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प्राकृत याकरणों की पाश्चात्य शाखा का विहंगावलोकन
वही क्रम निर्धारित किया है जो विविक्रम का है। उनके हैं। श्री Aufrecht ने पानी सूची में इसका उल्लेख व्याकरण में यह विशेषता है कि उन्होंने त्रिविक्रम और नहीं किया है। बाल सरस्वती का ययार्थ नाम वेंकटकृष्ण मिहराज के पश्चात् उपलब्ध कुछ नवीन विधियों का कवि है जो कृष्णदेव के पुत्र तथा भैरव के पौत्र थे । वे प्रयोग किया है।
'बाल सरस्वती' तथा 'वागानुशासन' नामक उपाधियों में अप्पय दीक्षित की प्राकृत मणिवीप (दीपिका) भी विभूषित थे। वे तेलगु के कवि थे तया उन्होंने बहुत-सी त्रिविक्रम की टीका ही है। उन्होने अपनी टीका तथा मूल रचनाएँ एवं टीकाएँ लिखी थी। उनका 'सद्भाषा तत्कालीन उपलब्ध कुछ प्राकृत की विधियों के अतिरिक्त विवरण' कई अध्यायों में विभाजित है, जैसे समाप्रकरण,
और कुछ नवीन प्रयोग नहीं किया है। अप्पय दीक्षित ने सन्धि प्रकरण, सुबन्ताधिकार, तद्धित प्रक्रिया और तिङ्न्त त्रिविक्रम, हेमचन्द्र, लक्ष्मीधर, भोज, पुष्पवननाथ, प्रकरण । उन्हान शास्त
प्रकरण । उन्होंने शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका वररुचि और वातिकार्णव भाष्य अप्पयज्वन आदि का पैशाची और अपभ्रंश आदि के अतिरिक्त एक "भापा अधिकारी विद्वानों की भाँति स्मरण किया है। पर यहाँ विनियोग" नामक नवीन अध्याय भी जोड़ा है। इन सब यह एक विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि त्रिविक्रम को बातों के अतिरिक्त बाल सरस्वती के विषय मे और कुछ व्याकरण पर सबसे तुच्छ प्राकृत व्याकरग नरसिंह की तब तक नही लिखा जा सकता है जब तक कि उनकी प्राकृत शब्द-दीपिका है। इसका प्रारम्भिक भाग ग्रन्थ कृति प्रकाशित नहीं होती है । प्रदर्शनी सीरीज न. ३ और ४ में प्रकाशित हो गया है।
त्रिविक्रम की भाँति शुभचन्द्र ने भी 'शब्द चिन्तामणि'४ श्री कृष्णमाचार्य ने२ अभी हाल हमे सूचित किया नामक प्राकृत व्याकरण की रचना की है, वे नन्दिसंघ, है कि बाल सरस्वती एडापप्पल्ली (Edappalli) के मूलमंघ, बलात्कारगण, कुन्दकुन्दान्वय पमनन्दी, सकलनिवामी थे। जिन्होने 'सद्भाषा विवरण' नामक प्राकृत कीति, भुवनकीर्ति, ज्ञानभूपण और विजयकीर्ति आदि व्याकरण रची थी जो वाल्मीकि के प्राकृत सूत्रों तथा प्राचार्यों की शिष्य परमरा मे थे। शुभचन्द्र ने शब्द त्रिविक्रम की टीका पर आधारित है जिसका उल्लेख चिन्तामणि' की टीका भी की है जो तीन अध्यायों में उन्होने स्वय अपनी भूमिका सम्बन्धी पद्यों में किया है। विभाजित है और प्रत्येक प्रध्याय चार पादों में विभाजित बाल सरस्वती की रचना अब तक प्रकाश में नही पाई है। इसमें त्रिविक्रम के १०३६ की जगह १२२४ सूत्र है, है परन्तु देवनागरी लिपि में लिखी एक कागज की पाडु. (डा० उपाध्ये १०८५ सूत्र बताते है) उनके अनुसार लिपि अध्यार पुस्तकालय में सुरक्षित है जिसके १४६ पृ० प्राकृत भाषाए महाराष्ट्रो (९६८ सूत्र) शौरसेनी (२६
४.
१. सम्पादक श्री टी टी. श्रीनिवास गोपालाचार्य, संपा-
दक की 'प्राकृत मणिदीप दीपिका' नामक टीका सहित । मोरियण्टल रिसर्च इन्स्टीटयट पब्लिकेशन,
संस्कृत सीरीज नं०६२, मैसूर १९५४ (१९५३?) २. यह सब सूचना उनकी पाडुलिपि नोट्स पर आधारित
है जो 'ब्रह्मविद्या' में प्रकाशित हुए हैं। (अध्यार लायब्ररी बुलेटिन) Vol. XXVI. माग १-२ मई
१९२६ पृ०१८-१०० ३. वाल्मीकिम् सूत्रकारं च वृत्तिकारम् त्रिविक्रमम् । वन्दामहे महाचार्यान् हेमचन्द्रादिकानपि ।।
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A. D. F. Hocrnle IA. (i) 1873 P. 29 इसम उन्होंने एक प्रश्न प्रकाशित किया है कि शब्दचिन्तामणि' की कहीं कोई अन्य प्रति भी उपलब्ध है अथवा नही ? उनके पास शुभचद्र की व्याकरण के दो ही अध्याय प्राप्त है। पर अन्त मे डा० प्रा० ने उपाध्ये ने अपने लेख 'शुभचन्द्र और उनकी प्राकृत व्याकरण' ABORI XIII 1931-32, PP, 37-38 में सभी सभव सूचनाएँ प्रस्तुत की हैं । डा० उपाध्ये ने केवल प्रशस्ति और शौरसेनी का ही संपादन किया है (देखो परिशिष्ट अ, ब, पृ. ५४-५७) मेरी सभी जानकारी उन्हीं पर आधारित है।