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सोने की मूर्ति कितनी सुन्दर है। किन्तु दूसरी मोर के दिन की देरी हो जाने से उसे RE रुपये क्विन्टल के भाव घुड़सवार ने उसे चांदी की बताकर उसका विरोध किया से गेह मिले जबकि १० दिन पहले उसका मित्र ८० रुपये किन्तु इस विरोष को वह न सह सका। और मूर्ति को क्विन्टल के भाव से अच्छा गेहें लाया। इसका उसे बहुत सोने की बताता रहा, दोनों में बात बढी और वे अपने- दुःख था। किन्तु इतने में ही एक सज्जन पाये और बोले अपने घोड़े से उतर कर हाथापाई करने लगे। इतने में ही कि मैं ६६ रुपये क्विन्टल गेहूँ लाया हूँ । इस बात को सुन एक समझदार आदमी उधर से निकला और उनकी लड़ाई कर ८६ रुपये क्विन्टल वाले भाई को कुछ संतोष हुमा । का कारण जानकर मूर्ति को सोने की बतलाने वाले को उसके संतोष का कारण उसका सापेक्ष ज्ञान था। सच मूर्ति के चांदी वाले हिस्से की और ले गया और चांदी कहा जाय तो यह सारा जगत पारस्परिक अपेक्षाप्रों से की बतलाने वाले को सोने के हिस्से की ओर खडा कर व्याप्त है। पोर उन्हीं से प्रेरित भी है। दिया। दोनो ही घुड़सवारों ने अपने एक पक्षीय ज्ञान का प्रलवर्ट प्राईन्स्टीन का सापेक्षवाद अनुभव किया। अपनी मूर्खता पर तुम्हें अत्यन्त ग्लानि
जब हम अलबर्ट आईन्स्टीन के सापेक्षवाद का अध्यहुई । और वे लज्जित होकर वहां से चले गये। यन करते है तो हम उसे जैनों के स्याद्वाद से भिन्न नही ___मनुष्य की अब तक की सारी विपत्तियों का कारण पाते एक बार पाईन्स्टीन से उनकी पत्नी ने "मैं सापेक्षउसके मन का आग्रह है। जगत के प्राज तक के सभी वाद क्या है" कैसे बतलाऊँ, तो उन्होंने अपनी पत्नी को महायुद्ध और घर गृहस्थी की छोटी-बड़ी लड़ाइये एवं कहा कि “जब एक मनुष्य एक सुन्दर लड़की से बात कर सभी प्रकार के राजनीतिक-माथिक-मादि संघर्षों का हेतू रहा हो तो उसे एक घटा एक मिनट जैसा लगता है और एक दूसरे की पारस्परिक अपेक्षा को नहीं समझना ही है। उसे ही एक गर्म चूल्हे पर बैठा दिया जाय तो एक मिनट
को न समतोमड पर चलता मा टेनमे एक घंटे बराबर लगने लगेगा। अपेक्षावाद को समझने बैठा हुप्रा और धर्मशाला, सराय आदि मे ठहरा हा की यह एक मिसाल है। चाहे गणित की दृष्टि से पाईमनुष्य भी लड़ पड़ेगा । और खून खच्चर का कारण बन न्स्टीन का सापेक्षवाद कितना ही दूरूह क्यों न हो व्यावजायेगा। ऐसा मनुष्य स्वयं अपनी भी हानि करता है। हारिक दृष्टि से वह सरलता से समझ में प्रा सकता है। पौर दूसरों की भी।
पदार्थों में अनन्त अपेक्षाएं विद्यमान रहती हैं और उनकी आधुनिक विश्व की सभी राजनीतिक-आर्थिक एवं अभिव्यक्ति तब होती है जब दूसरा पदार्थ उपस्थित होता सामाजिक कही जाने वाली समस्याएं हल हो सकती हैं है। यह अभिव्यक्ति सामायिक होती है। यदि उनके समाधान के लिए सापेक्ष दृष्टि का उपयोग
पर पदार्थ अनंत धर्मात्मक है। किया जाय । किन्तु मनुष्य के मन मे जो चिरकालिक पदार्थ अनंत धात्मक है। यही कारण है कि हम कभी पशुता (हिमा) खेल रही है। उसके कारण वह स्याहाद उसे हैं" कहते है और कभी उससे "नहीं है" कहते हैं। का महत्व नहीं समझता और छोटी से छोटी बात के लिए कभी "मोर नहीं हैं" कहते है और कभी प्रवक्तव्य कहते विग्रह पैदा कर देता है।
हैं, इसलिए एक हिन्दी कवि कहता है कि "कोई कहे दुःखों का कारण स्याद्वावकी अनभिज्ञता
कुछ है नहीं, कोई कहे कुछ है। है और ना के बीच में, मनुष्य के सारे दुःखों का कारण स्याद्वाद को नहीं जो कुछ है सो है।" समझना है। यह एकनिविवाद तथ्य है कि उसके अधि- पदार्थ के अनन्त धर्म ही उसकी अनन्त अपेक्षामों के कांश दुःख कल्पना पर आधारित है और उन प्रसत् कारण हैं । समझ में नहीं माता कि जब पदार्थ की यह कल्पनामों का कारण स्याद्वाद की अनभिज्ञता है । उस स्थिति है तब मनुष्य लड़ता क्यों है । वह अपने दृष्टिकोण दिन एक मादमी ने अपने मित्र को कहा कि दो चार को विशाल और उदार क्यों नहीं बताता! क्यों वह