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स्थायी सुख और शान्ति का उपाय
पं० ठाकुरदास जैन बी. ए.
श्रावक-तिलक, दिव्यज्योतिर्मय सतसाहित्य को प्रकाश और शिरोधार्यता प्राप्त कर ली थी। जिस स्वराज्य को में लाने वाले तथा ज्ञानियो एव धर्मात्माओ के अनुपम भारतवर्ष अपने शस्त्र और प्रस्त्रों के बल से शताब्दियों बन्धु म्वनाम धन्य साह शान्ति प्रसाद जी जैन के जैन पुण्य तक मैं नही पा सकता था, उसको उन्होने एक भी मानव पुरातत्त्व के समुद्धार मे तल्लीनता पूर्वक योग देने वाले का रक्पात किये बिना अपने और अपने अनेक अनुयायियो और अपनी अनेक निस्वार्थ समाज सेवाग्रो से समुज्जवल, की अहिसामयी साधनामो से थोड़े ही समय में प्राप्त कर अतीत सम्पन्न श्री विशनचन्द्र जी जैन प्रोवरसियर माह लिया था। विज्ञ वाचक जानते ही होगे कि अहिंसामयी सीमेण्ट सरविस नई देहली की कई मामो से यह प्रेरणा साधनाए तो मानवो को ईश्वरीय कोटि में ले जाती है प्रत रही है कि मैं एक ऐसा लेख लिखू जिससे ससार यह जान उनके समक्ष हिसकवत्तियों की पोषक दानवीय शक्तियो ले कि जैनधर्म के सिद्धान्तो के वास्तविक अनुसरण से ही को मनान और अकिञ्चित्कर ही रह जाना पड़ता है। विश्व उच्चकोटि की स्थायिनी सुख-समृद्धि के साम्राज्य के अन्तर्गत पा सकता है अतः शासको को यदि अपने जब तक उनका जीवन रहा, उपद्रवो की शान्ति ही राष्ट्र और परराष्ट्रों में विश्व शान्ति स्थापित करनी हो
रही। उनके दक्षिण हस्त स्वरूपी पण्डित जवाहरलाल जी तो वे उक्त सिद्धान्तों के ऊपर भिन्न-भिन्न भागयो मे नेहरू मे भी उनका अनुकरण रहा। उन्होने भी विश्वउक्त सिद्धान्तो के रहस्यो के विशेषज्ञो के द्वारा ग्रथो की शान्ति के अहर्निशभाव रवावं और उनके अनुसार ही रचनाकर उनके पठन-पाठन को शिक्षा का एक ब्रावश्यक उनकी प्रवृत्तियाँ रही। पर अब भारत पर भाविनी मग बना दे, भिन्न-भिन्न देशो में उनके उपासक विद्वानो अशान्ति की घोर घटाएँ फिर मॅडलाती जान पडती है। को भेजकर संमार के समक्ष उनका मनोवैज्ञानिक महत्त्व मस्कृत के इस प्राचीन ग्लोक मे महर्पियो की विचाररक्व और इस अङ्ग के प्रमार को शामन का एक नित्तान्त धाग कैसी मधुरत। की वर्षा कर रही है.प्रावश्यक अङ्ग बनावे।
प्रकरणत्व मकारण विग्रहः वर्तमान शताब्दी के प्रथम चतुर्थाश तक तो भारत के
परधने परयोषिति च स्पृहा । अधिकाँश मेधावी नेता शारीरिक वीरता का यशोगान
स्वजन बन्धुजनेष्व सहिष्णुता करते और कराते हुए इस विचार धारा के ममर्थक रहे थे
प्रकृति सिद्धमिदं हि दुरात्मनाम् ।। कि अहिसा ने भारत को स्त्रैण-स्त्रीस्वभाव बना दिया
(भर्तृहरि ।) है, अहिसा के कारण भारत नपुसक बन चुका है। उन जो दुगत्मा है उनमें ये बाते प्रकृति सिद्ध ही हमा नेतामो की धारणा को भ्रमपूर्ण सिद्ध कर देने वाले हमार करती है। वे निर्दय होते है, कारण के बिना ही युद्ध राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी हुए जिन्होंने अहिरा (जिसकी कर बैठने है, दूसरे की सम्पत्ति और दूसरे की स्त्री को कोटि में सभी सद्भावो उच्च श्रेणी का मंत्रीभाव, और प्रात्मसात् कर लेने के उपाय किया करते है और वे अपने समुज्ज्वल नैतिक जीवन की प्रेरणा से किए गए कार्यों को परिवार तथा भाई बन्धुनों तक से साहिष्णुता का व्यवहार परिगणित किया जाता है।) की शक्तिभर पालना करके नही रखते । ऐसी प्रकृति के मानव वैयक्तिक, सामाजिक विश्वव्यापनी अग्रेजो की भौतिक शक्ति को कम्पित कर और राष्ट्रीध सभी जीवनों को प्राम कालिमानो से मलिन दिया था और अपनी उक्तसाधना से विश्व भर की पूज्यता करते रहते है।