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अनेकान्त
बाई दोनों तरफ हैं। इससे यह स्पष्ट रूप में कहा जा दुर्लभसेन के अध्ययन के लिये प्रतिक्रमण वृत्ति को लिखाकर सकता है, कि इसमे नट्टल साहू के प्रादिनाथ मदिर के दरबार चैत्यालय के समीप मे स्थित अग्रवालान्वय के अनेक भग्नावशेष होगे।
परमश्रावक सागिया (जिनके पूर्व पुरुष पाटन के निवासी दिल्ली में सं० १३२९ चैत्र वदी दशमी के दिन ग्यासु- थे, साह पाणा भार्या हलो, के पुत्र दिउप और पूना नामके द्दीन के राज्य में पंचास्तिकाय की प्रति दिल्जी मे लिखी
जातीमो के पत्रों ने दरबार में गई१ । जो जयपुर में मौजूद है।
पंचमी व्रत के उद्यापन के लिये सकल संघ को बुलाकर देव___सं. १३७० मे पौष शुक्ला १० गुरुवारके दिन योगिनीपुर शास्त्र गुरु की बड़ी पूजा (महामह) करके सघ की पूजा (दिल्ली) में साधु नारायण पूत्र भीम, पुत्र श्रावक देवधर सपाटाटिकेमा शास्त्रटान के प्रस्ताव मे or ने अपने पढने के लिये देवनन्दि (पूज्यपाद) की तत्त्वार्थ- पुस्तके प्रदान की, साह छाजू और उसकी पत्नी माल्हो तथा वत्ति (सर्वार्थसिद्धि) लिखवाई थी, जिसे गौडान्वय कायस्थ पत्र भीम ने पंचमी का उद्यापन किया। पस्तके पडित पंडित गंधर्व के पुत्र वाहह ने लिखा था। (देखो, उदयपुर गंधर्व के पत्र वाहडदेव ने लिखी। भंडार की प्रति)
मवत् १४१६ मे भगवती पाराधना का टिप्पण पोर संवत १३९१ मे ज्येष्ठ सुधीर गुरुवार के दिन मुहम्मद द्रव्य सग्रह की टीका की प्रतियां लिखवा कर भेट की। शाह के गजकाल मे योगिनीपुर मे अग्रवाल वशी साहू
विक्रम सं० १४९३ मे योगिनीपुर (दिल्ली) के महीपाल के पुत्रों ने ज्ञानावरणी कर्म के क्षयार्थ मोर भव्य
समीप बादशाह फिरोजशाह तुगलक द्वारा बसाये गये जीवों के पठनार्थ महाकवि पुष्पदन्त के उत्तरपुराण की प्रति लिखवाई थी,२ जो आज भी आमेर के शास्त्र भडार
फिरोजाबाद नगर मे, जो उस समय जन, धन, वापी, में सुरक्षित है।
कूप, तडाग, उद्यान प्रादि से विभूषित था, उसमे अग्रवाल
वशी गर्ग गोत्री साह लाखू निवास करते थे। उनकी पत्नी संवत् १३९६ की फाल्गुन शुक्ला पचमी शुक्रवार के
का नाम प्रेमवती था, जो पातिवृत्यादि गुणों से अलकृत दिन योगिनीपुर (दिल्ली) मे महम्मद शाह के राज्य मे
थी। उसमे दो पुत्र हुए खेतल और मदन । खेतल की काष्ठासंघ के विद्वान भट्टारक जयसेन उनके शिष्य भ.
धर्मपत्नी का नाम 'सरो' था, जो सम्पत्ति सयुक्त तथा १सं० १३२९ चैत्र वुदी दशम्यां बुधवासरे अद्य ह दानशीला थी। उससे तीन पुत्र हुए फेरू, पाल्हू और योगिनीपूरे समस्त राजाबलिसमालकृत ग्यासदीन राज्ये वोधा। इन तीनो पुत्री की क्रमशः काकलेही, माल्हाही प्रत्रस्थित अग्रोतक परम श्रावक जितचरन कमल
और हरिचन्दही नाम की तीन पत्निया थी। लाखू के -जैन ग्रन्थ-मूची भा० २ पृ० १४२ द्वितीय पत्र मदन की धर्मपत्नी का नाम 'रतो' था, उसमे २ संवत्सरेऽस्मिन् श्री विक्रमादित्य गताब्दाः सवत् हरधू' नाम का पुत्र उत्पन्न हया था, उसकी धर्मपत्नी १३९१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि गुरुवासरे प्रद्य ह श्री योगिनीपुरे का नाम मन्दोदरी था। खेतल के दूसरे पुत्र पाहू के मडन समस राजावलि शिरोमुकुट माणिक्य खचित नखरश्मो जाल्हा, घिरीया और हरिश्चन्द्र नाम के चार पुत्र थे। सुरत्राण श्री महम्मदसाहि नाम्नि मही विभ्रति सति अस्मिन् इस तरह यह परिवार खुब सम्पन्न था। परिवार के सभी राज्ये योगिनीपुरस्थिता अग्रोतकान्वय नभ श्शांक सा० लोग जैनधर्म का विधिवत् पालन करते थे और प्राहार महिपाल पुत्र: जिनचरण कमल चंचरीक: सा० खेतू फेरा औषध प्रभय तथा ज्ञानादि चारों दानों मे सम्पत्ति का साढा महाराजा तृषा एतैः सा० खेतू पुत्र गल्हा माजा एतो विनिमय करते रहते थे। साह खेतल ने गिरनारि तीर्थ सा० फेरा पुत्र वीधा हेमराज एतैः धर्मकर्माणि सदोद्यम परैः क्षेत्र की यात्रा कर उसका यात्रोत्सव किया था। वह ज्ञानावरणीय कर्माक्षयाय भव्यजनाना पठनाय उत्तरपुराण अपनी पत्नी काकलेही के साथ योगिनीपुर (दिल्ली) मे पुस्तकं लिखापितं । लिखित गोडान्वय कायस्थ पंडित गंधर्व आया था। कुछ समय सुख पूर्वक व्यतीत होने पर साह पुत्र बाहड राज देवेन।
-मामेर भंडार फेरू की धर्मपत्नी ने कहा कि स्वामिन् ! श्रत पञ्चमी