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क्या द्रव्य संग्रह के कर्ता व टीकाकार समकालीन नहीं हैं ?
परमानन्द जैन शास्त्री
भनेकान्त के छोटेलाल जैन स्मृति प्रक १-२ मे मैंने पर पुरातन वाक्य-सूची की उस प्रस्तावनामें मुस्तार साहब अपने उस लेख मे नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव, ब्रह्मदेव तथा ने कहीं भी बसुनन्दि का समय वि० सं० ११५० सूचित सोमराज श्रेष्ठी को मालवा के राजा भोज के समकालीन नहीं किया। उन्होंने लिखा है कि-"उनकी इस कति बतलाया था। परन्तु यह बात पडित दरबारीलाल जी का (भाचार वृत्ति का) समय विक्रम की १२वीं शताब्दी कोठिया को नहीं रुची मोर उन्होंने अपनी द्रव्यसंग्रह की का पूर्वार्ष जान पड़ता है और यह भी हो सकता है कि प्रस्तावना मे राजा भोज के ऐतिहासिक क्रम का उल्लंघन वह ११वी शताब्दी का चतुर्थ चरण हो, क्योंकि पं. नाथूकरते हुए ब्रह्मदेव को वसुनन्दि (वि. स. ११५०) के राम जी के उल्लेखानुसार अमितगति ने भगवती पाराधना बाद का (स० ११७५) विद्वान सूचित किया है। केन्त में पाराधना की स्तुति करते हुए उसे 'श्री वसुजब कि राजा भोज का राज्य काल वि० सं० १०६७ से नन्दियोगिमहिता' लिखा है। यदि ये वसुनन्दि योगी कोई १११० तक रहा है। उसके बाद नहीं।
दूसरे न होकर प्रस्तुत श्रावकाचार के कर्ता ही हों, तो ये दूसरे पापने माणिक्यनन्दि के प्रथम विद्या शिष्य "अमितगति के समकालीन भी हो सकते हैं। और १२वीं नयनन्दि को, जो 'सुदसणचरिउ' के कर्ता हैं, द्रव्यसग्रह शताब्दी के प्रथम चरण में भी उनका प्रस्तित्व बन सकता के कर्ता नेमचन्द्र को उनका शिष्य सूचित किया है है।" -(पुरातन जैन वाक्य-सूची पृ० १००)
और नेमिचन्द के शिष्य वसुनन्दि हैं । वसुनन्दि का समय पाठक देखें कि इस उल्लेख में मुख्तार सा० ने कहीं वि० स० ११५० बतलाते हुए उनके उपासकाध्ययन की भी वसुनन्दि का समय वि० सं० ११५० नही बतलाया दो गाथानों का उद्धरण ब्रह्मदेव द्वारा उद्धृत किया जाना है। तब कोठिया जी ने उस पर से ११५० समय कैसे सूचित किया है। पर उन गाथानों के सम्बन्ध में कोई फलित कर लिया, यह कुछ समझ मे नही पाया। मन्वेषण नहीं किया गया कि उक्त गाथाएं वसुनन्दि की है या तीसरे 'सुदंसणचरित' के कर्ता नयनन्दि ने अपने को श्री बमुनन्दि ने कही अन्यत्र से उन्हें अपने ग्रन्थ मे मंग्रह नन्दि का शिष्य कहीं भी मूचित नहीं किया, और न श्री किया है । इसके जानने का उन्होंने कोई प्रयन्न नही नन्दि तथा नेमचन्द्र सिद्धान्तदेव का उल्लेख ही किया है। किया मालूम होता है। यदि वे वृ० द्रव्य सग्रह का प्रथम ऐसी स्थिति मे इन नयनन्दि को श्रीनन्दिका शिष्य कैसे कहा एडीसन, जो रायचन्द्र शास्त्रमाला बम्बई से छपा था, उमे जा सकता है। श्रीनन्दि नाम के कई विद्वान हो गये है। देख लेते, तो उन्हे उन गाथामो के आधार पर संभवत
१. एक श्रीनन्दि वे है जो बलात्कारगण के विद्वान थे, समकालीनत्व का विरोध न करना पड़ता। अस्तु ।
उनके शिष्य श्रीचन्द ने वि० सं० १०७० पौर १०८० द्रव्य संग्रहकार को वसुनन्दि से २५ वर्ष पूर्ववर्ती पौर मे पपचरित संस्कृत का टिप्पण और पुराणसार अन्य ब्रह्मदेव को वसुनन्दि से २५ वर्ष बाद का विद्वान ठहरा कर की रचना की थी। उनके समकालित्व का विरोध किया है। ऐसा करते दूमरे श्रीनन्दिगणि हैं जिनकी प्रेरणा से श्री हुए उनकी दृष्टि केवल बसुनन्दि पर रही, जान पड़ती है। विजय या अपराजित सूरि ने भगवती माराधना की वसुनन्दि का समय वि० सं० ११५० मानने में मुख्तार विजयोदया टीका लिखी। सा० की पुरातन वाक्य-सूची का दरण दिया गया है। तीसरे श्रीनन्दि वे हैं जो सकलचन्द के शिष्य