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बन-र्शन और देवान्त .
छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ता झगड़ता है। स्यावाद पर प्रश्न यह है कि क्या स्वयं जैन भी-जिन्हें यह की व्यावहारिक उपयोगिता तो यही है कि मनुष्य अपनी धरोहर के रूप में प्राप्त हुमा है-इस सिद्धान्त का ठीक प्रमडिष्णता को दूर करे और सारे धर्मों के समन्वय की उपयोग करते हैं? दिगम्बर श्वेताम्बर लड़ते हैं, दिगम्बर दष्टि से देखें पर यहाँ तो उल्टी गंगा बह रही है कि स्वयं दिगम्बर लड़ते हैं और श्वेताम्बर श्वेताम्बर लड़ते हैं। जैन ही इसका व्यावहारिक उपयोग नहीं करते है और यदि हम वास्तव में इसका संघर्षों को चिकित्सा के रूप आपस में लड़ते हैं। उन्हें कोर्ट में लड़ते हुए देखकर कभी- में उपयोग नहीं कर सकते तो इसकी सारी शास्त्रीय कभी न्यायाधीश भी कह देते हैं कि स्याद्वाद का उपयोग व्याख्याएं बेकार हैं। इसकी सप्तभङ्गी न्याय, सकला देश करो लड़ो मत ।
और विकला देश मादि विशेषताओं को जानने का प्रयोजन
भी यही है कि सचाई को जहाँ से भी पकड़ सकें पकड़लें। संसार का गुरु
उसके लिए झगड़े नहीं करें। स्याद्वाद को अपने जीवन में अंण विणा लोगस्सवि ववहारो सम्बहान णिब्बई।
उतारे बिना हम अहिंसा के द्वारा कभी अपने को सुसंस्कृत तस्स भुवणेक गुरुणो णमो प्रणंतवायरस ॥११॥ नहीं बना सकते । यह सिद्धान्त जैनागम का जीव अश्वा
इस गाथा में स्थाढाद को संसार का गुरु बतलाकर बीज है। यह एक विचार पद्धति है और इस पद्धति को उसे प्रणाम किया गया है और बतलाया है कि इसके सभी दार्शनिकों ने किसी न किसी रूप में अवश्य अपनाया बिना जगत का कोई भी व्यवहार नही चल सकता । किन्तु है भले ही उन्होंने इसका भपने ग्रंथों में नाम नही दिया सच बात तो यह है कि स्थाबाद केवल प्रणाम करने की हो। इसलिए यह वाद संसार का गुरु है इसमें कभी वो चीज नहीं है अपितु जीवन में उतारने का सिद्धान्त है, मत नही हो सकते।*
जैन-दर्शन और वेदान्त
मुनि श्री नथमल दर्शन मनुष्य का दिव्य चक्षु है। मनुष्य अपने चर्म- धर्म-गति सहायक द्रव्य । चक्षु से नही देख सकता, वह दर्शन-चक्षु से देख सकता अधर्म-स्थिति सहायक द्रव्य । है । सत्य जितना विराट् है उतना ही प्रावृत है। अनेक माकाश-अवगाहदायक द्रव्य । दर्शनों ने समय-समय पर उसे निरावृत करने का प्रयत्न काल-परिवर्तन हेतु द्रव्य । किया है। उन्होंने जो देखा वह दर्शन बन गया। अनेक पुद्गल-स्पर्श, रस, गन्ध और वर्णात्मक द्रव्य । द्रष्टा हुए हैं इसलिए अनेक दर्शन हैं। उनमें से दो दर्शन जीव-चेतनात्मक द्रव्य। ये हैं. जैन और बेदान्त । जैन तवादी हैं और वेदान्त १. इनमें जीव चेतन है, शेष पाँच प्रचेतन है। अद्वैतवादी हैं।
२. पृद्गल मूर्त है, शेष पांच प्रमूर्त हैं। जैन-वर्शन और विश्व
३. धर्म, अधर्म और प्राकाश व्यक्तिशः एक है, शेष जैन-दर्शन के अनुसार यह विश्व छ: द्रव्यों का समु- तीन व्यक्तिशः अनन्त हैं। दाय है। धर्म, अधर्म, प्राकाश, काल, पुद्गल और जीव- ४. धर्म, अधर्म और पाकाश व्यापक है, जीव भोर ये छह द्रव्य है।
पुद्गल प्रध्यापक।