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प्रथम मज्ञान-शक्ति क्षीण होती है तब वह दूसरी प्रज्ञान- २. व्यावहारिक पाक्ति के उदित होने पर प्रपंच को व्यावहारिक मानता ३. प्रातिभासिक है। ब्रह्म साक्षात्कार होने पर जब दूसरी प्रज्ञान-शक्ति भी जैन दर्शन के अनुसार चेतन और अचेतन दोनों क्षीण हो जाती है तब वह तीसरी प्रशान-शक्ति के कारण पारमार्थिक सत्य हैं-दोनों की वास्तविक सत्ता है । जैन प्रपंच को प्रतिभासित मानता है। तीसरी प्रशान-शक्ति दर्शन प्रचेतन जगत् की वास्तविक सत्ता को स्वीकार बन्ध-मोक्ष के साथ-साथ क्षीण होती है। उसके साथ प्रपच करता है, इसलिए वह यथार्थवादी है । वेदान्त के अनुसार को प्रतिभासित मानना भी समाप्त हो जाता है। फलित ब्रह्म ही पारमार्थिक सत्य है। वह एक है। शेष जो की भाषा में प्रपंच को व्यावहारिक प्रगति व प्रातिभासित नानात्व है वह वास्तविक नही है । वेदान्त दर्शन ब्रह्म से मानना बन्ध-मुक्ति की प्रक्रिया है। जीव जब तक बन्ध- भिन्न जगत् की वास्तविक सत्ता को स्वीकार नहीं करता. दशा में रहता है तब तक वह 'ब्रह्म ही पारमार्थिक सत्य इसलिए वह प्रादर्शवादी है। है-इसे जानते हुए भी व्यावहारिक या प्रातिभासिक यथार्थवादी दृष्टिकोण के अनुसार चेतन में अचेतन प्रतीति से मुक्त नहीं हो सकता।
की और अचेतन में चेतन की संज्ञा करना मिथ्या-दर्शन वेदान्त के अनुसार साधना के तीनसाधन हैं
है और चेतन मे चेतन की और अचेतन मे प्रचेतन की १. श्रवण-वेदान्त के वचनों को प्राचार्य के मुख संज्ञा करना सम्यग्-दर्शन है। से सुनना।
आदर्शवादी दृष्टिकोण के अनुसार चेतन या ब्रह्म से २. मनन-श्रुत विषय पर तर्क-बुद्धि से मनन करना भिन्न अचेतन की सत्ता स्वीकार करना मिथ्या-दर्शन है
३. निदिध्यासन-मनन किए हए विषय पर सतत और ब्रह्म को ही पारमाथिक सत्य मानना सम्यग-दर्शन चिन्तन करना।
ऐसा करते-करते प्रात्मा और ब्रह्म की एकता-बोध जन-दशन का द्वतवाद सुदृढ़ हो जाता है और अन्त में साधक को मोक्ष उपलब्ध वेदान्त के अनुसार जैसे एकत्व पारमाथिक और हो जाता है।
प्रपच (या नानात्व) व्यावहारिक हैं वैसे ही अनेकान्त की प्रमाणवाद
भाषा में कहा जा सकता है कि द्रव्यत्व पारमार्थिक और पारमार्थिक और व्यावहारिक सत्ताओं के सम्यग ज्ञान
पर्यायत्व (या विस्तार) व्यावहारिक है। शाश्वत सत्ता
चेतन है। मनष्य तिर्यच मादि उसके विस्तार हैं। वे के लिए वेदान्त पाँच प्रमाण मान्य करता है
शाश्वत नही हैं, मनुष्य शाश्वत नहीं है इसीलिए वह पार. १. प्रत्यक्ष
माथिक नहीं है । एक ही चेनन के अनन्त रूपों में मनप्य २. अनुमान
एक रूप है, जो उत्पन्न होता है और विलीन हो जाता है। ३. उपमान
उमके उत्पन्न या विलीन होने पर भी चेतन 'चेतन ही ४. मागम
रहता है, इसलिए वह पारमार्थिक है। ५. अर्थापत्ति
पारमार्थिक सत्ता को जानने वाली दृष्टि को निश्चय तुलनात्मक मीमांसा
नय और व्यावहारिक सत्ता को जानने वाली दृष्टि को जैन दर्शन के द्वारा दो सत्ताएं स्वीकृत हैं
व्यवहार नय कहा जा सकता है । निश्चय नय के अनुसार १. पारमार्थिक
विश्व के मूल में दो तत्व हैं, चेतन और प्रचेतन । यह नय २. व्यावहारिक
पर्याय या विस्तार को मौलिक तत्त्व नहीं मानता । वेदान्त वेदान्त के द्वारा तीन सत्ताएं स्वीकृत है
प्रपंच को व्यावहारिक या प्रातिभासिक ही मानता है, १. पारमार्थिक
उसका हेतु यही है कि वह जाति के मूल तत्स्व की व्याख्या