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द्रव्य लगेगा प्रादि का वर्णन)।
यह कथा दया, दान, क्षमा प्रादि धर्म के प्रगो का वर्णन भक्त कथा कहने से पाहार के प्रति प्रासक्ति बढ़ती करती हुई धर्म की उपादेयता बतलाती है। इसके भी चार हैं फलतः साधु म्वादु बन जाता है और उसकी इन्द्रिया भेद है-पाक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेगनी और निवेदनी । शिथिल हो जाती हैं। वह पाहार के ग्रहण प्रादि के नियमो
श्रोता को मोह से हटाकर तत्त्व की ओर आकर्षित का प्रतिपालन नही कर सकता प्रत संयम बिगड़ जाता है ।
करने वाली कथा को पाक्षेपणी कथा कहते है । श्रोता को देश कथा के भी चार भेद है। विधि कथा (देश ।
कुमार्ग से सन्मार्ग में लाने वाली कथा विक्षेपणी कथा है। विशेष के भोजन, मणि भूमि मादि की रचना का वर्णन
जिस कथा द्वारा विपाक की विरसता बताकर श्रोता मे करना) विकल्पकथा (देश विशेष मे धान्यकी उत्पत्ति, वहाँ
वैराग्य उत्पन्न किया जाय, वह मवेगनी कथा है । इहलोक के कूप, सरोवर, देवकुल, भवन मादि का वर्णन करना)
और परलोक मे पाप, पुण्य के शुभाशुभ फल को बताकर छंद कथा (देश विशेष की गम्य-अगम्य विषयक चर्चा)
ससार से उदासीनता उत्पन्न कगने वाली कथा निर्वेदिनी नेपथ्य कथा (देश विशेष के स्त्री पुरुपों के स्वाभाविक वेश
कथा है। इनमे धर्म कथा का विवेचन और उपदेशन ही तथा शृगार आदि का वर्णन)
प्रधानतया किया जाता है, क्योकि इन कथानो में देश कथा करने से विशिष्ट देश के प्रति राग या रुचि
अध्यात्म भावो को बल प्रदान किया गया है और तथा दूसरे देश के प्रति अरुचि होती है। राग द्वेप से कर्म
मामारिक प्रवृत्तियों को रोका गया है । विकथा का महत्व बध होता है और पक्ष-विपक्ष को लेकर झगडा खडा हा भी कम नही है। मामाजिक याथिक एव मास्कृतिक दृष्टि सकता है।
मे अध्ययन करने पर विकथा वैभवपूर्ण ऐहिक जीवन की गज कथा के भी चार भेद है-प्रतियान कथा (राजा वैविध्य पूर्ण झा की प्रस्तुत करती है। के नगर प्रवेश तथा उम ममय की विभूति का वर्णन जैन कया के उन विभिन्न रूपो को इस प्रकार दर्शाया करना) निर्यागा कथा (राजा के नगर से निकलने की जा सकता हैबात करना तथा उस समय के ऐश्वर्य का वर्णन करना)
जैन-कथा-साहित्य के प्रकार , बलवाहन कथा (राजा के प्रश्य, हाथी आदि सेना नया रथ प्रादि वाहनो के गुण और परिमाण प्रादि का वर्णन करना) कोप-कोठार-कथा (राजा के खजाने और धान्य (अ) कथा
(ब) विकथा प्रादि के कोठार का वर्णन करना)
(१) अर्थकथा (२) धर्मकथा (३) कामकया गजकथा करने से श्रोता गजपुरुष के मन में साधु के बारे में सदेह उत्पन्न हो सकता है और इसके सुनने मे दीक्षित साध को भुक्त भोगों का स्मरण हो मकता है। १. प्राक्षेपणी २. विक्षेपणी ३. मंदिनी ४ निवेदिनी जिमसे सयम मे बाधा उपस्थित हो सकती है।
प्राध्यात्मिक महत्व हमने ऊपर जिन विकथा के भेदोपभेदो का वर्णन किया है उनका धामिक एव चारित्र-दृष्टि से भले ही निषध .
१. स्त्रीकथा २. भक्तकथा ३.देशकथा ४. गजकथा किया गया हो पर सामाजिक और सास्कृतिक दृष्टि से इन कथानो का बड़ा महत्व है। धर्म के रग का प्रावरण १. जातिकथा १. पावापकथा १. विधिकथा १.अतियानकथा उतारकर यदि इन कथाम्रो का समाज-शास्त्रीय अध्ययन २. कुलकथा २. निर्वापकथा २. विकल्पकथा २. निर्याणकथा किया जाय तो एक वैभवपूर्ण सास्कृतिक युग का पता लग
३. रूपकथा ३. प्रारंभकथा ३. छदकथा ३. बलवाहनकथा
४. वेशकथा ४. निष्टानकथा ४. नेपथ्यकया ४. कोपकोटार सकता है।
कथा विकथा की विपरीत कथा धर्म कथा कहलाती है।
सास्कृतिक महत्व