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द्रव्यसंग्रह के कर्ता और टीकाकार के समय पर विचार
परमानन्द जैन शास्त्री
मैं कई वर्षों से बृहद् द्रव्यसग्रह की वृत्ति मे दिये हुए रचे जाने और बाद में विशेष तत्त्व परिज्ञानार्थ उन्हीं 'पाश्रम नगर' की खोज मे था, मेरा यह विचार था कि नेमिचन्द्र के द्वारा बृहद् द्रव्यसंग्रह की रचना हुई है। उस आश्रम नगर का पता लग जाने पर बृत्तिकार का ठीक बृहद् द्रव्यसंग्रह के अधिकारों के विभाजन पूर्वक यह वृत्ति समय निश्चित हो सकेगा। और तभी मालवपति राजा (टीका) प्रारम्भ की जाती है। साथ मे यह भी सूचित भोज के मांडलिक शासक राजा श्रीपाल के राज्य में द्रव्य किया है कि उस समय प्राश्रम नाम का यह नगर महासंग्रह के लघु और बृहद् रूप में, तथा संस्कृतवृत्ति के रचे मण्डलेश्वर (प्रान्तीय शासक) के अधिकार में था। पौर जाने का निश्चय हो सकेगा। और तब वृत्तिकार के सोम नामका राजश्रेष्ठ भाण्डागार (कोप) प्रादि अनेक उत्थानिका में दिए गए विवरण की महत्ता का भी नियोगों का अधिकारी होने के साथ साथ तत्वज्ञान रूप मूल्यांकन हो सकेगा, और मूल ग्रंथकार के सम्बन्ध में भी सुधारस का पिपासु था। वृत्तिकार ने उसे 'भव्यवर जानकारी मिल सकेगी, क्योकि उत्थानिका वाक्यो से पुण्डरीक' विशेषण से उल्लेखित किया है, जिससे वह उस ग्रंथकार, वत्तिकार और मोमराज श्रेष्ठी तीनोही सम साम- समय के भव्य पुरुषों में श्रेष्ठ था । मागे वृत्ति में दो यिक जान पड़ते हैं। वे उत्थानिका वाक्य इस प्रकार हैं:- स्थानों पर शकानो का समाधान दिया गया है। उससे
'प्रथ मालवदेशे धारानामनगाधिपतिराजाभोज- वह मच्छा विद्वान् जान पड़ता है। देवाभिधान कलिकालचक्रवतिसम्बन्धिनः श्रीपाल महा- मैंने पहले यह लिखा था कि ब्रह्मदेव का उक्त घटनामण्डलेश्वरस्य सम्बन्धिन्याश्रमनामनगरे श्रीमुनिसुव्रत- निर्देश और लेखनशैली से यह स्पष्ट जान पड़ता है कि ये तीर्थकर चैत्यालये शुद्धान्ममवित्तिसमुत्पन्नमुखामतरसा- म घटना उनके सामने
सब घटनाएँ उनके सामने घटी है और नमिचन्द्र सिमान्तस्वाद विपरीत नारकादि दुखभयभीतस्य परमात्मभावनो
देव तथा मोमवेष्ठि उस समय मौजूद थे। और उनके त्पन्नसुखसुधारसपिपामितम्य भेदाभेदरत्नत्रयभावना
समय मे ही लघु तथा बृहद् दोनो द्रव्यसंग्रहों की रचना प्रियस्य भव्यवर पुण्डरीकस्य भाण्डागागद्यनेक नियोगाधि
हुई है। ब्रह्मदेव ने वृत्ति में दो स्थानों पर 'पत्राह सोमाकारि सोमाभिधान राजश्रेष्ठिनो निमित्त श्रीनेमिचन्द्र
भिधानो राजधष्ठि' वाक्यो के द्वारा तथा टीकागत सिद्धान्तदेवः पूर्व षविंशति गाथाभिलंघुद्रध्यसग्रह कृत्वा
__ प्रश्नोत्तर सम्बन्ध से उनकी भोर भी पुष्टि होती है। पश्चाद्विशेषतत्त्व परिज्ञानार्थ विरचितस्य द्रव्यसग्रहस्या
क्योंकि नामोल्लेख पूर्वक प्रश्नोत्तर बिना समक्षता के धिकार शुद्धिपूर्वकत्वेन व्याख्या वृत्तिः प्रारभ्यते । ।
नही हो सकते। टीकाकार ब्रह्मदेव ने इस उत्थानिका वाक्य मे मूल
वृत्ति मे 'माश्रम' नाम के जिस नगर के नाम का ग्रन्य के निर्माण प्रादि का सम्बन्ध बतलाते हुए, पहले
उल्लेख है वह स्थान मालव देश मे चम्बल नदी के किनारे नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव द्वारा 'मोम' नाम के गजष्ठि के
कोटा मे मील दूर और बूदी से ३ मील दूर अवस्थित निमित्त मालवदेश के प्राश्रम नामक नगर के मुनि सुव्रत
है, जो पाश्रम पत्तन, पत्तन, पुटभेदन प्रौर केशोराय पत्तन चैत्यालय में २६ गाथात्मक द्रव्यसंग्रह के लघु रूप में
के नाम से प्रसिद्ध है। और परमारवशी राजाभो के १. सोमच्छलेन रइया पयत्थ-लबखरण कराउ गाहापौ। भव्ववयारणिमित्तं गणिणा सिरि मिचन्देण । २५॥ १. विशेष परिचय के लिए देखें-डा० दशरथ शर्मा का
लघु द्रव्यसग्रह माधम पत्तन ही केशोराम पडन है नामक लेख जो