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षट्सण्डागम-परिचय
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छह हजार (६०००) लोक और अन्तिम खण्ड महाबन्ध १. वेदनानिक्षेप ३ ६.वेदनास्वामित्वविधान ५ का प्रमाण तीस हजार (३००००) श्लोक है। । ग्रन्थ का २. वेदनानयविभा. ४१०. वेदनावेदनाविधान ५८ अधिकाश भाग गद्या-मक सूत्रों में रचा गया है। फिर भी ३. वेदनानयविधान ४१.वेदनागतिविधान १२ यत्र क्वचित वहां कुछ गाथा-सत्र भी उपलब्ध होते हैं। ४. वेदनाद्रव्यविधान २१ १२. वेदनाअन्तरविधान ११ ग्रन्य गत समस्त सूत्र-सख्या इस प्रकार है
५. बेदनाक्षेत्रविधान ९६ १३. वेदनासंनिकर्षवि. ३२०
६. वेदनाकालविधान २७६ १४. वेदनापरिमाणवि. ५३ १-जीवस्थान
७. वेदनाभावविधान ३१२ १५. वेदनाभागाभागवि. २१ मदादि अन० सूत्रसंख्या चूलिकायें सूत्रसंख्या ८. वेदनाप्रत्ययविधान १६ १६. वेदनामल्पबहुत्व २६ १. मत्प्ररूपणा १७७ १. प्रकृतिममुत्कीर्तन ४६
- - २. द्रन्यप्रमाणानुगम १९२ २. स्थानसमुत्कीर्तन ११७
१५२१ ३. क्षेत्रानुगम ६२ ३ प्रथम दण्डक २
गाथा-सूत्र ४. स्पर्शनानुगम १८५ ४. द्वितीय , २
१५२९ ५. कालानुगम ३४२ ५. तृतीय , २
५-वर्गणा ६ अन्तगनुगम ३६७ ६. उत्कृष्ट स्थिति ४४ ७. भावानुगम६३ ७. जघन्य , ४३
अनुयोगद्वार
गद्यसूत्र गाथासूत्र ८. अल्पबहुत्वानुगम ३८२ ८. सम्यक्त्वोत्पत्ति १६
१ स्पर्श ९ गत्यागति २४३ २. कर्म १८६०
३. प्रकृति ५१५
४. बन्धन .. ममस्त जीवस्थान १८६०+५१५२३७५
९६२ २-क्षुद्रक बन्ध
५ खण्डो की समस्त सूत्रसंख्याबन्धक सत्प्ररूपणा ४३ ७. स्पर्शनानुगम २७८ एकजीवेन स्वामित्व ६१ ८. नानाजीवकाल ५५
१. जीवस्थान २३७५ २. एक जीवेन कालानु. २१६ ६. नानाजीवनन्तर ६८
२ क्षुद्रकबन्ध १५६३ ३. एकजीवेन अन्तरानु. १५१ १०. भागाभाग ८८
३ बन्धस्वामित्व ३२४ ४. नानाजीवभगविचय २३ ११. अल्पबहुत्व २०६
४. बेदना १५०६ ५ द्रव्यप्रमाणानुगम १७१ १२. महादण्डक ७९
५. वर्गणा
१०२० ६. क्षेत्रानु गम १२४ २गमस्त क्षुदकबन्ध १५६३
इस प्रकार घवला टीका से समृद्ध पचखण्डस्वरूप ३-बन्धस्वामित्व-विचय
षट्खण्डागम के अन्तर्गत समस्त सूत्र छह हजार पाठ सो
इकतालीस (६८४१) हैं। ४-वेदना
यह ऊपर कहा ही जा चुका है कि अन्तिम (छठा) १. कनिअनुयोगद्वार ७५
खण्ड महाबन्ध स्वयं प्रार्य भूतबलि के द्वारा विस्तार२ वेदना
पूर्वक रचा गया है, जिसके ऊपर वीरसेन स्वामी को टीका १. इन्द्र० श्रु० १३६-४०
लिने की आवश्यकता प्रतीत नही हुई। यह समस्त २. देखो आगे वर्गणा खण्ड की सूत्रसंख्या
खण्ड तीस हजार श्लोक प्रमाण है।
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