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अनेकान्त
का गुप्तकालीन एक अभिलेख है, जो बहुत ही महत्त्व- 'नलगिरि' और 'नलपुर' भी कहा जाता था। इसका पूर्ण है।
इतिवृत्त ग्वालियर दुर्ग के साथ सम्बन्धित रहा है । वि. "सिद्धो को नमस्कार, श्री संयुक्त गुणसमुद्र गुप्तान्वय की १०वीं शताब्दी के अन्त में दोनों दुर्ग कछवाहा राजके श्रेष्ठ राजामों के वर्तमान राज्य शासन के १०६ वें पूतों के अधिकार में चले गये थे। वि.सं. ११८६ में वर्ष और कातिक महीने की कृष्ण पंचमी के दिन गुहाद्वार उस पर प्रतिहारों का अधिकार हो गया था। लगभग में विस्तृत सर्पफण से युक्त शत्रुओं को जीतने वाले जिन एक शताब्दी शासन करने के बाद सन् १२३२ मे अल्तश्रेष्ठ पार्श्वनाथ जिन की मूर्ति शम-दमवान् शंकर ने मश ने ग्वालियर को जीत लिया । तब प्रतिहारों ने नरवर बनवायी, जो आर्य भद्र के अन्वय का भूषण और के दुर्ग मे शरण ली। वि० को १३वीं शताब्दी के अन्त मार्य कुलोत्पन्न प्राचार्य गोशर्म मुनि का शिष्य तथा दूसरों में दुर्ग को चाहडदेव ने प्रतिहारो से जीत लिया, जो नरद्वारा अजेय रिपुध्न मानी अश्वपतिभट सधिल और वर के राजपूत कहलाते थे। भीमपुर के वि० सं० १३१६ पद्मावती के पुत्र शकर इस नाम से लोक मे विश्रुत तथा के अभिलेख में इस वंश के सम्बन्ध मे कुछ सूचनाएँ की शस्त्रोक्त यतिमार्ग में स्थित था और वह उत्तर कुरुवो के हैं। और उसका यज्वपाल नाम सार्थक बतलाया है। सदृश उत्तर दिशा के श्रेष्ठ देश में उत्पन्न हना था, उसके तथा कचेरी के सं० १३३६ के शिलालेख में जयपाल से इस पावन कार्य में जो पुण्य हुमा हो वह सब कर्म रूपी उदभुत होने से इस वश को 'जज्जयेल' लिखा है। नरवर शत्रु-समूह के क्षय के लिए हो", वह मूल लेख इस प्रकार और उसके पास-पास के उपलब्ध शिलालेखों और
सिक्कों से ज्ञात होता है कि चाहड़देव के वश में चार १. नमः सिद्धभ्यः [u] श्री संयुतानां गुणतोयधीनां
राजा हुए हैं। चाहड़देव, नरवर्मदेव, भासल्लदेव, और ___गुप्तान्वयानां नृपसत्तमानाम् ।
गणपति देव । चाहडदेव ने नलगिरि और अन्य बड़े पुर २. राज्ये कुलस्याधि विवर्द्धमाने षड्भियुतवर्षशतेथमासे
शत्रुषों से जीत लिये थे। नरवर में इसके जो सिक्के (1) सुकार्तिके बहुल दिनेथ पचमे ।
मिले हैं उनमे स० १३०३ से १३११ तक की तिथि ३. गुहामुखे स्फट विकटोत्कटामिमां, जितद्विषो जिनवर
मिलती है । चाहड़ के नाम का एक लेख स. १३०० पाश्वसजिका, जिनाकृति शम-दमवान ।
का उदयेश्वर मन्दिर की पूर्वी महराब पर मिलता है. ४. चीकरत् (1) प्राचार्यभद्रान्वयभूषणस्य शिष्यो
उसमे उसके दान का उल्लेख है। नरवमं देव भी बड़ा ह्यसावार्य कुलो द्वतस्य, प्राचार्य गोश ।
प्रतापी और राजनीतिज्ञ राजा था, जैसाकि उसके निम्न ५. र्म मुनेस्सुतस्तु पद्मावताश्वपतेन्र्भटस्य (1) परै - रजेयस्य रिपुघ्न मानिनस्ससघिल ।
१. प्रस्य प्रताप कनकैरमलयंशोभि६. स्येतित्यभिविश्रुतो भुवि स्वसज्ञया शकर नाम शब्दितो मुक्ताफलैरखिलभूषण विभ्रमाया। विधान युक्त यतिमार्गमस्थित. (u)।
पादोनलक्ष विषयक्षिति पक्ष्मलाक्ष्या, ७. सउत्तराणां सदृशे कुरूणा उद्ग दिशा देशवरे प्रसूत. । मास्ते पुरं नलपुरं तिलकायमानम् ॥ ८. क्षयाय कारि गणस्य धीमान् यदत्र पुण्यं तद पास
-भीमपुर शिलालेख १४ सर्ज (1)
'नलगिरि' का उल्लेख कचेरीवाले प्रभिलेख मे -फ्लीट, गुप्तप्रभिलेख पृ०२५८ मिलता है, यथाइस लेख में उल्लिखित प्राचार्यभद्र और उनके अन्वय 'तत्रा भवन्नृपतिरुपतरप्रतापः में प्रसिद्ध मुनि गोशर्म, कहाँ के निवासी थे और उनकी श्रीचाहडस्त्रिभुवन प्रथमानकीतिः । गुरु परम्परा क्या है? यह कुछ मालूम नहीं हो सका।
दोर्दण्डचडिमभरेण पुरः परेभ्यो
येनाहृता नलगिरि प्रमुखागरिष्ठाः ।।' यह एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थान हैं। नरवर को
-देखो, कचेरी अभिलेख सं० १३३९