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अत्यन्त कलात्मक ढंग से समावेश कर कुशल कलाकार ने चरनी कार्य चतुरता का परिचय भी दिया है ।२ प्रशान्त मूर्ति के वक्षस्थल पर श्रीवत्स प्रतीक है, । (चित्र 1) २. तीर्थकर प्रतिमा
तीर्थकर की यह द्वितीय प्रतिमा जो ६ फुट के लगभग है, इस समय वहाँ के पंचायती कार्यालय के समीप स्थित है। उपर्युक्त प्रतिमा की भाँति इसमें भी तीर्थंकर कायोस्वर्ण मुद्रा में खड़े हैं। मूर्ति के शोध के पीछे बनी प्रभावती आदि भी सहित हो गई है। इनके दोनों ही मोर कायोत्सर्ग मुद्रा मे सड़े तीर्थपुरों के मध्य ध्यान मुद्रा में बैठे अन्य तीबंकुरों के लघु चित्रण उत्कीर्णित है। मुख्य प्रतिमा के पैरों के पास चवरधारी सेवक उपस्थित हैं। (चित्र II)
३. पार्श्वनाथ
जैनियों के तेईसवे तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की यह प्रतिमा मित्र के नीचे सर्प के सात फर्मों की छाया में कायोत्सर्ग मुद्रा मे खडी है । सर्प के फण, भगवान् का मुख तथा उनके हाथो की उगनियाँ प्रावि टूट गये है। शीश के दोनो ओर उड़ते हुए मालाधारी गन्धवं है जिनके ऊपरी एवं निचले भागो में ध्यानस्थ तीर्थकुरो की लघु प्रतिमाएँ है। पैरों के समीप पबरधारी सेवको के साथ उनके यक्ष तथा यक्षी धरणंन्द्र एव पद्मावती का भी सुन्दर प्रकन दिया गया है। (चित्र III )
४. महेश्वरी
प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ की शासन देवी चक्रेश्वरी की यह अद्वितीय प्रतिमा गन्धाबल से प्राप्त जन प्रतिमाओं में विशेष स्थान रखती है ! प्रस्तुत प्रतिमा के बीस हाथों
२. पटव्य. धाजानुलम्बबाहु. श्रीवत्साङ्गः प्रशान्तमूर्तिश्च । दिग्वासास्तरुणी रूपनांश्च कार्योऽहंता देवः ॥ बृहतसंहिता, ५८, ४५ ।
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मे से अधिकतर हाथ खण्डित हो गये हैं, किन्तु क्षेत्र हाव में अन्य प्रायुषों के सांप दो हाथों में चक्र पूर्ण रूप से स्पष्ट है, जिनके पकड़ने का ढंग विशेष ध्यान देने योग्य है। प्रतिमा अनेक भूषणों से सुसज्जित है। शीश के पीछे प्रभा है जिसके दोनो घोर विद्याधर-युगल निर्मित है। प्रतिमा के ऊपरी भाग मे बनी पाच ताको मे तीर्थपुरों की ध्यानस्थ प्रतिमाएं है। इनके दाहिने पैर के ममीप वाहन गरुड़ अपने बाये हाथ में सर्प पकड़े है तथा बाई घोर एक सेविका की खण्डित प्रतिमा है ! (चित्रVI)
५. अम्बिका
अम्बिका तीर्थङ्कर नेमिनाथ की यक्षिणी है ! प्रभाग्यवश इस सुन्दर एवं कलात्मक प्रतिमा का अब केवल ऊपर का भाग ही शेष बचा है। वह कानो मे पत्र कुण्डल तथा गले में हार पहिने हैं। अम्बिका अपने दाहिने हाथ मे जो पूर्ण रूप से खण्डित हो चुका है। सम्भवतः भ्रात्रलुम्बि पकड़े भी धौर बाया हाथ जिसमे एक बालक था, का कुछ भाग बचा है। मान वृक्ष जिसके नीचे अम्बिका का चित्रण है, पर ग्राम के फलो के साथ उसके खाने वाले बामरी को भी स्पष्ट दिखाया गया है। प्रतिमा के एक दम ऊपरी भाग में शीवा रहित ध्यान की प्रतिमा है जिनके दोनो को भकित किया गया है। सुन्दर रही होगी, इनकी मकती है । (चित्र V. )
मुद्दा मे तीर्थङ्कर घोर मालाधारी विद्याषगे यह मूर्ति पूर्ण होने पर कितनी प्रद केवल कल्पना ही की जा
मक्षेप मे हमने गन्धावन ने प्राप्त कुछ मुख्य प्रतिमात्रों का वर्णन किया है। गन्धावल की पंचायत के लोगो मे बडा उन्माह है कि उनके ग्राम मे सरकार की सहायता से एक स्थानीय मग्रहालय खोला जाये जिसमें कि हम स्थल की प्रतिमाओं का भली भांति संरक्षण एवं प्रदर्शन हो सके ।
३. द्रष्टव्य - बी० मी० भट्टाचार्य, जैन भाईक्नोग्रेफी, पृष्ट १२१-१२२ चित्र XII ।