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श्रद्धांजलि
प्रेमचन्द जैन
मेरा बा० छोटेलालजी कलकत्ता के साथ सन् १९५६ में उन्हें बड़ा दुःख होता था। उनकी व्यक्तिगत महानता का परिचय उस समय हुमा, जब मैं वीरसेवामन्दिर का संयुक्त परिचय तो इसी से ज्ञात होता है कि उन्होंने सस्था को मंत्री बनाया गया । और थोडे ही समय के बाद उनके इतनी सहायता देने के बाद भी कभी अपने नाम की इच्छा साथ मेरा वह सम्बन्ध और भी गाढ़ा हो गया। नहीं की, और हमेशा यही कहा करते थे कि मैं अपने उन्होंने हमेशा मुझे अपने छोटे भाई की तरह माना और कर्तव्य का पालन कर रहा है। प्रजनों को जैन साहित्य वीरसेवामन्दिर का कोई भी कार्य मुझसे परा- की ओर आकर्षित करने और अनुसंधान की दृष्टि से जो मर्श किये बिना नहीं किया । मैंने देखा कि वीरसेवामन्दिर छात्रवृत्तिया दी, उनका यह कार्य भी स्मरणीय रहेगा। की पोर उनकी इतनी तीब्र लगन थी कि जिससे मैं भी उन्होंने जनधर्म को ऊंचा उठाने के लिए जितना कार्य संस्था की पोर पाकषित होता चला गया। सस्था की किया उतना शायदही किसी अन्यने किया हो। उनके पास उन्नति के लिये उन्होंने अपने स्वास्थ्य तक की भी परवाह इतिहास-पुरातत्व की जितनी सामग्री थी यदि वह सब नहीं की। और जिस लगन से उन्होने वीरसेवामन्दिर प्रकाशित हो पाती तो उससे कितनी महत्व की बातें भवन का निर्माण किया और उसकी देख-रेख में दिन-रात प्रकाश में आ जाती । मेरा तो उनके कुटुम्बियो से अनुलगे रहते थे, उन्हें उसके निर्माण की इतनी अधिक चिन्ता रोष है कि यदि वह सब सामग्री प्रकाशित करा सकें, तो रहती थी कि जितनी कि किसी को अपने निजी भवन की जैनधर्म का उससे महान् उपकार होगा। . भी नहीं होती। वीरसेवामन्दिर की ओर उनका घनिष्ट उनके निधन का तार रात्रि को जिस समय मुझे सुझाव देखकर यह स्पष्ट मालन होता था कि वे उसके मिला, तो मेरे हृदय को बड़ा धक्का पहुँचा। क्योंकि मैं अभिन्न अंग हैं। बीमारी के दिनों में भी उनके जितने भी हमेशा यही चाहता था कि वह एक बार दिल्ली पाकर पत्र माये उन सब में देहली पाने की तीव्र भावना पाई वीरसेवामन्दिर के कार्यो मे अपना सहयोग प्रदान करे। जाती है। परन्तु भाग्य को कुछ और ही मजर था और पर भावी को ऐसा मंजूर न था। मैं उनकी मत्यू को वे अपने अन्तिम दिनों में रुग्ण अवस्था के कारण दिल्ली प्रासानी से भुला नहीं सकता। और उनकी प्रति सच्ची माने में असमर्थ रहे।
श्रद्धाजलि यही होगी कि उनके छोड़े हुए अधूरे कार्यों को
पूरा किया जाय । इन्ही शब्दों के साथ मैं उनके प्रति यदि संस्था का एक पैसा भी दुरुपयोग मे पाये तो अपनी हार्दिक श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ।
संस्मरण
श्री छोटेलाल जी के सम्बन्ध में क्या कहें। वह जैन समाज की तथा अनेकान्त धर्म की सेवा के लिए पूर्णत: समपित।
-राजेन्द्रकुमार जैन