Book Title: Anekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 309
________________ २८० अनेकान्त और द्वितीय पुत्र साधारण ने जो गुणी और विद्वान था, मन्दिर भी आपके द्वारा बनवाये गये थे। पापकी उदारवृत्ति जिसका वैभव बढ़ा चढा था, उसने शत्रुजय की यात्रा को प्रसिद्ध है। यद्यपि उनके जीवनकाल मे मन्दिरों के सिवाय थी, जिनमन्दिर का निर्माण कराकर हस्तिनापुर की कोई महत्व के सांस्कृतिक कार्य सम्पन्न नहीं हुए, किन्तु उस यात्रार्थ संघ चलाया था। समय के अनुकूल सामाजिक और धार्मिक कार्य तो राजाहरसुखराय लाला हुकूममतराय जी हिसार के सम्पन्न हुए ही है । साधर्मी भाइयों की सेवा के अतिरिक्त पांच पुत्रों में से एक थे। दिल्ली के बादशाह ने उन्हे दीन-प्रनाथों की सेवा वे करना अपना कर्तव्य मानते थे। हिसार से बुलाया था, वे दिल्ली के प्रतिष्ठित नागरिक धार्मिक कार्यो मे उनकी अधिक रुचि थी। वे तेरह पंथ और शाही श्रेष्ठी थे, और उन्हें रहने के लिए शाही की शैली का पूरा अनुकरण करते थे। नये मन्दिर की मकान प्रदान किया गया था। हरसुखराय स्वभावतः गभीर शास्त्र-सभा में प्रति दिन प्राते थे। आपको यह शैली पौर बात बनाने की कला में अत्यन्त प्रवीण एव मिठबोला प्रसिद्ध थी, उसका अनुकरण अन्यत्र भी हमा। सहारनपुर थे। वे शाही खजाची थे, सरकारी सेवामो के उपलक्ष्य में की शैली सुगनचन्द के नाम से प्रसिद्ध है। इन्होने जयपुर उन्हें तीन जागीरे, सनदे तथा सार्टीफिकेट आदि प्राप्त के विद्वान पं० मन्नालालजी से चारित्रसार की हिन्दी हए थे। पाप भरतपुर राज्य के कौसलर (Councilor) टीका का सं० १८७१ मे निर्माण कराया था३ । आपके भी थे। उन्ही के द्वारा धर्मपुरा का नया मन्दिर जो पुत्र पडित गिरधारीलाल थे, जो प्राकृत संस्कृत के अच्छे पच्चीकारी मे अनूठा है, बनवाया था। और विशाल विद्वान थे। नये मन्दिर को शास्त्र-सभा मे वे स्वय शास्त्र शास्त्र भंडार का भी संग्रह किया था मुसलमानी शासन पढने थे और जनता को उमका अर्थ बतलाते थे। उनकी काल में सरे बाजार जैन रथोत्सव निकलवाना साधारण शैली और वक्तत्व कला उच्च दर्जे की थी। वे अच्छे काम नही है। इनके पुत्र सेठ सुगनचन्द जी थे, जो भाग्य वक्ता और समाजसुधारक थे। उन्होंने दिल्ली में अग्रवाल शाली होने के साथ साथ प्रत्यन्त उदार और प्रभावशाली दिगम्बर जैन पचायत की स्थापना की थी। इनके अतिथे, वे अपने पिता के कार्यों में भी सहयोग देते थे । समाज रिक्त दिल्ली में और भी अनेक सज्जन हुए है, जिन्होंने मे तो उनकी प्रतिष्ठा थी ही, किन्तु सरकार में भी उनकी जैनधर्म, जैन सस्कृति के विकास तथा म्युनिसिपल कमेटी मान्यता कम नहीं थी। इनके समय दिल्ली पर अग्रेजी शिक्षण सस्थानों आदि मे योगदान दिया है और दे रहे सरकार का प्रभुत्व हो गया था। इन्होने चकि अग्रेजो हैं । उनमे से कुछ के नाम निम्न प्रकार है :को पार्थिक सहयोग प्रदान किया था, इस कारण भी लाला बलदेवसिंह, लाला हजारीमल जौहरी, लाला इनकी प्रतिष्ठा में चार चाद लग गये थे । लाला हरमुग्व पारमदास रायबहादुर मल्तानसिह रायसा० वजीरा सिंह राय जी ने जब हस्तिनापुर के मन्दिर का निर्माण करायार गासाहब बा० प्यारेलाल एडवोकेट, लाला मेहमिह, तब उसमे भापका पूरा सहयोग रहा। पौर मन्दिर बन ला० डिप्टीमल, ला० उल्फनराय, डा० चम्पतराय जेना, जाने के बाद उसका बड़ा दरवाजा उन्ही की सूझबूझ का यादीश्वर लाल, ला० भीकराम ग्रादि सज्जनो ने अपनी ही परिणाम है। उसे प्रःपने ही निर्माण कराया था। नई शक्त्यनमार जनतोपयोगी कार्य किये है। साथ ही सामादिल्ली जयसिंहपुरा का मन्दिर स्वय प्रापने बनवाया था, जिक और धार्मिक कार्यों में सहयोग दिया है। इस समय उसके लिये जयपुर राज्य की भोर से मापको जयसिह के ३ ता कारय थिरता तिहिपाय, सुगुनचन्द के कहे सुभाय । दीवान मंधी अथाराम की मार्फत १.बीघा जमीन प्रदान चरितसार ग्रन्थ की भाष, वचनरूप यह करी सुभाय ।। करने का पर्वाना मिला था। शहादरा और पटपड़गज के X X X X १. इनके विशेष परिचयके लिए देखे अने. वर्ष१५ कि.१ सवत् एक सात अठ एक, माघ मास सित पंचमी येक । २ देखो, अनेकान्त वर्ष १२ कि.५ मे प्रकाशित हस्तिनापुर मंगल दिन यह पूरण करी, नन्दो विरधो गुणगण भरी। का बड़ा जैन मन्दिर लेख। -चारित्रसार

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