। मेवाड़ में प्रचलित कथाप्रो मे गव सुरत्राण का बदनोर से हो टोड़ा
साधुना । ममसामयिक ग्रन्य प्रशस्तियों से भी इसकी
पुष्टि होती है।" जीतना उल्लेखित किया है अतएव यह कहा जा सकता है
वि० स० १५४६ "मुकुमान चरित्र" की प्रशस्ति १. "मंवत् १५५६ वर्षे चैत्रवदि १३ शनिवासरे पत. से पता चलता है कि बाग पर गयामुद्दीन का राज्य
भी (भि)सा (?) नक्षत्र राजाधिराज श्री भाणविजय- था। जरेणा, टोंक ननवा मल्लारणा मादि से प्राप्त गज्ये श्री भोलोडा ग्रामे श्रीचंद्रप्रभ चैत्यालये-" ग्रन्थ प्रशस्तियों में वि०म० १५२८ या इससे पूर्व से राजस्थान के अन्य भंडारों की सूची भाग ३ पृ०७८ ही वहाँ इनका गग्य प्रतीत होता है।