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एक लाख रुपये का साहित्यिक पुरस्कार
महाकवि जी० शंकर कुरूप को
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रवर्तित देश की सर्वोत्कृष्ट लाख रुपये के चेक के अतिरिक्त रजत-मजूषा में एक मर्जनात्मक साहित्यिक कृति के लिए एक लाख रुपये प्रशस्ति-पत्र और पुरस्कार-प्रतीक स्वरूप 'वाग्देवी' की गशि का पुरस्कार १६ नवम्बर को मलयालम के महा- कास्य-प्रतिमा शंखध्वनि तथा मगल-तिलक के साथ कवि श्री जी. शंकर कुरुप को उनके काव्यमग्रह 'मोटक्कु- समर्पित की गयी । डेढ फुट प्राकार की यह प्रतिमा उस षल' पर समर्पित किया गया। समर्पण समारोह विज्ञान प्राचीन प्रतिमा की मूर्ति है जो ब्रिटिश म्यूजियम मे भवन नई दिल्ली में सम्पन्न हा और देश की विभिन्न मग्रहीत है और सन् १०३५ मे धाराधिपति भोज की भाषापो के प्रमुख साहित्यकार, समीक्षक नया सुबी गजधानी उज्जयिनी मे उनके सभामण्डप की शोभानागरिक सम्मिलित हुए।
विशिष्टता थी जहाँ देश-भर के कवियो-विद्वानो तथा मविधान-विहित देश को चौदह भाषाम्रो की सर्वश्रेष्ठ ।
चिन्तको के सम्मेलन हुमा करते थे। कृति पर दिया जानेवाला यह पुरस्कार भारत का सर्वोच्च
१६ नवम्बर, १९६६ को विज्ञान भवन नई दिल्ली पुरस्कार है और इस प्रकार का परस्कार समर्पण समा- मे मम्पन्न हुए इस ममारोह का सभापतित्व राजस्थान के रोह भारत में पहली बार सम्पन्न हम्रा है। मम्मानित
मनीषी राज्यपाल तथा प्रवर परिषद् के अध्यक्ष डा. काव्य-कृनि 'प्रोटक्कुपल' मन् १९२० मे १९५८ के बीच
सम्पूर्णानन्द ने किया। स्वागत भाषण मे श्रीमती रमा
सम्पूर्णानन्द प्रकाशित साहित्य में सर्वश्रेष्ठ निर्णीत हई है. यह नि जैन ने प्रवर परिषद् के प्रथम अध्यक्ष तथा भारत के प्रवर परिपद् ने सर्वसम्मति से किया था। प्रवर परिपद्
प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद की स्मृति में श्रद्धाजलि के मदस्य है -डा. मम्पूर्णानन्द (अध्यक्ष), प्राचार्य
अर्पित की, जिनके प्रेरणापूर्ण सुझाव पुरस्कार योजना के काकासाहब कालेलकर, डा. नीहार रजन रे, डा०बी० रूप-ग्रहण मे बडे महायक हुए। श्रीमती जैन ने कृतज्ञता गोपाल रेड्डी, डा० करणसिह, डा. हरेकृष्ण महताब,
का भाव प्रकट करते हुए कहा कि ज्ञानपीठ द्वारा उठाये डा०बी० राघवन, डा. रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर,
गये इस कठिन कार्य को सुखद परिणाम तक पहुँचाने का श्रीमती रमा जैन, श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन।
श्रेय डा० सम्पूर्णानन्द के नेतृत्व, प्रवर परिषद् के सदस्यों
तथा देश के साहित्यकारो को ही है। उन्होने बताया कि श्रीमती रमा जैन और श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन पुरस्कार देश की सास्कृतिक एकता और विचार-सामंजस्य, जा प्रदायिनी संस्था भारतीय ज्ञानपीठ के प्रतिनिधि है, जोवन के यथार्थ थे. उन्हें राजनीति तथा अन्य दुराग्रहो जिसकी सस्थापना ज्ञान की विलु'न, अनुपलच पोर ने धमिल कर दिया है। इस सन्दर्भ में प्रस्तुत पुरस्कारअप्रकाशित मामग्री के अनुसन्धान एवं प्रकाशन तथा निर्णय प्रौर यह समारोह विशेष महत्व ग्रहण कर लोकहितकारी मौलिक साहित्य के निर्माग' के उद्देश्य से लेते है। सन् १९४४ मे प्रसिद्ध उद्योगपति श्री शान्तिप्रसाद जैन
समारोह की महत्वपूर्णता को डा.वी.के. नारायण के द्वारा हुई थी। श्रीमती रमा जैन भारतीय ज्ञानपीठ मेनसन, महानिदेशक प्राकाशवाणी ने विशेष रूप स की अध्यक्षा है और श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन उसके मन्त्री।
"चन्द्र जन उसक मन्त्रा। रेखांकित किया। महाकवि जी के जीवन और कृतित्व पुरस्कार समर्पण समारोह में महाकवि कुरुप को एक पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि जिस मलयालम