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वीरशासन-जयन्ती महोत्सव सानन्द सम्पन्न
इस वर्ष वीर सेवा मन्दिर की ओर से वीर शासन भाषण सुन रहे थे । आपने बतलाया कि मतभेद जयन्ती महोत्सव बड़ी धूमधाम से समन्तभद्र सस्कृत महा- होना स्वाभाविक है परन्तु मनोमालिन्य नहीं होना विद्यालय के विशाल प्राङ्गण में ३ जुलाई रविवार को चाहिये । जो व्यक्ति मनोमालिन्य रखता है, वह हिंसक प्रातःकाल मनाया गया। जनता से पण्डाल ठसाठस भरा है, और जो नहीं रखता वह अहिंसक है। क्योंकि रागहुआ था। जनता की उपस्थिति पाच हजार के लगभग द्वेष विकार रूप परिणति ही हिंसा है, सम्यग्दृष्टि के इस होगी। परमानन्द शास्त्री के मंगलाचरण के अनन्तर पं० प्रकार की परिणति नही होती, वह सप्त भय रहित अजितकुमारजी शास्त्री, प. बाबूलालजी और प्रोफेसर निर्भय होता है, अतएव वह अहिंसक है। हमारा बीर सुखनन्दनजी बड़ौत के महत्वपूर्ण भाषण हुए। बाल शासन जयन्ती का मनाना तभी सार्थक होगा, जब हम माश्रम के बालको का गायन भी हुमा । पश्चात् श्री भगवान महावीर के शासन का शक्त्यनुसार अनुसरण १०८ पूज्य मुनि विद्यानन्दजी का प्रोजस्वी एवं चित्ता- करेगे । मानव जीवन जीवन की सार्थकता त्याग में हैं। कर्षक भाषण हुआ । आपने वीरशासन की महत्ता बतलाते दुनिया के भोगोपभोग और वैभव क्षण में विनष्ट हो हुए जनता से कहा कि वीर शासन को जाने बिना हम जाते हैं, और हमारी अनन्त तुष्णाएँ भी यों ही विलीन उसकी महत्ता और सर्वोदय तीर्थता का मूल्य नही पाक हो जाती हैं। अतः जीवन को सार्थक बनाने के लिए सकते । इसके लिए आपको स्वाध्याय द्वारा ज्ञान की वीरशासन का पालन करना अत्यन्त आवश्यक है। अन्त प्राप्ति करनी होगी। महाराज श्री के निर्देश से उपस्थित में सामूहिक प्रार्थना हुई जिसमे महाराजश्री के साथ-साथ स्त्री-पुरुषो ने चातुर्मास तक १५ मिनट प्रति दिन स्वाध्याय जनता ने भी भाग लिया। पौर महावीर की जयध्वनि करने की प्रतिज्ञा ली। महाराजश्री के भाषण का जनता पूर्वक उत्सव समाप्त हुआ। पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि पण्डाल में कही से भी कोई
प्रेमचन्द जैन मावाज नहीं सुनाई देती थी। सब शान्त होकर
मंत्री, वीरसेवामन्दिर