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अनेकान्त
से नहीं देखा है, न उसके सामने कोई प्रत्यक्ष-दर्शी व्यक्ति दिल्ली बसाइ जाने का भी स्पष्ट उल्लेख सामने प्राता है। का साक्ष्य ही उपस्थित था। फिर यह गुटका जहांगीर शासकों की नामावली में अनेक नाम सदिग्ध हैं, क्योंकि की मृत्यु के केवल २६ वर्ष बाद वि. स. १७१० में उनका अन्य साधनों से उपलब्ध नामों के साथ सामञ्जस्य लिखा गया है अतः यह निश्चित ज्ञात होता है कि जहा- नही बैठता है । विशेष विवरणमें जो इतिहास-प्रसिद्ध नामो गीर की मृत्यु के समय लेखक जीवित था और उसको का उल्लेख किया गया है, उसके लिए मैं मुशी देवीप्रसाद अवस्था भी नौजवानी की रही होगी।
लिखित दिल्ली शासकों की वंशावली का प्राभारी हूँ। इस प्रकार गुटके के उद्धरण किये गये शासक पट्टावली नामो के निर्णय करने में मुझे स्थानीय पटेल हायर लेख से सं०८०६ से लेकर १६८४ तक के ८७५ वर्ष के सेकेण्डरी हाई स्कूल के हेडमास्टर श्री दुर्गाप्रसाद जी शर्मा भीतर होने वाले दिल्ली के शासको पर और वहां होने एम. ए. का साहाय्य प्राप्त हुआ है, जिसके लिए मैं उनका वाली लड़ाइयो पर एक नवीन ही प्रकाश पड़ता है तथा भी कृतज्ञ हूँ।
दिल्ली के सम्बन्ध में
दिल्ली के सम्बन्ध में अब तक जो सामग्री उपलब्ध हुई है, वह प्रकाशित की जा चुकी है। प्रस्तुत पट्टावली में कोई खास विशेषता नहीं है, फिर भी हमने पाठकों की जानकारी के लिये प्रकाशित की है। आवश्यकता है उमके संकलन एवं अध्ययन की। दिल्ली और दिल्ली की राजावली अनेकान्त के पाठवे वर्ष की दूसरी किरण मे तुलनात्मक टिप्पण के साथ प्रकाशित की जा चुकी है। उसके बार दिल्ली की 'दोहा राजावली' में स. १६८७ मे भगवतीदास अग्रवाल द्वारा रचित जैन सन्देश के शोधांक ११ मे १ जून १९६१ के अंक में प्रकाशित हो चुकी है। सन १९६३ मे 'इन्द्रप्रस्थ' नाम का एक संस्कृत प्रबध डा० दशरथ शर्मा द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हो चुका है। साथ ही राजस्थानी पत्रिका के भाग ३ अंक ३-४ मे "दिल्ली के तबर राज्य' पर एक लेख उक्त डाक्टर सा० का भी प्रकाशित हा है। उसके परिशिष्ट मे तबर वशावलियां भी दी गई है। इन सब मे भगवतीदास की उक्त 'दोहावली' बहुत सुन्दर है, जिसके प्रत्येक दोह, में राजा का नाम, राज्यकाल के वर्ष, महीना, दिन और घड़ी तक का उल्लेख किया गया है। दिल्ली के शिलालेख से यह बात सिद्ध है कि दिल्ली को अनंगपाल द्वितीय ने बसाया था जो तोमरवशी था । दिल्ली पर तोमरवशियो का राज्य सं० १२१६ तक रहा है । उसके बाद वे सूबेदार के रूप मे कुछ समय दिल्ली पर शासन कर सके हैं। स० ११८६ मे दिल्ली मे अनगपाल तृतीय का गज्य था, उस काल के कवि श्रीधर द्वारा रचे गये पार्श्वपुराण में दिल्ली और अनगपाल का अच्छा वर्णन किया है । स० १२२३ मे मदनपाल नामक तोमर राजा को मृत्यु खरतरगच्छ की पट्टावली के अनुसार मानी जाती है । स० १२१६ से १२४६ तक दिल्ली पर चौहानो का अधिकार रहा । १२४६ से सन् १८०३ तक मुसलमानों का शासन रहा है। १८०३ से १९४७ तक अंगरेजों का राज्य रहा। पौर १९४७ में कांग्रेस का राज्य हो गया था, जो अब तक मौजूद है। और आगे भी चलेगा । आवश्यकता इस बात की है, दिल्ली पर प्रकाशित साहित्य का अध्ययन कर उसका सिलसिलेवार इतिहास लिखा जाय। उससे दिल्ली के शासकों का व्यवस्थित इतिहास प्रकाश में मा सकता है, और वह कई पीढ़ी के युवकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
--सम्पादक