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तिस्कुरल (तमिलवेर) : एकन रचना
मान्यता कैसे मिली, इस विषय में भी एक सरस किंव- था। जातीयता की दृष्टि से दक्षिण को अछूत जानि के दन्ती तमिल लोगों में प्रचलित है। कहा जाता है, उन माने गये हैं। उनकी पत्नी का नाम वासुकी था। वह भी दिनों दक्षिणमें मदुरा नामक एक नगर था । वह नगर अपने एक मादर्श और अर्चनीय महिला मानी गई है। पतिव्रत विद्याबल से प्रसिद्ध था। वहा तमिल भाषा के विद्वानो धर्म को निभाने मे वह निराली थी। अपने पति के प्रति की एक बडी सभा थी। उसमे एक ऊंचा प्रासन रहता। मन, वचन और कर्म मे वह कितनी समर्पित थी और उसके विषय में यह धारणा थी कि जब मभा लगती है, कितनी श्रद्धाशील थी; इस मम्बन्ध मे बहन सारी नब अदृश्य रूप मे यहा सरस्वती पाकर बैठती है। अन्य घटनायें तमिल ममाज में प्रचलित हैं। ४६ प्रासनों पर उस सभा के धुरन्धर विद्वान बैठते थे। कहा जाता है, तिरुवल्लुवर ने एक बार उसकी श्रद्धा दूर-दूर तक इस सभा का यश फैला था। विविध ग्रथ- का मकन करने के लिए कहा-पाज लोहे की कीलो रचयिता वहा पाते और अपने ग्रंथ को उस सभा के समक्ष और लोहे के टुकडो का शाक बनायो। वासुकी ने बिना ग्ग्वने । मभासद उस ग्रथ का वाचन करते और उस पर किसी नर्क और आशंका के चल्हे पर तपेली चढा दी और अपना भन अभिव्यक्त करने।
वह लोहे के टुकडो और कीलो को उबालने लगी। तिरुवल्लुवर एक सन्त प्रकृति के पुरुष थे। वे अपने एक बार मूर्य के प्रचण्ड प्रकाश मे भी किसी खोई ग्रंथ का ऐसा अभिस्थापन नहीं चाहते थे, पर मित्री के हुई वस्तु को खोजने के लिए तिरुवल्लवर ने वामकी से दबाव मे अपना ग्रथ लेकर उन्हें मदुरा की उस विद्वत्-सभा चिराग मगाया। बामुकी ने बिना नन-नच के चिराग मे उपस्थित होना पड़ा। उन्होने अपना ग्रंथ सभाध्यक्ष के जलाया और वह ग्योई हई वस्तु के खोजने में पति की हाथो मे दिया। मभाध्यक्ष ने अन्य सभासदो को वह ग्रंथ मदद करने लगी। दिखाते हुए तिरुवल्लुवर मे पूछा-आपका ग्रथ किम एक दिन वामुकी घर के कुए से पानी निकाल रही विषय पर है ? वल्लुवर ने विनम्र भाव से कहा-मानव थी। अकस्मात् पनि का प्राह्वान कानो मे पड़ा। उसने जीवन पर । यह पूछा जाने पर कि मानव-जीवन के किम अपने प्राधे खीचे वर्तन को ज्यो-का-त्यो छोड़ा और पति पहलू पर, वल्लुवर ने कहा-सभी पहलुयो पर।
के पास चली गई। कार्य-निवृत्त होकर जब वह वापम इस बात पर मभी सभासद हसे । छोटा-मा प्रथ और आई तो देवा, पानी का वनंन ज्यो-का-न्यों कुए मे प्राधे मानव-जीवन के सभी पहलुमो पर विवेचन !
लटक रहा है। प्रधान ने पुस्तक का वाचन प्रारम्भ किया। दो-चार सन्त परुष पद्य पढे कि वल्लुवर की भाव-व्यजना ने सभी को आकृष्ट
कृष्ट तिरुवल्लुवर एक सन्त पुरुष थे। उनकी माधना किया। क्रमश. पूरा ग्रथ पढ़ा गया। सभी सभामद मानन्द परिपूर्ण थी। उनके जीवन की एक ही घटना उनकी विभोर हो उठे। एक स्वर से मब ने कहा-मचमुच हा शान्त-वत्ति का पूरा परिचय दे देती है। एलेल सिगल यह तो तमिलवेद बन गया है।
नामक एक धनाढ्य व्यक्ति वल्लुवर के ही नगर में रहता इस प्रकार निरुवल्लुवर महान स्यानि अजित कर
था। वह अपने समुद्री व्यवसाय से प्रसिद्ध था। उसके एक घर लौटे। तिरुकूरल ग्रथ तब से तमिलवेद कहा जाने
लड़का था। वह अधिक लाड-प्यार मे ढीठ-सा हो गया लगा। तिरुकूरल का अभिप्राय होता है-कुरल छन्दा म था। बडे-बूढों के माथ भी शगरत कर लेना उसके प्रतिलिखा गया पवित्र ग्रथ । तिरुवल्लुवर का अभिप्राय है
दिन का कार्य था। एक दिन वह अपने माथियो की टोली पवित्र, वल्लुवर अर्थात् सन्त वल्लुवर ।
के माथ उम मुहल्ले से गुजरा, जहा वल्लुवर अपना नुनाई बल्लुवर का गृह-जीवन
का काम किया करते थे। उस समय वल्लुवर शान्त भाव मे वल्लवर कबीर की तरह जलाहे थे। कपड़ा बुनना किमी चिन्तन में बैठे थे और उनके मामने बेचने की दो और उममे अजीविका चलाना उनका परम्परागत कार्य माडियाँ रम्बी थीं। शगरती युवक के मित्रो ने बनानवर