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बैन प्रतिमा लक्षण
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संज्ञा दी गई है। कुन्दकुन्द के प्रम शिष्य जयसेन के देवायतन निर्माण कराने का विधान किया है । तात्पर्य अनुसार जिनविम्ब का निर्माण कराना मगल है। और यह कि देवालय उन स्थानों पर बनाये जाना चाहिये जो भाग्यवान गृहस्थों के लिये अपने (न्यायोपात्त) धन की रमणीक हों अथवा अन्य कारणों से महत्त्वपूर्ण हों। तीर्थसार्थकता के हेतु चैत्य और चैत्यालयों के निर्माण के बिना करों के जन्म, दीक्षा, ज्ञान मौर निर्वाण कल्याणकों से अन्य कोई उपाय नहीं हैं। जैन अनुश्रुति मानती है कि पवित्र स्थानों तथा नदीतट, पर्वत, ग्रामसन्निवेश, समुद्रतट प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती ने कैलाश अथवा ऐसे ही अन्य मनोज्ञ स्थानों को जिनमंदिर के योग्य पर्वत पर मणि और रत्नों के चूर्ण से जिनमदिरों का बताया गया है। अपराजितपृच्छा में जिनमंदिरों को निर्माण कराया था और उनमें जिनबिम्बों की स्थापना शान्तिदायक स्वीकार कर उन्हें नगर के मध्य में बनाने का कराई थी। उस समय से ही लोग प्रतिमामों की प्रतिष्ठा विधान किया है, किन्त मानसार के कर्ता बोडों पीर कराते है।।
जैनों के प्रति उतने उदार नहीं प्रतीत होते. जिन्होंने दुर्गा, ___यतः प्रतिमा को देखकर चिदानन्द जिन का स्मरण । गणपति, कात्तिकेय मादि के मंदिरों के समान ही बौद्ध होता है प्रतएव जिनबिम्ब का निर्माण कराया जाता है
नाबम्ब का निमाण कराया जाता है और जनमंदिरों को भी नगर के बाहर निर्माण करने का और प्रतिमा में जिन पर उनके गुणों की प्रतिष्ठा करके विधान किया है। उनकी पूजा की जाती है।
जिनमंदिर निर्माण के लिए भूमि का चयन करते मन्दिर के योग्य त्यान
समय जो बातें उपयोगी है, वे यह हैं कि भूमि शुद्ध हो, वराह मिहिर ने कहा है कि वन, नदी, पर्वत और रम्य हो, स्निग्ध हो, सुगंधवाली हो, दूब आदि से ढकी झरनों के निकटवर्ती भूमि पर तथा उद्यानयुक्त नगरों में हुई हो१० तथा वह पोली न हो, वहाँ कीड़े मकोड़ों का देवता सदा निवास करते हैं५ । मनु ने सीमासंधियों पर निवास न हो और दग्ध पाषाण भौर हड्डियाँ मादि न हों, १. नामजिणा जिणनामा केवलिणो सिवगया य भाविजिणा। ६. मनुस्मृति, भा२४० ठवणजिणा जिणपडिमा दम्वजिगा भावजिगजीवा ॥ ७. जन्मनिष्क्रमणस्थानज्ञाननिर्वाणभूमिषु ।
प्रवचनसारोदार, द्वार ४२ मन्येषु पुण्यदेशेषु नदीकूलनगेषु च ॥ प्रहन्तः स्थापना-नाम-द्रव्य-मावश्चतुर्विधाः ।
ग्रामादिसन्निवेशेषु समुद्रपुलिनेषु च । चतुर्गतिभवोद्भूतं भयं मिन्दन्तु भाविनाम् ।।
अन्येषु वा मनोज्ञेषु कारयेग्जिनमंदिरम् ॥ पपानन्द महाकाव्य, ११३
बसुनन्दि कृत प्रतिष्ठासारसंग्रह, ३।३-४ २. मंगलं जिननामानि मंगलं मुनिसेवितम् ।
शुद्ध प्रदेशे नगरेऽयटम्यां नदीसमीपे शुचितीर्थभूभ्याम् । मंगलं श्रुतमध्येयं मंगलं बिम्बनिर्मितः॥
विस्तीर्णशृणोन्नतकेतुमालाविराजितं जैनगृहं प्रशस्तम् ॥ प्रतिष्ठापाठ, ७१५
जयसेनकृत प्रतिष्ठापाठ, १२५ ३. अहो महाभाग्यवतां धनसार्थक्यहेतवे ।
८. तीर्थकरोद्भवाः सर्वे सर्वशान्तिप्रदायकाः । मान्योपायो गृहस्थानां चैत्यचैत्यालयाद् बिना ॥ जिनेन्दस्य प्रकर्तव्याः पुरमध्येषु शान्तिदाः । वही, २२
अपराजित पृच्छा, १७६।१४ ४. श्रुत्वा सकाशाद् भरतेश्वरोऽपि कैलासभूघ्र मणिरलचूर्ण: 8. दुर्गा गणपति व बौद्ध-जैनगतालयम् । द्वासप्तति जैनमंदिराणां निर्माप्य पके जिनबिंबसंस्थाम्। अन्येषा षण्मुखादीनां स्थापयेनगराद् बहिः॥ ततः प्रभूत्येव महाधनः स्वं प्रतिष्ठया धन्यतमं विधाय ।
मानसार, ६.५६ संरक्यतेऽनादिजिनेन्द्रचन्द्रमुखोद्गत स्थापनसद्विधानम् ।। १०. रम्ये स्निग्धं सुगंधादि दूर्वाधाड्या स्ततः शुचिम् ।
वही, ६२६३ जिनजन्माविनावास्ये स्वीकुर्याद्भूमिमुत्तमम् ॥ ५.बृहत्संहिता, ५
माशापरकृत प्रतिष्ठासारोबार ११८