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स्वामी तुम और शान्ति का उपाय
अंग्रेजी के एक कवि ने एक छोटी-सी कविता में इस प्रवार के भाव बडी रोचक पद्धति से बता दिए हैं। दुगत्मा परमम्पत्ति के हरण को बलात्कार किसी-न-किसी मिय मे कर डालने की चेष्टावे करते ही रहते है जंगी कि कुछ दिन पूर्व चीन ने की थी अथवा अभी पाकिस्तान जंगी चेष्टाओं में निरत है कवि लिखते है कि निमन्देह हमारे पर्वतों की भेडेट-पुष्ट होती है पर हमारे पड़ौसी प्रान्त की भेड़े विशेष मीठी होती है। प्रत हमने अपने पराक्रम कर दिया और उसका शिर धौर दह उसकी भंडों को 'बलात्कार' छीनकर अपने अधीन कर लिया।
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जिन्होंने अगणित नरेशों के जीवनों की प्रशस्त अथवा प्रशस्त परिणतियों को ध्यानपूर्वक जानकर उनके सुमरणो अथवा कुमरणो को सूक्ष्मता मे जान लिया है वे टम सिद्धान्त के निश्चय पर समय पहुँच चुके होंगे कि अत्याचारी शासको के मरण बड़े शोचनीय संक्लेशों मे होने है । जो व्यक्ति जितना ही अधिक ग्रहिसक, सरलपरिणामी लोकोपकारी और पवित्र जीवन सम्पन्न रहता है यमराज उसका उतना ही अधिक सम्मान किया करता है तथा कथित विश्व विजेता सिकन्दर ने सहयों प्रामों को खण्डहरो के रूप का बना दिया था, लाखों मानवों के रक्त मेसु को प्लावित कर दिया था पर तीस वसुन्धरा वर्ष के पूर्व ही जब वह काल की ताडना से मृत्युआयुष् शय्या पर व्यथित हो रहा था, उसे अपार और असह्य वेदनाओं ने ही धार रोदन करनेके लिए विवध किया था। हम लोगों के जीवनकाल 'कर्ती' हिटलर की ही दशा को विज्ञयापक जान ने अपने क्षणिक दिन और दानवीय । दाक्तियों के मद में विश्वभर को मातङ्क में डाल देने वाले, मैकडो नगगे की भी समृद्धि और गणित मानवो को यमलोक पहुँचा देने वाले हिटलर का फिर पता नही चल काकि अपने कृत्यों के उसे कहाँ कहाँ कैसे कैसे फल भोगने पडे । कोई भी शासक अपने पद के अधिकार के मद में परराष्ट्रों के ऊपर आक्रमण कर सकता है, पर उसे यह अवश्य सोच लेना चाहिए कि जितना ही अधिक वह अत्याचार औौर पर पीडन करेगा; उतना ही अधिक संवेमय उसका मरण होगा। अगणितों को दी हुई
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प्रचार पीढ़ा में मरते समय वा धागामीभवों में उसे कई गुने रूप में भोगनी ही पड़ेगी ।
अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि ने सरले ने एक हृदय-स्पलिनी कविता में बड़ी गहरी बात कही है। उसे कविता का शीर्षक हैं सब को समानतल पर ला देनी वाली मृत्यु । कवि ने मर्मभेदी वाक्यों मे लिखा है कि मृत्यु एक ऐसी निप्पक्ष निर्णायक है जो राजा और रडू में भेदभाव न करके केवल उनके सत्कर्मों और दुष्कर्मों का लेखा लेती है। वे लिखते है कि राज्य वैभवों का मद सर्वथा निशधार है। ये वैभव मृत्यु की यातनाओंों से बचा लेने में सर्वथा अकिञ्चित्कार हैं। राजामों के छत्रचामर मादि उसी प्रकार पड़े रह जाते है। जिस प्रकार कि एक किसान की खुरपी धौर हँसिया । तुम युद्ध में अपनी भुजाम्रों की वीरता से प्रगणितों का सहार कर सकते हो या का सकते हो अपनी विजय पताका भारोपित कर सकते हो पर एक दिन ऐसा प्रवश्य प्रावेगा जब तुम दीन, दयनीय एव दुःखित दशा में मृत्यु के समक्ष रेंगते हुए चलने के लिए विवश होगे। अपनी अधिकार-शक्ति के मद में निन्द्य काम न कर बैठो। उनका फल केवल तुम्हें ही भोगना पड़ेगा। देखो, एक न एक दिन मनाथ की भाँति तुम मृत्यु की वलिवेदिका के समक्ष खीचे जानोगे श्रौर वहाँ तुम्हारी बनि बड़ी निष्टुरता से बढ़ाई जायेगी। केवल पवित्र जीवन व्यतीत करने वालों का ही वहां सम्मान होगा उनकी ही सुगन्ध दूसरों को प्राच्छादित करेगी।
अब नरेशो के स्थानापन्न प्रधान मंत्री गण हो रहे है उनका कर्तव्य है कि वे उक्त पंडियों का रहस्य मोचते रहे ।
जैनागम में भरत चक्रवर्ती और उनके ही सगे छोट भाई पोदनपुर नरेश बाहुबलि स्वामी के बीच के युद्ध का बडा कोलपूर्ण विवरण पाया जाता है। दोनों भाइयो की मेनाये सुमन खडी है भाई-भाई युद्ध करने पर कटिबद्ध हैं । इन्द्र ने उन्हें सम्मति दी कि इन विचारे वेतनभोगी मैनिकों के हृदयों में तो पारम्परिक कपाय है नहीं । केवल तुम दोनों भाई ही अहिंसक युद्ध कर लो । प्रथम दृष्टि युद्ध करके देखो वीरता भरी दृष्टि से परस्पर को देखो जिसकी दृष्टि शीघ्र निमीलित हो जाय वह
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