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जंग कथा साहित्य को विशेषताएं
कौतूहल और विस्तार होता है।
इन कथाओ की पात्र - सृष्टिब्यापक भाव-भूमि पर आधारित होती है । यों तो इनमें प्रधान पात्र प्रकारान्तर सेप्टिनाका पुरुष ही होते है पर सामान्यतः प्रत्येक वर्ग का पात्र इनमें दृष्टिगत होता है। राज-वर्ग से निम्न वर्ग का गबंध सूत्र भी यहाँ दिखाई देता है। दतिल हरिवेशी (हरिजन) प्रहारी (चोर) मर्जुनमानी ( माली) मद्दालपुत्त (कुम्भकार ) श्रादि पात्र यहाँ अपनी साधना के कारण सम्मान के अधिकारी बने है । ये पात्र किमो न किमी वर्ग, जाति या समूह का प्रतिनिधित्व करते हुए पाये जाते है। इनमें उनके स्वतन्त्र मनोभावो के अभिव्यजन और मानसिक ग्रन्तर्द्वन्द्व के लिए कम ग्यान है। पात्रों के परित्र-चित्रण में पर्याप्त विकास मिलता है। यदि वे मिथ्यादृष्टि हैं तो उचित अवसर और उपदेश पाकर विरागी बन जाते है। यह परिवर्तन कई कारणो से हो सकता है । कभी शास्त्रार्थ के कारण (जैसे) केशो अमण और राजा परदेशी) दृष्टि बदल जाती है, कभी दूसरो को दुखी देखकर और कभी अत्यन्त नियत्रण के प्रतिकार (कोशनि की भावना से मन मार्ग की ओर अग्रसर हो जाता है ।
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है । मानव मन की चारित्रिक दृढ़ता मौर प्राचरण की गरिमा तथा महानता को प्रतिरादित करने के लिए हो यहां मानवेतर पात्रों की सृष्टि की गई है। इन कहानियों को पढने से मानवीय परियो को प्रभाव गरिमा मौर व्यक्तित्व की महिमा से ही पाठक प्रभावित प्रातंकित और स्तम्भित होता है न कि दैविक शक्ति के प्रयोग धीर चमत्कार मे देवयात्रों की मुष्टि अपने पाप में महत्वपूर्ण | नही है वह महत्वपूर्ण बनती है मानवीय चरित्र को महा
नता का उद्घाटन कर ।
जैन कथा साहित्य की एक अन्यतम विशेषता है देशकाल का व्यापक चित्रण । इन कहानियो को पढ़ने से भारत-भूमि की भौगोलिक और ऐतिहासिक जानकारी का प्रामाणिक परिचय मिलता है। उस समय के प्रसिद्ध नगरों के नाम, पात्रों के नाम, प्रधान व्यवमायो के नाम, महत्वपूर्ण उद्यानों के नाम श्रादि के उल्लेख से वातावरण मे सजीवता व निश्चितता या गई है। प्रमुख नगरी के कुछ नाम है- राजगृह नगरी लावर्धन नगर, चम्पानगरी, निनाम्बिका भावस्ती, मिथिला यतिका धादि उद् यानी के नाम है-मडीकुक्ष मृगवन आदि । इस व्यापक चित्रण के कारण कहानी वर्णनात्मक अधिक बन गई है। नगर, बाग, संपदा, व्यवसाय, सौन्दर्य, माधना यादि का विस्तृत वर्णन मिलता है।
स्त्री पात्रो में सामान्य और विशिष्ट दोनो प्रकार की स्त्रियां देखी जाती है। सामान्य स्त्रियों कामुक, ईर्षा और साधना के मार्ग में बाधक होती है, विशिष्ट स्त्रियाँ मती साध्वी मयमनिष्ठ और चरित्र को बलवान होती है । उनमें अपने चरित्र को दृढता के साथ पालने की शक्ति ही नहीं होती बग्न दूसरों को सदमाग पर बनाये रखने की भी ताकत होती है। राजमती, कांच्या याद ऐसी ही स्त्रियाँ हैं ।
देव-पात्रों और पशु-पक्षियों की भी यहाँ कमी नही
यह वर्णन कथा-ली के कारण नीरस न होकर मरस बन गया है। भाषा में जो एक विशेष प्रकार का प्रवार मौर लौकिक उपमानो के चयन से विशिष्ट प्रकरण है वह कथा के सौन्दर्य को बिलग्ने मे गेवला है। यह ठीक है कि शैलीगत वैविध्य और शिल्पगत सौन्दर्य इन कहानियों मे नहीं है पर जिस सार्वजनीन सत्य को ये ध्वनित करती हैं वह अपने आप मे बहुत बड़ी उपलब्धि है।
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