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बसमागम-परिचय
२२७ ४. सूत्र १, ६-६, ४२ (पु० ६ पृ० ४३६) में 'दग्वदो५' तथा सूत्र ४, २-४, १३० और १३६ में दो 'केई जाई सोऊण' ऐसा पाठ फोटो प्रति में उपलब्ध वि तुल्लामो'६ पाठ छूटा हुआ है। होता है। यहां फोटो की प्राधारभूत मूल प्रति मे 'जाई' सूत्र६ ४, २-७, २८७ में (पु. १२ पृ. २६५) में शब्द व्यर्थ जुड़ गया है।
'हाणि' शब्द छूटा हुमा है । ५ सूत्र २, ८, १४ में फोटो प्रति में (६६७६) १० सूत्र ४, २-११, २ (पु० १२ पृ. ३६५) में 'पत्तैयसरीरपज्जत्ता' ऐसा पाठ उपलब्ध होता है जो 'प्रवद्धिदा' के स्थान में 'पट्ठिदा' पाठ होना चाहिये था। 'पत्तेयसरीरपज्जत्तापज्जत्ता' ऐसा होना चाहिये।
११ सूत्र ४, २-१३, १०४ (पु० १२ पृ. ४१७) ६ सूत्र ३, ४२ (१०८, पृ० ११) मे मच्चणिज्जा और १२६ में 'मजहण्णा' पद छूटा हुमा है। वंदणिज्जा णमसणिज्जा' ऐसा पाठ प्रतियों में उपलब्ध इसी प्रकार कहीं कहीं पर चिह्नविशेष (॥छ। आदि) हमा है। वही पाठ फोटो प्रति (६६,८,१) में 'अच्चणिज्जा के न रहने से अथवा उसका प्रस्थान में उपयोग किये पूजणिज्जा णमंसणिज्जा' इस प्रकार पाया जाता है। इस जाने से जिस प्रकार सूत्र का अंश कहीं टीका में समाविष्ट प्रकार जहाँ अन्य प्रतियों में पूजणिज्जा' पाठ स्खलित हो गया है उसी प्रकार कहीं पर टीका का अंश सत्र में हमा है वहां फोटो प्रति में 'वदणिज्जा' पद स्खलित हना भी सम्मिलित हो गया है। ऐसी अवस्था में सत्र और है। पर होने चाहिये वहाँ उक्त दोनो ही शब्द, क्योंकि टीकाभाग के निर्णय करने में पर्याप्त कठिनाई रही है। धवलाकार ने सूत्रोक्त उन सभी पदों का-क्रम से पूजा, कहीं कहीं पर उसका समय पर निर्णय न हो सकने से पर्चा व वंदना आदि का-थक पृथक स्पष्टीकरण मुद्रण के समय भूल भी हुई है१० । किया है।
१ उदाहरणस्वरूप कृतिअनुयोगद्वार (पु०६) पृ. ७ इसी प्रकरण (बन्धस्वामित्वविचय) में सूत्र ३२६ पर "एदेहि सुत्तेहि तेरसण्ण मूलकरणकदीणं संत५५ में 'असुह' और 'अजसकित्ति', सूत्र ६३ में 'अथिर', परूवणा कदा ॥७१॥" यह अश सूत्र के रूप में मुद्रित सूत्र ७३ में 'अपज्जत्त' और 'दुभग'; सूत्र ९० में 'अरदि
हुधा है। परन्तु गम्भीरतापूर्वक विचार करने से वह सूत्र सोग' और 'उच्चागोद'; सूत्र १८८ में 'चउदसणावरणीय- प्रतीत नहीं होता है। कारण
__ प्रतीत नहीं होता है। कारण यह कि इस प्रकारकी सूत्रसादावेदणीय', सत्र २४२ में 'बंधों'; सूत्र २४३ मे 'अरदि' रचना की पद्धति नहीं रही है। इससे पूर्व के सूत्र ६८ में तथा सूत्र ३०४ मे 'बंधा'; ये पाठ प्रतियों में छूटे हुये
५. मिलान के लिये देखिये द्रव्यविधान पु० १० सूत्र ७५ हैं। परन्तु धवला के विवेचन से उनका उपर्युक्त सूत्रों में . अस्तित्व सिद्ध है।
और १२१ । ८ सूत्र ४, २-४, १०८ (पु०१० पृ. ३२६) ६. मिलान के लिये देखिये द्रव्यविधान सत्र १२५, १३७,
१४० तथा कालविधान पु० ११ सूत्र २८ और ३३ । १. फोटो ५५८६
७. देखिये इसी के पीछे व मागे के सूत्र २८६, २८८ व २. देखिये धवला पु० ७ पृ. ४१७ ।
२८६पादि। ३. धवला पु० ८० ६२ ।
८. देखिये उसी के प्रागे के सूत्र ३, ५, ६, ७, ९ व १०॥ ४. इनमे 'असुह' व 'प्रजसकित्ति' (७०६१), प्रथिर' इसी प्रकरण के सूत्र १ को धवला का 'किमटू वेदणा
(७१।११५), 'अपज्जत्त' (७२।२।१), 'उच्चागोद' गदिविहाणं वुच्चदे' प्रादि शंका-समाधान भी द्रष्टव्य (७२।४।६) और 'मरदि' (७५॥३१); ये पाठ फोटो प्रति मे उपलब्ध होते हैं । परन्तु 'दुभग' (७२।२।१), ६. देखिये इसी प्रकरण के सूत्र १०६, ११०, ११२, 'चउदसणावरणीय-सादावेदणीय' (७४।७।१५), बधो १३१, १३३ व १३५ प्रादि । (७६२।११) और 'बंधा' (७७३१११); ये पाठ वहां १०. देखिये घवला पु० ६ सूत्र ४५, ५१ पौर ५४ तथा भी उपलब्ध नहीं होते।
शुद्धिपत्र (प्रस्तावना) पृ० १४ व १७ ।