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जन प्रतिमा सक्षम
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में कहा है कि बारह मंगुल से कम ऊंची प्रतिमा को मंदिर न्यूनाधिक अंगवाली प्रतिमा स्वपक्ष पौर परपक्ष दोनों को में न रखा जाय।
ही कष्ट देनेवाली होती है। रौद्र प्रतिमा के निर्माण मपूज्य प्रतिमाएं
करानेवाले की मृत्यु होती है और अधिक मंगवाली प्रतिमा
से शिल्पी की। दुर्बल अंगवाली से द्रव्य नष्ट होता है हीनांग भोर मधिकांग दोनों ही प्रकार की प्रतिमाएं
पौर कृषोदर प्रतिमा दुर्भिक्ष का कारण होती है। ऊर्चमपूज्य होने के कारण वसी प्रतिमानों के निर्माग का
मुखो प्रतिमा से धननाश होता है और तिरछी दृष्टिवाली सर्वथा निषेध किया गया है। शुक्रनीति के अनुसार
प्रतिमा पूज्य है। प्रतिगाढ़ दृष्टिवाली प्रतिमा अशुभ हीनांग प्रतिमा निर्माण करानेवाले की और अधिकांग
और प्रषोदृष्टिवाली प्रतिमा विघ्नकारक है। प्रतिमा शिल्पी की मृत्यु का कारण होती है२ । बृहत्संहिता
वसुनन्दी ने जिनप्रतिमा की नासाग्रनिहित, शान्त, (५७१५०-५२), मत्स्यपुराण (२५८।१६-२१) और सम
प्रसन्न, निविकार और मध्यस्थ दृष्टि को उत्तम कहा है। रागण सूत्रधार (७७१७-८) मे भी प्रतिमा के दोषों का
प्रतिमा की दृष्टि न अत्यन्त उन्मीलित हो और न वर्णन है । प्रतिमा के वक्रांग, हीनांग या अधिकांग होनेको
विस्फुरित ही हो। प्रतिमा की दृष्टि तिरछी. ऊची या जैन परम्परा में भारी दोष गाना गया है। वास्तुसार
नीची न हो, इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये । प्रकरण और प्रतिष्ठासारसंग्रह में सदोष प्रतिमा के
जिनबिम्ब की दृष्टि तिरछी होने से धननाश, विरोध और निर्माण और पूजन से होनेवाली हानियों का विस्तार से
भय होता है, अधोदृष्टि से पुत्र का नाश तथा ऊर्ध्वदृष्टि वर्णन है। जयसेन ने जिनबिम्ब को नासाग्रदृष्टि और
से पत्नीवियोग होना बताया गया है। यदि दृष्टि स्तब्ध उग्रता प्रादि दोषों से रहित कहा है। यदि प्रतिमा के
हुई तो शोक, उद्वेग, संताप और धननाश हो सकता है। अंग छोटे बडे बनाये जाते है तो निर्माता को हानि
शान्त दृष्टि सौभाग्य, पुत्र, धन, शाति और वृद्धि देती पहुचती है ।३
बास्तुप्रकरण के अनुसार, यदि प्रतिमा टेढ़ी नाकवाली ४. बहु दुक्ख वक्कनासा हस्मंगा खययरी य नायब्वा । हो तो बहुत दु.ख देती है, उसके अग छोटे हों तो क्षय- नयणनासा कुनयरणा अप्पमुहा भोगहाणिकरा ॥ कागे होती है, नेत्र खराब हो तो नेत्रनाशक और यदि
कडिहीणाऽयरियहया सुयबधव हणई होणजधा य । मुख छोटा हो तो भोगरे की हानि करती है। उसी प्रकार
हीणासण रिडिहया घणक्खया होणकरधचरणा ।। यदि प्रतिमा की कमर हीनप्रमाण हो तो प्राचार्य का नाश
उत्ताणा प्रत्थहरा वंकग्गीवा सदेमभगकरा।
अहोमुहा य सचिंता विदेसगा हवह नीचच्चा।। होता है, जघा क्षीण हो तो पुत्र और मित्र का क्षय होता
विसमासण वाहिकरा रोरकरण्णायदध्वनिप्पन्ना। है। प्रासन हीन होने से ऋद्धियों का विनाश होता है
हीणहियंगप्पडिमा सपक्ख परपक्वकटकरा॥ और हाथ पर हीन होने से धन का क्षय होता है।
पडिमा रउद्दजा सा करावयं हति सिप्पि अहियंग प्रतिमा की गर्दन उठी हुई हो तो भी धन का क्षय होता
दुब्बल दवविरणासा किसोप्रग कुणइ दुढिभक्ख है। ग्रीवा वक हो तो देश का विनाश होता है । अधोमुख प्रतिमा से चिन्ताएं बढती हैं तथा ऊंच नीच मुख
उड्ढमुही घणनासा अप्पूया तिरिदिट्टि विन्ने य। बाली प्रतिमा से विदेशगमन होता है। विषम प्रासन
पइघट्टदिट्ठि असुहा हवइ प्रहोदिट्टि विग्धव ग ।। वाली प्रतिमा से व्याधियां उत्पन्न होती हैं । भन्यायोपात्त
वास्तुसारप्रकरण २०४६ : धन से निर्माण कराई गई प्रतिमा दुर्भिक्ष फैलाती है।
५. नात्यन्तोन्मीलिता तथा ? न विस्फुरितमीलिता
तिर्यगूर्वमधोदृष्टि वर्जयित्वा प्रयत्नतः ।। १. रूपमंडन, १११४
नासाप्रनिहिता शान्ता प्रसन्ना निम्विका रिका । २. शुक्रनीति, ४१५०६
वीतरागस्य मध्यस्था कर्तव्या दृष्टि चोत्तमा । ३. जयसेनकृत प्रतिष्ठापाठ, १८२
प्रतिष्ठासारसंग्रह ४७३-४