________________
दो संस्मरण
ऐसा नहीं कहा जा सकता कि बाबू छोटेलाल जी मैंने कहा-बाजो जन अनुकूलता होगी तब अवश्य कलकत्ता हमारे बीच से इतनी जल्दी चले जायेगे। क्रूर पाऊँगा आप विश्वास कीजिये । कालगति के कारण अनिच्छित भाव से ग्राज आपके नाम प्राप सूरत दो दिन ठहरे इस बीच में प्रापसे ३-४ के साथ स्वर्गीय विशेषण लगाना पड़ा यह विधि की मर्तबा मिला, और मैंने देखा कि पाप में बेहद दर्जे की बिडम्बना ही मानी जायेगी। स्वर्गस्य को शांतिलाभ और आत्मीयता थी । आप जिससे मिलते थे उममें अपनी प्रापके परिवार को बाबूजी का असह्य वियोग सहन करने प्रात्मीयता उंडेल कर उसे अपना बना लेते थे यह पापकी की समता और क्षमता प्राप्त हो । बाबूजी के दो सस्मरण विशेषता थी। आप श्रीमानों में श्रीमान, विद्वानों में निम्नप्रकार हैं
विद्वान, दानियो मे दानी, नेतामों में नेता, निस्वार्थ बाबू श्री छोटेलालजी जैन सरावगी कलकत्ता से मैं निष्काम सेवाभावियों में लोकप्रिय सेवक थे । प्रथम परितीन बार मिला हूँ। पापका नाम और आपके काम तो चय मे जो वार्तालाप हुग्रा वह स्मृतिस्वरूप चलचित्र के बहुत वर्षों से सुन रखे थे पर आपसे साक्षात्कार नहीं हुमा क दृश्य के समान आज भी मुझे दिख रहा है और भाप था। पर आज से १२ या १३ वर्ष पूर्व बाबूजी मेरे के वही शब्द कान मे टकरा रहे हैं ऐसा हो रहा है। भाग्योदय से सूरत पाये तभी सर्वप्रथम आपसे साक्षात्कार दूसरी बार प्रापसे मिलना तब हुमा जबकि मैं प्रात:हमा था। बाबूजी श्री कापड़िया जी के यहाँ पर ठहरे स्मरणीय पूज्य वर्णीजी की जन्म जयन्ती पर ईसरी गया हुए थे । प्राफिस के कामकाज की अधिकता के कारण था । बाजी से मिलने गया तो पलग पर लंटे हुए थे मैंने सोचा था कि माफिस से जाने के बाद बाबूजी के पास क्यों बाजी अच्छे तो है न ? हां भाई स्वन्त्रजी ठीक तो कुछ समय बैलूंगा और शाति के साथ बातचीत करूंगा। हूँ, पर ४-५ दिन से बुखार पा रहा है। उनका मैंने हाथ यह विचारधारा चल ही रही थी।
छुपा तो कम-से-कम १०४ डिग्री बुखार था। तभी श्री कापड़ियाजी ने कहा-५०जी प्रापको बाबू प्राधा घंटे के बाद देखा तो बाजी पण्डाल में बैठे जी याद करते हैं अभी मिल पाइये। मै उसी समय
हुए हैं और बुखार चढ़ा है। बाजी धुन के पक्के के मिलने गया तो बाजी उठ खड़े हुए और गले लगाकर अपनी शारीरिक स्थिति को न देखते हुए भी सेवा के कार्य मिले । मैंने कहा, बाबूजी मुझ जैसे अल्पज्ञ के लिए इतना
ए इतना में जुटे रहते थे। वोडी के तो पाप मनन्य भक्त ही
ही सम्मान, मुझे तो लगता है मैं धरती मे गड़ा सा जा रहा है। हैं। बाजी ने मेरा हाथ पकड़कर बैठाते हुए कहा-भाई श्रीमान् बद्रीप्रसाद जी सरावगी पटना ने मुझसे कहा स्वतन्त्रजी, न तो मैं ऐसी भाषा जानता हूँ और न कि स्वतन्त्रजी मापके मार्ग-व्यय की व्यवस्था मैं कर दूंगा साहित्यिक विद्वान ही हूँ।
मैं वहाँ बीमार भी हो गया था तब सरावगीजी मुझे इसके बाद मापसे सामाजिक एवं धार्मिक चर्चायें पटना ले गये थे। बाजी को न मालूम कैसे पता लग माधा घटे तक होती रही। आपके साथ पापकी भतीजी गया ? कुछ पता नही, सभा समाप्त होने के बाद उनने भी थी, उसने एक गिलास मुझे दूध दिया। बा०जी ने मुझसे कहा कि पाप जब यहाँ से जायें तब मुझसे मिल कहा-पाप कलकत्ता अवश्य पाइये मैं प्रतीक्षा में हूँ, कब कर जाना । मेने कहा बाजी मापके बगैर कहे ही मिलने तक मा रहे हैं ?
माऊँगा।