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अनेकान्त
प्रन्यकी भाषा
१. स्वरों के मध्यवर्ती त के स्थान में द६ । जैसेजैसा कि समवायांग सूत्र और जबूदीवपण्णत्ति में४ संयतासयत-संजदासजद (१, १,१३), गति गदि (१, निर्दिष्ट है, समस्त तीर्थंकरों का उपदेश अर्धमागधी भाषा ६-१, १२८) मादि। में हमा करता है। भगवान् महावीर स्वामी के समय में यह २. स्वरों के मध्यवर्ती थ के स्थान में ध७ । जैसेअर्धमागधी भाषा प्रचलित लोकभाषा रही है । उसके अर्ध- कथ-कचं (२,२,४)। मागषी इस नाम से प्रसिद्ध होने का कारण यह है कि ३. श और ष के स्थान मे सः। जैसे-लेश्या वह मगध देश के मधं भाग मे-जहाँ कि भगवान् लेस्सा (१.१,४), मादेश प्रादेस (१,१,८); घोष घोस महावीर का विहार हुआ है-बोली जाती थी३ । प्राचीन (४,१,५४)। जैनागम प्रायः इसी भाषा मे निर्मित हुमा है । आज ४. क्त्वा प्रत्यय के स्थान मे दूण । जैसे-कृत्वादिगम्बर सम्प्रदाय में जो प्रवचनसारादि अनेक प्राकृत कादूण (४, २-४७०), संसृत्य-ससरिदूण (४, २.४, ग्रंथ उपलब्ध होते है वे शौरसेनी-जन शौरसेनी-प्राकृत ७१)। विकल्प में अनुपाल्य-प्रणुपालइत्ता (४, २-४, मे रचे गये हैं, ऐसा मनक भाषा शास्त्रियो का अभिमत ७१), विहन्य-विहरित्ता (४, २-४, १०७)।
५. प्रथम पुरुष के एक वचन मे विहित इ के लिए पौराणिक काल में मथुरा के एक राजा-भगवान द का आगम१०। जैसे-बधबधदि, १, ६-१, १, नेमि जिनके प्रपितामह-का नाम शूरसेन था। उसने १, ६-१,२) ठवेइ-ठवेदि (१, ६-८, ५)। मथुरा के समीप शौर्यपुर नाम के नगर को बसाया था। ६. भू धातु के आदेशभूत हकार के स्थान मे भ११ । उक्त राजा के नाम से यह प्रदेश 'शूरसेन' नाम स प्रसिद्ध जैसे-भवदि (१,६-४, १); होदि (१,६,२)। रहा है । प्रस्तुत शौरसना सम्भव है इस देश की इसके विपरीत कुछ ऐसे भी उसके लक्षण है जो यहाँ लोकभाषा रही हो।
नही पाये जाते, किन्तु उनके स्थान म अन्य ही रूप उपप्रकृत षट्खण्डागम की भाषा में इस शौरसेनी प्राकत लब्ध होते हैं। यथाके कुछ लक्षण दृष्टिगोचर हाते है। यथा
१. यं के स्थान में य्य १२ । जैसे-पर्याप्त-पज्जत्त
(१,१,३४)। १. भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ २२ २. पूर्व के स्थान मे पुरव१३ । जसे-पूर्व-पुव्व (१, सा वि य णं प्रद्धमागही भासा भासिज्जमाणी तेसि
५, १८)। सम्वेसि प्रारियमणारियाण दुप्पय-च उप्पय-मियपसु- ३. कुन और गम् धातु के मागे क्त्वा प्रत्यय के पक्खि-सरीसिवाण प्रप्पणो हियसिवसुहयभासत्ताए
परिणमइ २३ । सम० सू० ३४, स्थानक ३४। ६. दस्तस्य शौरमेन्यामखावचोऽस्तोः। प्रा० शब्दानु. २. अदिसयवयणेहि जुदो मागधश्रद्धहि दिव्वघोसहि । तस्स दुरूव दट्ठ मेत्ताभावो दु जीवाण ॥ ७. यो धः। प्रा० श० ३, २,४।
ज०प०१३-१०२। ८. शेषं प्राकृतवत् । प्रा.श. ३, २, २६, शो: सल् । ३. मगहविसयभासाणिबद्ध अदमागह, अट्ठारसदेसी
भासाणियय वा अद्धमागह । निशीथचूणि (१९६०) १. इय-दूणौ क्त्व: । प्रा० श० ३,२,१०। ३, भाष्य गा० ३६१८ ।
१०. इचेचोदं । प्रा० श० ३, २, २५ । पायसद्दमहण्णमो (१९२८) प्रस्तावना पृ० ३४, ११. भुवो भ. । प्रा० श. ३, २,६।
षट्खण्डागम पु० १ प्रस्तावना पृ० १८०। १२. यो व्यः । प्रा० श० ३, २,८। ५. ह. पु० १८, ८-१४ ।
१३. पूर्वस्य पुरवः । प्रा० श० ३, २, ६।