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११॥
भनेकाल
जुवा को मनोविनोद का साधन माना गया है, अतः इसकी अवगुणों की पहचान । गणना कलापों में होती है।
२६. पुरुषलक्षण-पुरुषों की जाति और उनके गुण११. जनवाद-मनुष्य के शरीर, रहन-सहन बात- अवगुणों की पहचान । चीत, खान-पान मादि के द्वारा उसका परीक्षण करना कि ३०. हयलक्षण-घोड़ों की परीक्षा तथा उनके शुभायह किस प्रकृति का है और किस पद या किस कार्य के शुभ लक्षणों का परिज्ञान । लिए उपयुक्त है।
३१ गजलक्षण-हाथियों की जातियों तथा उनके १२. प्रोक्षत्व वाद्य विशेष की कला ।
शुभाशुभ की जानकारी। १३. अर्थपद-प्रर्थशास्त्र की जानकारी। इसके अन्त- ३२ गोलक्षण-गायों की जानकारी। गंत रत्नपरीक्षा और धातुबाद ये दोनों ही सम्मिलित हैं। ३३. कर्कटलक्षण-मुगों की पहचान और उनके शुभा
१४. दकमृत्तिका जलवाली मिट्टी का परीक्षण किस शुभ लक्षणों का परिज्ञान । स्थान में जल है और किस स्थान में नहीं, यह मिट्टी के ३४. मेढ़लक्षण-मेढ़े की पहचान और शुभाशुभ परीक्षण से अवगत कर लेना।
लक्षणों का परिज्ञान । १५. अन्नविधि-भोजन निर्माण करने की कला, ३५. चक्रलक्षण-चक्र परीक्षा और चक्र सम्बन्धी विविध प्रकार के खाद्यों को तैयार करना, इस कला का शुभाशुभ ज्ञान । उद्देश्य है।
३६. छत्रलक्षण-छत्र परीक्षा और छत्र सम्बन्धी १६. पानविधि-शरवत, चाय, पानक मादि विभिन्न शुभाशुभ ज्ञान । प्रकार के पेय पदार्थ तैयार करने की कला।
३७. दण्डलक्षण-दण्ड परीक्षा और दण्ड सम्बन्धी १७. वस्त्रविधि-वस्त्र निर्माण की कला।
शुभाशुभ ज्ञान। १८. शयनविधि-शय्या निर्माण तथा शयन सम्बन्धी ३८. असिलक्षण-असि परीक्षा और प्रसि सम्बन्धी अन्य प्रावश्यक बातों की जानकारी।
शुभाशुभ ज्ञान । १६. प्रार्या-प्रार्या छन्द के विविध रूपो की जान- ३९. मणिलक्षण-मणि, हीरा, रत्न. मुक्ता प्रादि की कारी।
परीक्षा। २०. प्रहेलिका-पहेली बूझने की योग्यता।
४०. काकिणी लक्षण-सिक्को की जानकारी। २१. मागधिका~मागणी भाषा और साहित्य की ४१. चर्मलक्षण-चर्म की परीक्षा करने की जानजानकारी।
कारी। २२. गाथा-गाथा लिखना और समझना ।
४२. चन्द्रचरित-चन्द्रमा की गति, विमान एव अन्य २३. श्लोक-इलोक रचना करना और समझना। तविषयक जानकारी।
२४. गन्धयुक्ति-इत्र, केसर, कस्तूरी मादि मुगन्धित ४३. सूर्यचरित-सूर्य की गति, विमान एव अन्य पदार्थों की पहचान और उनके गुगदोषों का परिज्ञान । तद्विषयक जानकारी।
२५ मधुसिक्थ- मोम या पालता बनाने की विधि ४४. राहुचरित-राहु ग्रह सम्बन्धी जानकारी । की जानकारी।
४५. ग्रहचरित-अन्य समस्त ग्रहो की गति, प्रादि २६. पाभरणविधि-माभूषण निर्माण और धारण का ज्ञान। करने की कला ।
४५. सौभाग्यकर-सौभाग्य सूचक लक्षणों की जान२७. तरुणपरिकर्म-पन्य व्यक्तियों को प्रसन्न करने कारी। की कला।
४७. दौर्भाग्यकर-दुर्भाग्य सूचक चिह्नों को जान२८. स्त्रीलक्षण-नारियों की जाति और उनके गुण कारी।