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खजुराहो का घंटा मन्दिर
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से ५८० के द्वारा बाह्य वर्गणा की प्ररूपणा कर देने पर कार ने ही अपनी धवला टीका मे की है२-मूल ग्रन्थकार सत्र ५८० की टीका के अन्त में धवलाकार यह ने स्वयं अन्यत्र कहीं भी सूत्र द्वारा बैसा निर्देश नहीं कहते है
किया। एवं विस्सासुवचयपरूवणाए समत्ताए बाहिरिया ऊपर जो थोड़े-से पाठभेद दिखलाये गये हैं वे सब वग्गणा समत्ता होदि । एतो उरिमगंथो चूलिया णाम, मात्र मल सत्रों से सम्बद्ध हैं, ऐसे पाठभेद धवला में तो पुत्वं सूचिदप्रत्थाण विशेपपरूवणादो।
स्थान स्थान पर उपलब्ध होते हैं। जिस अनुयोगद्वार से सम्बद्ध विषय की प्ररूपणा वहा न करके उसके पश्चात् जिस प्रकरण के द्वारा की जाती है
दत्याणं विवरणं चूलिया । जाए अत्यपरूवणाए कदाए वह उस अनुयोगद्वार का 'चूलिका' अधिकार कहा
पुष्वपरूविदत्थम्मि सिस्साणं णिच्छम्रो उप्पज्जदि सा जाता है।
चूलिया त्ति भणिद होदि । धवला पु० ११ पृ. १४० प्रकृत अन्य मे ऐसे प्रकरणों की सूचना सर्वत्र धवला- २. यथा-संपहि एत्तो उरि चूलियं भणिस्सामो।
धवला पु० १२ पृ० ७८; सपहि बिदियचूलिया. १. का चूलिया ? सुत्तसूइदत्यपयासण चूलिया णाम। परूपणमुत्तरसुत्त भणदि। धवला पु०१२पृ० ८७ ।
धवला पु०१० पृ. ३९५, कालविहाणेण सूचि
खजुराहो का घण्टइ मन्दिर
गोपीलाल अमर एम० ए०
घण्टइ मन्दिर खजुराहो ग्राम के दक्षिण-पूर्व में जन चित्र भी तैयार किया था। दीवारों में चिने गये समूह से एक कि० मी० की दूरी पर स्थित है। ४५'४ स्तम्भों पर विशालाकार एकप्रस्तरीय महराबें थीं जिन २५' के अधिष्ठान पर १४' ऊँचे १२ स्तम्भों द्वारा निर्मित पर मन्दिर का ऊपरी भाग आधारित था। बाहरी होने अर्धमण्डप और महामण्डप के रूप मे अवशिष्ट 'इस मदिर- से ये स्तम्भ सादे थे पर भीतरी स्तम्भ अलंकृत है। कंकाल मे किसी समय अन्तगल और गर्भगृह तो थे ही, सभी स्तम्भ २४ थे३'। जिनसे २४ तीर्थकरों का स्मरण अनुपम साज-सज्जा और शिरोमणि सौन्दर्य भी था जिसका हो जाता है। प्रत्येक स्तम्भ में एक-एक दीवालगीर कदाअनुमान इसके यामपास के अवशेषो से होता है? ।' श्री चित् एक-एक तीर्थकर की मूर्ति स्थापित करने को ही स्मिथ ने 'दीवारों को सहारा देनेवाले ग्रेनाइट पत्थर क बनाया गया था। बाहरी स्तम्भों की परीक्षा की जो तब दीवारों में चिन
___'इस प्रोर पार्श्वनाथ मन्दिर के प्राकार-प्रकार की दिये गये थे। उन्होने सपूर्ण भवन का नाप लेकर रेखा
समानता से प्रतीत होता है कि ये दोनो मन्दिर मुख्य १ ब्राउन, पर्सी इंडियन प्राकिटेक्चर, भाग १, पृ० सत्त्वों की दृष्टि से, एक दूसरे से बहुत भिन्न नही हो ११३ ।
सकते। दोनों में से घण्टइ अपेक्षाकृत बड़ा और कुट २ जनरल आफ एशियाटिक सोसायटी पाफ बंगाल,
(१८७६), जिल्द ४६, भाग १, पृ. २८५ । ३ जनरल प्राफ ए. सी. माफ बं०, वही।