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सस्कृत अंग प्रबन्ध काव्यों में प्रतिपारित शिक्षा-परति
११.
साहूकारो के यहाँ कुछ ही दिनो तक रहती थी। शिक्षक
मष्टावश लिपिनायो, दर्शयामास पाणिना। से मनमुटाव होने पर या शिक्षा के ममाप्त हो जाने पर अपसम्पन समारया ज्योतिरूपा खिता। किसी से शिक्षक के ही रुष्ट होकर चले जाने पर प्रध्ययन
वही ११ क्रम टूट जाता था।
७२ कलामों की शिक्षा भरत को प्राप्त हुई। गजसुयोग्य माता-पिता भी अपने बच्चो को स्वयं शिक्षा लक्षण, प्रश्वलक्षण, स्त्रीलक्षण, पुरुषलक्षण प्रादि की शिक्षा देने थे। ग्रादिदेव ऋषभ ने अपने पुत्र भरन, बाहदली एव पाहवाल का पार गाणत तथा अठारह प्रका कन्यायो को स्वथ ही उनकी बुद्धि और प्रतिभा के अनुमार '
, की शिक्षा ब्राह्मी को प्राप्त हुई। शिक्षा दी थी।
पमानन्दकाव्य में भी भरत को बहत्तर कलानों की
शिक्षा प्राप्त होने का निर्देश है। ये कलाएं निम्न प्रकार पाठ्यक्रम और शिक्षा के विषय काव्य-ग्रन्थो में पाठ्य ग्रन्थो के विषय में एकरूपता नही ,
१ लेख-सुन्दर और स्पष्ट लिपि लिखना तथा मिलती है और न पात्रो के अध्ययन का क्रम ही एक रूप प
प ने भाव और विचारो sasaram में उपलब्ध है। अतः शिक्षा के विपयो पर क्रमबद्ध रूप में लेखा प्रकाश डालना कुछ कठिन सा है। पाश्वनाथचरित मे
२. गणित-प्रकगणित, बीजगणित और रेखागणित वजनाभ की शिक्षा का निर्देश करते हुए दो प्रकार की कार शिक्षा बतलायी गयी है-शस्त्र और शास्त्र । शास्त्रविद्या
३. रूप-चित्रकला का ज्ञान-इस कला में पूलि. में सर्वप्रथम व्याकरण के अध्ययन का जिक्र किया है
चित्र मादृश्यचित्र और रस चित्र से तीन प्रकार के त्रि गुण और वृद्धि सज्ञा से सहित, श्रेष्ट सन्धिज्ञायक सूत्रो से
पाते है। प्रथित और भाषा को सीखने मे कारण व्याकरण का
४. नाट्य-नाटक लिखने और खेलने की कला । अध्ययन किया१" शत्रुञ्जय काव्य मे शास्त्रविद्या के
इम कला मे सुरताल प्रादि की गति के अनुमार अनेक विध अन्तर्गत वेद, वेदाग कौटिल्य का अर्थशास्त्र एवं काव्यकला
नृत्य के प्रकार सिम्बलाये जाते है। आदि की गणना की है । इमी काव्य में ऋषभदेव अपने
५ गीत-किस समय कौन सा स्वर अलापना चाहिए, पुत्र और पुत्रियों को निम्नलिखित विषयो को शिक्षा देने
अमुक स्वर को अमुक समय पर अलापने मे क्या प्रभाव हुए दृष्टिगोचर होते है।
पडता है? इन ममस्त विषयों की जानकारी परिगणित मध्यजीगपदीशोऽपि, भरतं ज्येष्ठनन्दनम् । द्वासप्ततिकलाकाडं, सोऽपिबन्धन्निजान्परान् ।। ६. वादित-मगीत के स्वरभेद और ताल प्रादि के
शत्रु ३।१२६ अनुसार वाधकला का परिज्ञान । लमणानि गजाश्वस्त्रीपुंसामोशस्वपाठयस् ।
७ पुष्करगत-बांसुरी पोर मेरी प्रादिके वादन की सुतं च बाहुबलिनं सुन्दरों गणितं तथा।।
कला। वही ३३१३०५. स्वग्गत-पड़ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम,
धवन और निषाद का परिज्ञान । १ गुणवत्पतिपन्न साधुसन्धिं प्रथमोदीरित वृद्धिभावंशुखम।।
१. समताल--वाद्यों के अनुसार हाप था परो की प्रथत. पितुराज्ञयाध्यगीष्ठ स्वसम व्याकरण सवत्तचौलः॥
पाव ५४ पात का साधना। २. वेदवेदाङ्गविज्ञानन् कौटिल्यकुशला कलाम् ।
१०. घृत-जुवा खेलने की कला। प्राचीनकाल में मोऽयंते कार्यतो लोक. कन्दमूलफलाम्बुभुक् ॥ १. प्राविमं वयधिकसप्तति कला........... पदमानन्द,
शत्रु० १३३४५२ बड़ौदा, सन् १९३२ ई., १०७६