________________
निर्वाण काण्ड की निम्न गाथा पर विचार
पं० दोपचन्द पाण्ड्या
निर्वाण विषयक रचनामो में निर्वाण भक्ति के अति- सुग्रीव के ही भाई हैं । किन्तु उनका नाग कुमार के साथ रिक्त प्राकृत निर्वाणकाण्ड एक महत्वपूर्ण रचना है। सामंजस्य कैसे बिठाया जा सकता है। साहचर्याच्च यद्यपि उसका रचनाकाल निश्चित नहीं है। फिर भी वह कुत्रचित्' अमरकोष के इस परिभाषा वाक्य के अनुसार अपना खास वैशिष्टय रखता है। उक्त काण्ड में निर्वाण अथवा प्रकरण या उक्त वाक्य के अनुसार उक्त गाथा का क्षेत्रों के अतिरिक्त कुछ अतिशय क्षेत्रो को भी बादमें जोड़ पाट 'वाल महावाल' होना चाहिए। दिया गया है। यह कार्य कब हुमा यह कुछ ज्ञात नही है। जिसका अर्थ व्याल महाण्याल होगा। क्योंकि नागप्रस्तु, प्राज निर्वाण काण्ड की निम्न गाथा पर विचार
कुमार के साथ व्याल महान्याल नामक दोनों राजकुमार करना ही इस लेख का प्रमुख विषय है :
दीक्षा लेकर तपश्चरण द्वारा कर्म नष्ट कर मुक्त हुए थे। णायकुमार मुणिदो बालि-महाबालि चैव प्रज्झया।
ऐसा मल्लिषेण के नागकुमार चरित्र में उल्लेख है। नागअट्ठावय-गिरि-सिहरे णिव्वाण-गया णमो तेसि ॥१५॥
कुमार मगधदेशस्थ कनकपुर के राजा जयंधर की रानी इस गाथा का अनुवाद भैया भगवतीदास प्रोसवाल
पृथ्वी देवी का पुत्र था जिसका जन्म नाम प्रतापंधर था, ने स. १७४७ मे निम्न प्रकार किया है
किन्तु बावडी में गिर जाने पर सौ से सरक्षित होने के वालि महावालि मुनि दोय, नागकुमार मिले त्रय होय।।
कारण उसका नाम नागकुमार प्रसिद्ध हो गया था। यह श्रीप्रष्टापद मुक्ति मझार, ते बंदू नित सुरति सम्हार ।१५ बडा पुण्यशाली था। व्याल और महाव्याल दोनों भाई
वीरसेवामन्दिर सरसावा से प्रकाशित शासन चतुस्त्रि- उत्तर मथुरा के राजा जयवर्मा और जयावती देवी के पुत्र शिका के परिशिष्ट पृष्ठ २७ पर १० दरबारीलाल कोठिया थे। वे विज्ञान से युक्त और संग्राम करने मे प्रवीण तथा ने कैलाश गिरि का परिचय देते हुए लिखा है कि उनके महा सुभट थे। ये दोनो ही नागकुमार के अनुचर के बाद मे नागकुमार वालि और महावालि आदि मुनिवरों ने रूप में साथ रहे हैं। और दोनो ने ही नागकुमार के साथ भी वही से सिद्ध पद पाया था।
दीक्षित होकर कैलाश पर्वत पर तपश्चरण द्वारा मुक्ति क्रियाकलाप के सम्पादक प० पन्नालालजी सोनी ने प्राप्त की थी। इसमे स्पष्ट है कि निर्वाण काण्ड की उस उक्त गाथा का सस्कृत अनुवाद करते हुए "नागकुमार गाथा मूल पाठ 'बालि महाबालि' अशुद्ध है। और सभवतः मुनीन्द्रो, वालि महावालिश्च प्राध्येयाः ।।" दिया है। उस पर से ही यह गलत धारणा बनी है। और भगवती
इन चारों उल्लेखों के प्रकाश मे लगता है कि प्रायः दास का उक्त अनुवाद भी सदोष है। ऊपर के समस्त जैन जनता की यही धारणा बनी हुई है कि ये बालमुनि विवेचन से स्पष्ट है कि निर्वाण काण्ड की उस गाथा के सुग्रीव के भाई ही हैं। प्राचार्य रविषण के पद्मचरित के मूल पाठ में मशोधन कर 'वाल महावाल' पाठ बना लेना अनुसार जिन्होंने कैलाश गिरि पर घोर तपश्चरग किया चाहिए। ऐसा करने से प्रर्थ की सगति बन जायगी। पौर रावण के कोप से कैलाश गिरि के नाश को बचाया प्राशा है विद्वान इसी प्रकार प्रचलित पाटो में जो अशुद्धियां था। तथा अपने पैर के अंगूठे को जरा सा दबा दिया था पाई जाती है. उनके परिमार्जन करने का प्रयत्न करेंगे। जिसके भार से दब कर दशानन रोने लगा था और इसी १. तहो वाल महावालक पुत्त, विण्णाण जुत्त सगामधुत्त । से उसका नाम 'रावण' प्रचलित हो गया था। पद्मचरित पुरवर कवाडणिह वियडवच्छ, थिर फलिहबाहुपाय विरच्छ। के अनुसार मेरी तथा अन्य विद्वानों की यह धारणा थी
पुष्पदन्त नागकुमार चरिउ ४-१ कि प्रस्तुत बालि मुनि मोक्ष गए। वे बालि मुनि सभवतः २. देखो मल्लिषेण के नागकुमार चरित का अनु० पृ० ७८