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शान्तिनाथ फागु
कुन्दनलाल जैन एम. ए. भट्टारक सकलकीति १५ वी शताब्दी के सुयोग्य मदमाते वसत की बहार प्राते ही ग्रामीण जीवन मे विद्वान और धर्म प्रचारक सन्त थे। उनके सम्बन्ध में एक अद्भुत ही प्रानः की हिलोर लहराने लगती है, बहुत कुछ लिखा जा चुका है। प्रत. उस पर विराम जिसकी प्रानंदानुभूति कोई अनुभवी रसिक ही कर पाते करते हुए अनेकान्त के पाठको के लिये उनकी हैं। दिन-भर का हारा-थका किसान जब कुछ विधाति हिन्दी भाषा की एक रचना 'शान्तिनाथफाग' जिसका या मनोरजन की पावश्यकता अनुभव करता है ढोलसम्बन्ध जैनियों के १६वे तीर्थकर भगवान शान्तिनाथ के मजीरे, पखावज और झाझ की मनोमुग्यकारी थाप पर जीवन-परिचय से है। नीचे दी जा रही है, प्राशा है पाठक फागे, रसिया, बेली, धूलि मादि विभिन्न लोकसाहित्य की उसका मनन करेगे और शोध-खोज करनेवाले विद्वानो को विधानों को गागा कर मानदातिरेक 'से पुलकित हो उससे सहायता मिलेगी।
उठता है । बुन्देलखंड में तो ईशुरिया की फागे विशेष रूप भ. सकलकीर्ति जी अपने समय के प्रकाड पण्डित तो से प्रसिद्ध हैं। पर ऐसे गीतों या फागों मे शृगारिकता, थे ही साथ ही लोक-प्रवृत्तियों के श्रेष्ठ अध्येता एव अनू- अश्लीलता अथवा व्यावहारिक जीवन की बाह्य दुर्बलतानों भवी थे, जो जानते थे कि संस्कृत भाषा में लिखा गया का समावेश प्रचर मात्रा में हो ही जाता है , प्रत इन्ही साहित्य जन-साधारण के मानस-पटल पर सरलता से बुराइयो पोर दुर्बलतापो को दूर करने के लिए धार्मिक अंकित नही किया जा सकता है, प्रत. जनसाधारण को नेताओं, प्राचार्यो एवं विद्वानों ने धार्मिक कथानो प्रथवा
तत्त्वों को लोकसाहित्य की विभिन्न विधानों में लोकगीनो लोकभाषा मे ही लोकसाहित्य की विभिन्न विधामो मे की धुन के रूप में सुनियोजित कर लोकसाहित्य के रूप में साहित्य सर्जन करने से जनसाधारण को विशेषतया प्रभा- सत्साहित्य को सजना की। वित किया जा सकता है इसीलिए उन्होने वेली, धूलि,
प्रस्तुत रचना इसी आदर्श की परिचायक है। हम फाग, रास प्रादि लोकसाहित्य की विभिन्न विधामो में
रचना मे १६वे तीर्थकर तथा चक्रवर्ती भ. शान्तिनाथ
स्वामी का जीवन परिचय सक्षिप्त रूप से लोकगीत की साहित्य सर्जन किया।
धुन में प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि इसकी भाषा ग्रामीण वे प्रबुद्ध पाठक जो नगरी की प्रौद्योगिकता, व्यस्तता,
है फिर भी सरस एव मनोहारी है। इसमे कही कही कोलाहल एवं भडभडाहट से ऊब कर जब ग्रामों के नीरव, सस्कृत के श्लोक तथा प्राकृत की गाथाये पाई जाती है, शात एवं निश्छल वातावरण मे पहुच कर लोकजीवन बीमार
वैसे सारी रचना मुख्यतया अठीयु और रासछद में रची को प्रेरित करनेवाले लोकसाहित्य तथा लोक नत्यादि में
गई है। संपूर्ण रचना चार ढालों में विभाजित है, इसकी तनिक भी रुचि लेते हैं तथा लोकसाहित्य को विभिन्न
__ भाषा मे गुजराती और राजस्थान को पुट स्पष्ट रूप से विषानों का रसास्वादन कर पानंद विभोर हो उठने हैं। .
शान्तिनाथ फागु विख्यात नसुराषिपाचित पदो विश्वेक चुडामणि रतातीत गुणार्णवोति सुभगः श्री शांति तीर्थकरः। चक्री सर्व सुखाकरोति विमला कामारि विध्वंसक, कामः कामद एव यस्तमसमं नत्वा बुपे बहुगुणान ॥१॥