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अनेकान्त
परमागमस्य बीज निषिद्धजात्यन्यसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमपनं नमाम्यनेकान्तम् ॥
वीर-सेवा-मन्दिर, २१ परियागंज, बिल्ली-६ वीर निर्वाण संवत् २४९२, वि० सं० २०२३
। अगस्त
सन् १९६६
जिनवर-स्तवनम्
विटु तुमम्मि जिरणवर एटुं चिय मणियं महापावं। रविउगमे पिसाए ठाह तमो कित्तियं कालं ॥४॥ विट्ठ तुमम्मि जिरणवर सिम्झइ सोको वि पुण्णपन्भारो। होई जिरो बेण पहू इह-परलोपत्पसिहोणं ॥५॥ दिई तुमम्मि जिणवर मण्णे तं प्रप्परगो सुकयलाई। होही सो मेणासरिससुहरिणही मखमो मोक्लो ॥६॥
-मुनि श्री पवनन्दि पथं है जिनेन्द्र ! मापका दर्शन होने पर मैं महापाप को नष्ट हुमा ही मानता हूँ। ठीक है-सूर्य का उदय हो जाने पर रात्रि का मन्धकार भला कितने समय ठहर सकता है? अर्थात् नहीं ठहरवा, वह सूर्य के उदित होते ही नष्ट हो जाता है ॥ हे जिनेन्द्र ! माप का दर्शन होने पर वह कोई अपूर्व पुण्य का समूह सिख होता है कि जिससे प्राणी इस लोक तथा परलोक सम्बन्धी ममीष्ट सिद्धियों का स्वामी हो जाता है। हे जिनेन्द्र | पाप का दर्शन होने पर मैं अपने उस पुण्यलाभ को मानता हूँ जिससे कि मुझे अनुपम सुख के भण्डारस्वरूप वह पवि. नश्वर मोक्ष प्राप्त होगा।