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अनेकान्त
भाषा को दूर दक्षिण की भाषा समझकर निरपेक्ष भाव व्यक्ति को विविधता और भाव-समग्रता प्रदान करनेवाली से लिया जाता था और जिस केरल प्रान्त को केवल उसी उपाधि के रूप में भाषा को देखनेवालों के लिए यह रूप मे समझा जाता था कि वहाँ राष्ट्रपति का शासन वैविध्य अवश्य ही एक अनुग्रह प्रतीत होगा। उन्होंने है, यहाँ तक कि जिसका उच्चारण कहीं-कही 'करेला' सस्वर कहा कि सुमित्रानन्दन पन्त, उमाशकर जोशी, तक मान लिया जाता है, वहाँ भाषा और देश का वही नजरुल इस्लाम, और जी० शंकर कुरुप एक ही भारतीय आंचल माज देशवासियो के हृदय के इतने निकट पा साहित्यिक परम्परा के विभिन्न नाद है जो समग्र रूप से गये हैं कि महाकवि कुरुप के अभिनन्दन में सब कही देश के विशाल एवं प्रगाध अन्तस्तल के भावो को प्रभिहार्दिकता ही हार्दिकता दृष्टिगोचर हो रही है। व्यक्त करते हैं।
अध्यक्ष डा. सम्पूर्णानन्द ने अपने भाषण मे बताया इसके अनन्तर ही कुरुप ने अपनी "निमिषम्' शीर्षक कि कवियों और विद्वानों का समादर करने की परम्परा रचना का मूल मलयालम मे पाठ किया और श्री बच्चन भारत में प्राचीन काल से चली पाती है। परन्तु प्राज ने उसका हिन्दी रूपान्तर प्रस्तुत किया। महाकवि की तक कोई योजना ऐसी नही रही जिसमे समूचे भारत को एक और रचना 'वन्दनम् परयुक' का हिन्दी रूपातर एक इकाई मानकर किसी भारतीय साहित्य-स्रजेता को 'शतश. धन्यवाद' थी दिनकर ने सुनाया। इसी प्रकार अखिल भारतीय स्तर पर सम्मान किया जा सकता। उनकी रचना बूढा शिल्ली' का अंग्रेजी अनुवाद नैशनल इस प्रभाव की प्रति अब भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा की स्कूल प्राव ड्रामा के निदेशक श्री प्रबाहम अलकाजी गयी है। उन्होंने कहा कि मैं स्वय उन लोगो मे से हूँ द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसी अनुक्रम में महाकवि की जिन पर पुरस्कार-योग्य सर्वोत्कृष्ट कृति के चयन का शिताण्डव' शीर्षक कविता को यामिनी कृष्णमूर्ति ने अन्तिम दायित्व था। सम्भव है किन्ही दूसरे सुयोग्य भावनृत्य के रूप में प्रस्तुत किया। निर्णायकों द्वारा किमी दूमरी पुस्तक का चयन होता,
भारतीय ज्ञानपीठ के मन्त्री श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन ने पर सम्बन्धित सारी कठिनाइयो और सीमानों को देखने
अत्यन्त संक्षेप मे संस्था का परिचय दिया और पुरस्कार हुए हमें विश्वास है कि हमने परने कर्तव्य-पालन में पूरी
विधान की रूपरेखा स्पष्ट की। ज्ञानीठ की विभिन्न निष्ठा से काम लिया है और अपने प्रयास मे हमे सफलता
प्रवत्तियों का उल्लेख करते हए उन्होंने बताया कि एक भी मिली है।
प्रकार से यह साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ की प्रवृत्तियो डा० सम्म र्णानन्द के हाथो पुरस्कार ग्रहण करने के की ही स्वाभाविक परिणति है। बाद महाकवि कुरुप ने साहित्य की विभिन्न समस्यानो पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि जिस प्रकार
इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी की अावश्यकता हो एक रत्न की अनेक मुखिकाएं होती है उमी प्रकार ये तो पापके पत्र पाने पर स्मारिका की एक प्रति भी सेवा विभिन्न भाषाएँ एक ही भारतीय हृदय की अनेक मुखि. मे भेजी जायेगी। काएं है। राजनैतिक भविवेक के कारण भाषामो की
दिल्ली, सोमवार विविधता भले ही बाधा बन रही हो, मगर प्रात्माभि
२१.११.१९६६
प्राशाया ये वासाः ते दासाः सर्व लोकस्य । प्राशा द.सी जेषां तेषां दासायते लोकाः ॥
माशा के जो वास है वे सारे लोक के दास हैं। जिन्होंने अपनी प्राशा को दास बना लिया, उनके लिए सारा लोक दास है। हे पात्मन् ! यदि तू विश्व विजयी बनना चाहता है तो तृष्णा का वास कभी मत बन ।