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राजस्थान का न पुरातत्य
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वीर नाम के एक धनी ने एक मंडप तैयार करवाया। दसवीं व ग्यारहवीं सदी में सूरसेनों के समय में इसी राजा के प्रादेश से यशोवीर ने कुमारपाल द्वारा भरतपुर के पासपास प्रदेश पर जैनधर्म का बड़ा प्रभाव निर्मित पाश्र्वनाथ के मन्दिर का पुनरोद्धार करवाया२०। रहा । बयाना, नरोली२७ भादि स्थानों पर इस समय चाचियदेव के राज्य में तेलिया मोसवाल ने महावीर के की अनेक जैन मूर्तियां मिली है। कुछ सूरसेन राजामों मन्दिर को ५०) दम दान में दिए२१ ।
ने तो जैनधर्म को स्वीकार भी कर लिया था । १०४३ पाबू के परमार राजापों के समय भी जैनधर्म ने कम ई.के वयाना के शिलालेख२८ में काम्यक गच्छ के जैन उन्नति नहीं की। विमलबसही तथा लणवसही जैसे कला- साघुपों के नामों का उल्लेख है। पूर्ण मन्दिरों का निर्माण हुमा तथा अनेक भव्य मूर्तियों मध्य कालीन युग में राजस्थान अनेक छोटे-छोटे की उनमें स्थापना हुई। दियाण ग्राम के वि० सं० १०२४ रजवाड़ों में विभाजित हो गया था। राजानों ने उसी के शिलालेख से पता चलता है कि वर्तमान ने कृष्णराज उदार नीति का अनुसरण किया जिसके परिणाम स्वरूप के समय वीरनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा२२ की। झाडोली अनेक मन्दिरों का निर्माण हुमा तथा उनमें मूर्तियों की
मानतामा भाग प्रतिष्ठा की। राजा लोग जैन साधुनों का बड़ा सम्मान की पत्नी शृङ्गारदेवी ने ११९७ ई. में यहां के मन्दिर रखते थे। को भूमि दान में दी२३ । १२८८ में महाराजा वीसलदेव मेवाड़ के महाराणामों की प्रेरणा से भी जैनधर्म को और सारगदेव के समय दत्ताणी के ठाकुर श्री प्रताप और बहुत बल मिला कुछ राजामों ने तो जैन मन्दिरों का श्री हेमदेव नाम के परमार ठाकुरों ने पार्श्वनाथ के मदिर निर्माण किया तथा उनमें मूर्तियों की स्थापना की। ना. को दो खेत दान में दिये२४ । सूवड़सिंह ने इसी मन्दिर चायो को मामषित करके उन्होंने उनका उच्च सम्मान को धार्मिक उत्सव मनाने के लिए ४०० द्रम दान में किया तथा उनके उपदेश से प्रभावित होकर पर हिंसा दिये । दियाणा ग्राम के अन्य शिलालेख से ज्ञात होता है बन्द करवादी । राजा अल्लट क मन्त्री ने प्राधाट में जैन कि तेजपाल और उसके मत्री कृपा ने एक होज बनवाकर
मंदिर बनवाकर उसमें पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा महावीर के मन्दिर को दान दिया२५ ।
की२६ । कोजरा के शिलालेख से पता चलता है कि राणा हळूण्डी के राष्ट्रकूट वंश के राजा जो दसवी सदी में रायसी की स्त्री शृङ्गार देवी ने ११६७ ई. में पार्श्वनाथ शासन करते थे, जैनधर्म के अनुयायी थे२६ । वासुदेवाचार्य के मन्दिर का स्तम्भ बनाया। महाराणा समरसिंह पौर के उपदेश से विदग्धराज ने ऋषभदेव का मन्दिर बनवाया उनकी माता जयतल देवी देवेन्द्रसूरि के उपदेश से बहत और भूमिदान में दी। उसके लड़के मम्मट ने भी इस प्रभावित हुए। जयतल देवी ने पाश्वनाथ का मन्दिर मन्दिर को कुछ दान दिया। इसके पश्चात् इसके पुत्र बनवाया और समरसिंह ने इसको भूमिदान में दी३०। धवल ने इसको सुधरवाया और जैनधर्म के यश को फैलाने उसने अपने राज्य में हिंसा कम करने का भी प्रयत्न का हर प्रकार से प्रयत्न किया।
किया । महाराणा मोकल के खजाची ने १४२८६० में
महावीर का मन्दिर बनवाया। मोकल के पुत्र महाराणा २०. वही जिल्द ११, पृ. ४६-४७
कुम्भकरण के समय तो जैनधर्म का अधिक प्रचार हमा। २१. प्रोग्रेस रिपोर्ट भाकियोलाजिकल सर्वेवेस्टर्न सकिल . १९०८.०६, पृ० ५५
२७. प्रोग्रेस रिपोर्ट माकियोलाजिकल सर्वे वेस्टर्न सकिल, २२. प्रबुंदाचल प्राचीन जैन लेख संदोह. सं० ५५
१९२०-२१, पृ० ११६ २३. पर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख सदोह, सं०४८६ २८. इंडियन एण्टिक्वेरी जिल्द २१, पृ. ५७ २४ वही, ५५
२९.निज्म इन राजस्थान, पृ० २६ २५. वही, ४६०
३०. एनुवल रिपोर्ट राजपूताना म्यूजियम, अजमेर, २६. नाहर जैन लेख संग्रह ८६८ |
१९२२-२३, सं०८।