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अनेकान्त
उसके हृदय का मापरेशान कर एक विच्छू को निकाला। प्राज करोड़ों मील दूरी से शब्दों का हमारे पास तक इस प्रकार लड़के ने तड़फ-तड़फकर जान दे दिया। पहुंचाने में "ईथर" की आवश्यकता माध्यम के रूप से
उपरोक्त बातों से सिद्ध होता है कि पानी को छान पड़ती है। इसी तस्व को वैज्ञानिकों ने कल्पना के रूप कर ही पीना चाहिए। गर्म पानी सेवन करने से स्वास्थ में माना । परन्तु हजारों वर्ष पहले ही लोकन्यापी "महाठीक रहता है।
स्कन्ध" नामक जैनाचार्यों ने पदार्थ के अस्तित्व को बतअहिंसा की रक्षा के लिये जैन दर्शन में रात्रि भोजन लाया है । इसी की सहायतासे भगवान प्रादिनाथके जन्मादि त्याग की बात सप्रमाण कही गई है। समाचारपत्रो की सूचना क्षण मात्र में विश्व भर मे तड़ित के समान मे अनेकानेक रात मे खाने वाले मनुष्यों की घटनाएँ पहुँच जाती है । यह विस्तृत होते हुए भी सूक्ष्म बतलाया प्रकाशित होती हैं। कही चाय की पटली में छिपकली के गया है। चुर जाने के कारण चाय पीने वाले व्यक्तियों का मरण जैन दर्शन इस बात का प्रमाण है कि प्रत्येक वस्तु में सुनने में आता है और कही किसी दावत में पकते हुए अनन्त शक्ति विद्यमान है। आधुनिक वैज्ञानिक भी एक वर्तनमे सांप के मर जाने से मनुष्य भी परलोक चला जाता तत्त्व से अनेकानेक चमत्कारपूर्ण वस्तुपों का निर्माण करते है। प्रति वर्ष ऐसी घटनाएं होती हैं।
हैं। जैनधर्माचार्य प्राज भी कहते है कि ऐसी वस्तुपो का माधुनिक विज्ञान भी इसी बात की पुष्टी करता है रहस्य छिपा हुआ है। प्राइस्टीन वैज्ञानिक भी इसी मत कि सूर्यास्त होने के बाद अनेक सूक्ष्म जीव उत्पन्न होकर को दोहराते है। विचरण करने लगते हैं। वैद्य भी दिन के भोजन का जैनधर्म ने सदैव से इस बात का प्रचार किया है समर्थन करते हैं।
कि सत्य एक रूप में न होकर विविध धर्मों का संचय जैन दर्शन पेड़-पौधों को एक जीव के रूप में मानता है। इसी बात को हम अनेकान्त बाद के नाम से स्मरण है। जैनधर्माचार्यों ने इस तथ्य पर अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म करते है। विश्व के महान दार्शनिक अनेकान्त रूपी सागर विवेचना की है। हमारे स्व. वैज्ञानिक सर जगदीश चन्द्र में अपनी बुद्धी से तैरकर पार पाने में सफलता को नहीं बसु ने अपने यन्त्रो के द्वारा इस बात को सिद्ध किया है। पा सके है।
आपने बतलाया कि अन्य जीवों के समान वनस्पति भी भारत के शंकराचार्य जैसे ऋषी अनेकान्त बाद के क्रिया कर्म करते है।
रहस्य को नहीं ससझ सके । प्राधुनिक वैज्ञानिक प्रांस्टाइन जैन दर्शन इस बात की पुष्टी करता है कि वस्तु का के अपेक्षावाद के सिद्धान्त जैन दर्शन के सिद्धान्त के विनाश नही होता है। उसकी प्रस्थानों में परिवर्तन पर्याय है। वह उनसे बहुत कुछ मेल खाते है। हमा करता है । भारत के कणाद मुनि ने भी कहा है कि
जैन दर्शन में भोजन की शुद्धता पर अधिकाधिक बल पदार्थ सूक्ष्म कणों से मिलकर बनता है और इसे किसी
दिया गया। वैज्ञानिक भी इस मत के प्रतिकूल नहीं है। भी क्रिया द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता है। इटली
शुद्ध भोजन खाने से स्वास्थ ठीक रहता है। और फ्रास के वैज्ञानिक एव दार्शनिक भी उपरोक्त कथन
आधुनिक विज्ञान अभी उन्नतिशील है। यूरोपियन को दोहराते है।
विद्वानों ने बहुत यथार्थ कहा है कि हम प्रकृति के उन सोलहवीं शताब्दी मे रावर्ट बॉयल नामक वैज्ञानिक
रहस्यों का प्राविष्कार करेगे, जिसको आज तक किसी ने अपने रासायनिक संयोग के नियम (Laws of
भी व्यक्ति को देखने का सौभाग्य नही प्राप्त हुआ है। chemical combination) में लिखा है कि पदार्थ को किसी भी क्रिया (भौतिक और रासायनिक) द्वारा नष्ट
उपरोक्त कथन इस बात का प्रमाण है कि जैन दर्शन नहीं किया जा सकता, केवल उसका रूपान्तर किया जा पार
और माधुनिक विज्ञान का सम्बन्ध निकट ही है। जैन सकता है। इसी मत की और भी दूसरे वैज्ञानिक पुष्टी दर्शन में विज्ञान के सिद्धान्तों के प्रतिकूल प्राज तक कोई करते हैं।
भी बात नहीं मिली।