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स्याद्वाद का व्यावहारिक जीवन में उपयोग
पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ
स्यात् का अर्थ है कथचित् अर्थात् अपेक्षा और बाद उसका एक छोटा बच्चा भी था बातचीत के सिलसिले में का अर्थ है सिद्धान्त । तब स्याद्वाद का अर्थ हुमा अपेक्षा मैंने उससे पूछाकि क्या तुम्हारे पिता के सबसे बड़े पुत्र तुम का सिद्धान्त । इसी के दूसरे नाम अनेकान्तवाद, सापेक्ष- ही हो तो उसने उत्तर दिया कि मैं अपने पिता की एकदष्टि एवं सापेक्षवाद हैं । इस बाद का जनों के दार्शनिक मात्र मंतान हूँ इसलिए छोटे बडे का प्रश्न पैदा नहीं ग्रंथों में विशद रूप से विवेचन किया गया है तथा नित्य होता । छोटेपन या बड़ेपन की अभिव्यक्ति का प्राधार अनित्य, एक अनेक सत्. असत् और भिन्न अभिन्न आदि तो अपेक्षा है। युवक का कहना वस्तुत: युक्ति संगत परस्पर विरोधी दिखने वाले-जो वस्तुतः विरोधी नहीं था। और सही बात तो यह है कि उम युवक का पुत्रत्व है-स्वरूपो को समझाया है और सभी दर्शनों के सम- भी सापेक्ष था। क्योकि वह अपने पिता की अपेक्षा तो न्वय की उचित दिशा दिखलाई गई है। किन्तु दु.ख की पुत्र था । पर उसी के पास जो उसका छोटा बच्चा बैठा बात यही है कि इस विश्वोपयोगी सिद्धान्त को केवल था उसकी अपेक्षा वह पिता भी था। वह युवक बोला शास्त्रों की चीज बना दिया गया जबकि यह जीवन इस तरह तो मैं अकेला ही मामा-भानजा, काका-भतीजा व्यवहार का सिद्धान्त है। यदि हमे अपने जीवन में स्था- पोर न मालूम मैं क्या क्या हूँ। मेरा छात्र बोला तब तो द्वाद से प्रेरणा मिले तो न केवल हम मन्चे तत्त्वज्ञानी मेरा शिष्यत्व और पापका गुरुत्व भी मापेक्ष हैं मैंने कहा बन सकते है अपितु अपने को स्व एव पर के लिए उप- इममे शक ही क्या है। योगी भी बना सकते हैं।
सारा जगत सापेक्ष है। अपेक्षावाद क्या है।
बात यह है कि यह सारा विश्व सापेक्ष है। जगत मैं अपने एक छात्र को अपेक्षावाद का स्वरूप समझा का कोई व्यवहार कोई स्थिति और कोई स्वरूप रेसा रहा था। मैंने उसके सामने पड़ी स्लेट पर एक रेखा नही है। जिसे सर्वथा निरपेक्ष कहा जा सके। नीगखैची और उसको पूछाकि यह रेखा छोटी है या बडी? ऊँवा, लम्बा-ठिगना, भला-बुरा, विद्वान्-मूर्ख-दुखी-सूखी
I रेखा कोन कोटी का शासक-शासित, धनी-निर्धन, सबल-निबल, काला-गौराजा सकता है और न बड़ी। उसका कहना ठीक था, हल्का-भारा आदि मभा सापक्ष है। सज्जन-दुर्जन, अन्धक्योकि छोटापन या बडापन मापेक्षिक धर्म है और एक
कार-प्रकाश, काच, हीरा एव मुक्त और बद्ध मादि सभी पदार्थ में अपेक्षा नहीं हो सकती। मैंने उस रेखा के पास सापवाद का सामा म प्राय बिना नहीं रहते। य एक छोटी रेखा और खैच दी और पछा कि प्रश्न का मनुष्य इस सापेक्षता से परिचित न हो उसका ज्ञान ही उत्तर प्रब दो, उसने तत्काल कहा कि पहले वाली रेखा गलत न होगा अपितु छोटी-छोटी बानों को लेकर वह बड़ी है, किन्तु मैंने उसके पास उससे भी एक बड़ी रेखा झगडता भी रहेगा। और खैच दी और पूछाकि अब बोलो तो छात्र ने कहा बात पुरानी है । योरुप के किमी नगर के बीच में कि इसकी अपेक्षा पहले बैंची गई रेखा छोटी है। एर मूर्ति स्थापित की । उसका एक मोर मोने का दूसरा ____ इतने में ही बाहर से एक युवक पाया और बैठ गया, और चांदी का था। दोनों ओर से एक माथ ही दो योडा उसने अपने आने का प्रयोजन बतलाया। उसके साथ माये। जो घोड़े पर सवार थे। एक ने कहा महा ! यह