________________
२३८
अनेकान्त
सद्-विहारे-परहताम् । गन्ध [-धूप]-माद्य-उपयोगाय २५. दाना च-छे योनुपालनं [[+] विन्ध्य
१४. [तल-+] माटक निमिताभ-तत्र-ऐव पाटविष्व-प्रनम्बुषु शुष्क-कोटर-वासिन [1] कृष्णबट-गोहाल्यां वास्तु-द्रोणवापम्-अध्य-द्ध क्षेत्राव-जम्बु- प्राहिनो, हि जायन्ते देव-दायं हरन्ति ये [1] देव-प्रावेश्य-पृष्ठिम-पोत्तके द्रोणवाप-चतुष्टयं
लेख का सारांश १५. गोषाट पुजाद-द्रोणवाप-चतुष्टयं मूल-नागि- नाथ शर्मा नामक ब्राह्मण और उसकी धर्मपत्नी रामी रट्र-प्रावश्य-नित्व गोहालीतो द्रोणवाप-दयम्-प्राढवा ने पुण्ड्रवर्द्धन के प्रायुक्तक (District officer) जिला [प] य-प्राधिकम् इत्य्-एवम्प्र
अफसर और नगर श्रेष्ठी (Mayor) के निकट जा निवेदन १६. ध्यर्द्ध क्षेत्र+कुल्यवापस-प्रार्थयते-ब न कश्चिद्=
किया कि स्थानीय प्रचलित रीत्यानुसार उनको दक्षिणांशक विरोधः गुणस्-तु यत्-परम-मट्टारक-पादानाम्-प्रत्ये- बीथी और नागिरट्ट मण्डल में अवस्थित चार विभिन्न मोपचयो धर्म-षड्-भाग-पाप्याय
ग्रामों की १॥ कुल्यवाप भूमि के मूल्यस्वरूप तीन दीनार १७. नञ्-च भवति तद-एवन्=क्रियताम इत्य- अधिष्टोन प्रधिकरण (city council) में जमा करा देने अनेन्प्रावधारनाxक्क्रमेण-पास्माद् -ब्राह्मण -नाथ- की अनुमति दी जाय । क्योकि वटगोहाली के विहार के शर्मत एतद्-मा--रामियाश्-च दीनार-त्र
प्रहन्तों की पूजा के प्रयोजनीय चन्दन, धूप, पुष्प, दीप के १८. यम्-प्रायीकृत्य-ऐताम्या विज्ञापितक-क्रम- निर्वाहार्थ तथा निर्ग्रन्थाचार्य गुहनन्दि के विहार में एक मोपयोगाय-प्रोपरि-निर्दिष्ट-ग्राम-गोहालि-केषुः तल विश्राम स्थान निर्माण कराने के लिये यह भूमि सदा के वाटक-वास्तुना सहक्षेत्र
लिये दान दी जायगी। इस विहार के अधिष्ठाता बनारस १९. कुल्यवाप प्रध्यौं क्षय-नीवी-धर्मण दत्तः कु१ के पञ्चस्तूप निकाय सघ के प्राचार्य गुहनन्दि के शिष्य , द्रो [+] तद्न्युष्माभिः स्व-कर्मण पाविरोधिस्थाने प्रशिष्य हैं। षट्क नडे-प्रप
मूमि परिमारण २०. विच्छय दातव्यो क्षय-नीवी-धर्मेण च शश्वद= पृष्ठिम-पोत्तक, गोवाट पुञ्जक और नित्व गोहाली प्राचन्द्र-प्रावक-तारक-कालम् अनु-पालयितव्य इति[+] ग्रामो मे क्रमानुसार ४, ४ और २॥ द्रोणवाप परिमाण सम १०० ५.१
क्षेत्र और वाट गोहाली की १।। द्रोणवाप परिमाण पावस२१. माघ दि७ [i+[ उक्त ज्-च भगवता व्यासेन भूमि । + स्व-दत्ता पर-दत्ता वा यो हरते वसुन्धराम् [+] (अधिष्ठान अधिकरण) सभा ने प्रथम पुस्तपाल
२२. स विष्ठायां क्रिमिर१० भूत्वा पितृभिस्-सह (Recordkeeper) दिवाकरनन्दि से परामर्श किया। पच्यते [u+] पष्टि वर्ष-सहस्राणि स्वर्गे वसति भूमिद. पस्तपाल ने बताया कि इस कार्य मे कोई प्रापत्ति नही [+]
है । दूसरे राजकोष में कुछ प्राय प्राप्ति के अतिरिक्त इस २३. आक्षेप्ता चप्रानुमन्ता च तान्य-एव नरके
दान से जो पुण्य होगा उसका षष्ठांश पुण्य महाराज को वसेत् [13] राजभिर्-व्वहु-भिदत्ता दीयते च पुन
प्राप्त होगा, अस्तु सभा ने ब्राह्मण दम्पति के प्रस्ताव को पुनः [1+] यस्य यस्य
स्वीकार कर लिया और भूमि हस्तान्तर को लिपिबद्ध २४ यदा भूमि११ तस्य तस्य तदा फलम् [u+]
किया। पूर्वदत्तां द्विजातिभ्यो य तनाद-रक्ष युधिष्ठिर [+] महीम्=महिमताम् श्रेष्ठ
विभिन्न ग्रामों के (जहां ये क्षेत्र थे) प्रधानों को सभा
ने क्षेत्रों की चौहद्दी निर्देश करने के लिये कहा । ९. अहंताम् ४ स्व-कर्षणा विरोधी स्थाने
इसकी तिथि माघ कृष्णा ७ गुप्ताब्द १५६ (सन् ४७९) १०. क्रमिर पढ़िए । ११. भुमिस पढ़िए ।
है। अन्त में प्रचलित अमंगल प्रार्थी पच है।