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जैन कथा साहित्य की विशेषताएँ
नरेन्द्र भानावत
जैन साहित्य विविध और विशाल :
उसका एक विशेष प्रबल अंग है। जैन साहित्य विविध प्रौर विशाल है। उममे जैन कथा साहित्य के प्रकार : प्राणिमात्र की कल्याण-भावना निहित है। वह तत्कालीन
यों तो सामान्यत. जैन कथाएं धर्म, नीति और सदा. मामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक परिस्थितियों का
चार से संबधित है। पर शास्त्रीय दृष्टि से इन कथाओं को प्रतिविब तो है ही, सबसे बढ़कर वह है पात्मा का प्रति
दो रूपों में विभक्त किया गया है कथा और विकया। बिब । प्रात्मा अपने अपने आप में शुद्ध, बुद्ध प्रबुद्ध है पर
कथा के तीन भेद है-अर्थ कथा, धर्म कथा और कामकर्मज के पुदगल, गग-द्वेप के विकार उमसे चिपक कर
कया। प्रर्थ का म्वरूप एव उपार्जन के उपायों को बतलाने उमे मलीन बना देते है। प्रत मम मामयिक परिस्थितियों
वानी वाक्य-पद्धति अर्थ कथा है जैसे कामन्दकादिशास्त्र के चित्रण के माथ-साथ जैन साहित्य का अधिकांश भाग
धर्म का स्वरूप एव उपायों को बतलाने वाली वाक्य उम माहित्य मे सबधित है जिसमे प्रात्मा की बधन और
पद्धति धर्म कया है जैसे उत्तराध्ययन मूत्रादि । काम एवं मुक्ति का, मलीनता और पवित्रता का, प्रवृत्ति और
उसके उपायों का वर्णन करने वाली वाक्य पद्धति काम निवृत्ति का, जन्म और मृत्यु का, राग और विराग का, पाप और पुण्य का विविध रूपो, प्रकारों और शैलियों में।
कथा है। जैसे वात्स्यायन काममूत्र मादि । इनमे धर्म-कथा वर्णन है । इम माहित्य का मूल सदेश है अपने जीवन को
को ही विशेष महत्व दिया गया है। पवित्र बनाम्रो, अपने समान ही दुमरे प्राणियो को समझो, संयम में बाधक चारित्र विरुद्ध कथा को विकथा कहा अावश्यकता से अधिक संग्रह न करो, सूख-दस्य में समभाव कहा गया है। इसके चार भेव है। स्त्री-कथा, भक्त-कथा, रखते हुए मयमित बने रहो।
देश कथा और राजकथा । स्त्री कथा के चार भेद है
जाति कथा (किसी जाति विशेष की स्त्रियों की प्रशंसा जैन साहित्य का स्थूल वर्गोकरण
या निन्दा करना) कुल कथा (किसी कुल विशेष की जैन माहित्य की प्राधारभूमि है जैन मागम । जैन स्त्रियो की प्रगसा या निन्दा करना) अप कथा (किसी प्रागमो में जो चार अनुयोग बतलाये गये है, मपूर्ण साहित्य देश विशेप की स्त्रियों के भिन्न-भिन्न प्रगो की प्रशंसा या का ममावेश उनमे किया जा सकता है। प्रथमानुयोग में निन्दा करना) वेश कथा (स्त्रियों के वेणी बध और पहधार्मिक विधान विशेप का किम व्यक्ति ने कमा पालन नाव आदि की प्रगमा या निदा करना।) किया, अनेक बाधामो पौर प्रतिकल परिस्थितियों में भी स्त्री कथा का निपंध इसलिए किया गया है कि इसके उमे कैमे निवाहा उसका क्या फल मिला प्रादि आदि करने व मुनने में मोह की उत्पति होती है, सूत्र और विपयो को लेकर वर्णन रहता है । करणानुयोग मे वगोल अर्थज्ञान की हानि होती है तथा ब्रह्मचर्य मे दोष लगता है। आदि गणित प्रधान विपयो का वर्णन रहना है। चरणानु- भक्त (भात) कथा के भी चार भेद है-पावाप योग में सदाचार के मूल नियम और उनके प्राचरण सबधी कथा (भोजन बनाने की कथा), निर्वाप कथा (भोजन के क्रियाएं पाई जाती है। द्रव्यानुयोग में तात्विक सिद्धातो की विभिन्न प्रकारों का वर्णन करना) प्रारंभ कथा (भोजन विवेचना रहती है। कहना न होगा कि रसात्मक साहित्य में इतने जीवो प्रादि की हिंसा होगी मादि का वर्णन का मूल संबंध प्रथमानुयोग से ही है। कथा साहित्य भी करना) निष्ठान कथा (भोजन विशेष के बनाने में इतना,