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षटखण्डागम-परिचय
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जाते हैं।
अनुयोगद्वारों से निकला है।। बन्ध का दूसरा भेद जो स्थितिबन्ध है वह मूलप्रकृति- उसका बन्धस्वामित्वविचय नामका तीसरा खण्ड स्थितिबन्ध और उत्तरप्रकृतिस्थितिबन्ध के भंद से दो पर्वोक्त एक-एकउत्तरप्रकृतिबन्ध के समुत्कीर्तनादि चौबीम प्रकारका है। उनमे उत्तरप्रकृतिस्थितिबन्ध के अद्धा. अनुयोगद्वारों में बारहवें बन्धस्वामित्वविचय से निकला च्छेद प्रादि चौबीस अनुयोगद्वारो मे प्रथम (प्रद्धाच्छेद) है। के दो भेद है जघन्य स्थिति अद्धाच्छेद और उत्कृष्ट- वेदना नामक चौथे खण्ड मे कृति और वेदना नामक स्थिति-अद्धाच्छेद । इन दोनों प्रद्धाच्छेदो से क्रमश. जाव- दो अनुयोगद्वार हैं जो क्रम से कर्मप्रकृतिप्राभूत के चौबीस स्थान की जघन्य स्थिति (सातवी) और उत्कृष्ट स्थिति अनुयोगद्वारो मे से प्रथम (कृति) पोर द्वितीय (वेदना) (छठी) नामकी ये दो चलिकाएं निकली हैं।
अनुयोगद्वारो से निकले है। इसके अतिरिक्त दृष्टिवाद प्रग के दूसरे भेदभूत सूत्र
वर्गणाखण्ड में प्ररूपित स्पर्श, कर्म, प्रकृति प्रौर बन्धन से सम्यक्त्वोत्पत्ति ३ और व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक पाचवे
अनुयोगद्वार भी पूर्वोक्त कर्मप्रकृतिप्राभूत के चौबीस अग से गति-प्रागति४ (नौवी) नामकी चुलिका निकली
अनुयोगद्वारो मे इन्ही नामोवाले तृतीय (स्पर्श), चतुर्थ है। इस प्रकार इन नौ चुलिकामो से सयुक्त होकर
(कर्म), पचम (प्रकृति) और छठे (बन्धन) अनुयोगपूर्वोक्त मत्प्ररूपणा मादि पाठ अनुयोगद्वारो म विभक्त
द्वारो से निकले है। समस्त जीवस्थान खण्ड (सम्यक्त्वोत्पत्ति और गति-प्रागति महाबन्ध नामक अन्तिम (छठा) खण्ड पूर्वोक्त बन्धन इन दो चूलिकामो को छोड़ कर) उद्गम पूर्वोक्त चयन- अनुयोगद्वार के चतुर्थ भेदभूत बन्धविधान अनुयोगद्वार लब्धि के चतुर्थ प्राभूतभून कर्मप्रकृतिप्राभत से हया है। से निकला है । प्रकृत षट्खण्डागम का दूसग खण्ड जो क्षुद्रकबन्ध है
हस्तलिखित प्राचीन प्रतियां वह 'एकजीवेन स्वामित्व' मादि ग्यारह अनुगोगद्वारों से प्रस्तुत ग्रन्थ की वर्तमान में जो भी प्रतिया उपलब्ध सम्पन्न होता हु पूर्वोक्त बन्धक अधिकार के ग्यारह होती हैं वे सब ग्राचार्य वीरसेन स्वामी द्वारा विचित
धवला टीका के साथ ही उपलब्ध होती है, मात्र मूल १. एदेसु अट्ठसु अणियोगद्दारेसु छ अणियोगद्दाराणि ग्रन्थ की कोई भी स्वतन्त्र प्रति नही उपलब्ध होती। मूल
णिग्गयारिण । तं जहा-सतपरूवणा खेत्तपरूवणा मे उसकी कानड़ी लिपि मे तीन प्राचीन प्रतिया रही हैं पोसणपरूवणा कालपरूवरणा अंतरपरूवणा अप्पाबहग. जो मूडबिद्री की गुरुवसति में सुरक्षित है। आज से लगपरूवणा चेदि । एदाणि छ, पुग्विल्लाणि दोण्णि, एक्कदो भग ४०-४२ वर्ष पूर्व श्री लाला जम्बूप्रसादजी रईस द्वारा मेलिदे जीवट्ठाणस्स अट्ठ अणियोगद्दाराणि हवति ।
५. त जहा-महाकम्मपडिपाहुडस्म कदि-वेदणादिगेस धवला पु०१पृ० १२७-२८ ।।
नदुवीसमणियोगद्दारेसु छट्ठस्स बधणे ति मणियोग२. तत्थ अद्धाछेदो दुविहो जहण्णट्टिदिश्रद्धाछेदो उक्क
द्वारस्स बधो बधगो बधणिज्ज बवविहाणामदि चत्तारि स्सटिदिप्रताछेदो चेदि । जहण्णद्विदिप्रवाछेदादो जह
प्रधियारा। तेसु बधगे त्ति बिदियो अधियारो, सो पणदिदी रिणग्गदा, उक्कस्सटिदिप्रद्धाछेदादो उक्कस्स
एदेण वयणेण सूनिदो। जे ते महाकम्मपडिपाहडम्मि टिदी जिग्गदा। धवला पु० १० १३०।।
बधगा गिट्ठिा तेसिमिमो णिसो त्ति वुत्त होदि । ३. पुणो सुत्तादो सम्मत्तुष्पत्ती णिग्गया।
धवला पु० ७ पृ०१-२। धवला १ पृ० १३०। ६. एदेसि चदुण्णं बंधाण विहाण भूदबलिभडारएण महा४. वियाहपण्णत्तीदो गदिरागदी णिग्गदा ।
बंधे सप्पवचेण लिहिद ति एत्थ ण लिहिद : धवला धवला पु०१ पृ० १३० । पु० १४, पृ० ५६४