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चातुर्मासयोग
विदुषी है। उसने धनेक शास्त्रों का पध्ययन किया है। प्रत्येक तीर्थकर की माता देवियों के प्रश्नों का उत्तर देती है । ममस्यापूर्ति करती है और पहेलियाँ भी बूझती हैं । अतः इस प्रकार का ज्ञान वैदुष्य के बिना सम्भव नही है २ । स्पष्ट है कि नारी शिक्षा का प्रचार सस्कृत काव्यों के समय मे था ।
१२. शान्तिनाथ चरित वाराणमी, वि० नि० सं० २४३०
२. अथ स्वपुत्री कनकचिय दिया रुपापिनाम्नापि ममायं नृपः तदेव ताभ्यामबलागुणोज्जवला १।१२१-२२ प्रमोद नाटक मार शिक्षणं ॥ शान्तिनाथ चरित, वाराणसी, बी०नि० ० २४३७ २०७१
२. वीरनन्दीकृत चन्द्रप्रभ चरित, बम्बई १६।७० धर्मशर्माभ्युदय, बम्बई] सन १६३० ई० पञ्चम सर्ग प्रमय कविकृत व मान चरित, सोलापूर १७१३२-६०
चातुर्मास योग
पं० मिलापचन्द कटारिया
इस विषय मे प० मासावरजी ने धनगारधर्मामृत अध्याय में इस प्रकार लिखा है
ततश्चतुर्दशीपूर्वरात्रे सिद्धमुनिस्तुती । चतुर्वेद परीत्यात्यादत्यभवती स्तुतिम् ॥ ६६॥ शान्तिभक्तियोस्तु गृह्यताम् ।
कृष्णचतुर्वश्या पाचाद्रात्रौ च मुच्यताम् ॥६७॥ अर्थ-उसके बाद प्रपाद मुक्ता चतुर्दशी को रात्रि के प्रथम पहर में मिद्ध भक्ति और योग भक्ति करके चारों दिशाओ मे प्रदक्षिणा पूर्वक एक-एक दिशा मे सपुचैन्यभक्ति पढते हुए तथा पचगुरुभक्ति धौर मातिभक्ति पढ़ते हुए वर्षायोग ग्रहण करे । और इस विधि मे कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि के चौथे पहर मे वर्षा योग को समाप्त करे |
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दमितार अपनी पुत्री
कनकधो की मृत्य संगीत की शिक्षा के लिए किराती एव बावरी के वेषधारी धनन्तवीर्य को सौंपता है। इससे स्पष्ट है कि नारी शिक्षा में नृत्य श्रौर मंगीत की शिक्षा मुख्य श्री ३ ।
मांस वासोऽपर्वत्र योगक्षेत्र व्रजेत्। मार्ग ती पावशादपि न संयंत् ॥ नभश्चतुर्थी तथाने कृष्ण पंचमीम् । याग करेत् ॥६६॥ युग्मम्
अर्थ - चतुर्मास के पलावा हेमतादि ऋतुमो मे मुनि लोग एक स्थान में एक मास तक ठहर सकते है । प्राषाढ़ मास मे श्रमण संघ वर्षायोग स्थान का चला जाये और मन का महीना बोनने ही वर्षायोग स्थान को छोड़ दे । यदि प्रापाठ के महीने में वर्षायोग स्थान में न पहुँच मके तो कारणवश भी श्रावणकृष्णा चतुर्थी का उच न करें। अर्थात् जहाँ चातुर्मास करना ही उस स्थान में मावरण कृष्णा चौथ तक अवश्य २ पहुँच जाये । तथा कार्तिक शुक्ला पथमी के पहिले प्रयोजनवा भी वर्षायोग स्थान को न छोडे । वर्षायोग के ग्रहण विसर्जन का जो समय यहाँ बताया गया है उसका दुनिवार उपसर्गादि के कारण यदि उल्लघन करना पड़े तो उसका प्रायश्चित लेवे ।
योगतिको
सिद्धनिर्वाणान्तयः । प्रत्या बोरनिर्वाण इत्यादिना ॥७०॥
अर्थ- कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि के पौधे पहर मे वर्षायोग का निष्ठापन किया जाता है। जैसा कि