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मोकान्त
जीवन के साथ ही उनके पूर्व भवों, प्रासंगिक विभिन्न उसकी मूल चेतना कथा न होकर कार्य-व्यापार होता है, घटनाओं, प्रधान्तर कथानों तथा जीवन से सम्बद्ध विभिन्न जिसमें नायक का प्रभावशाली चरित गुम्फित रहता है। कार्य व्यापारों का प्रतिशयोक्ति पूर्वक वर्णन रहता है। परन्तु चरितकाव्य में किसी एक महापुरुष का चरित
डा. शम्भूनाथ सिंहने अपभ्रश काव्यों की दो शैलियाँ पौराणिक शैली में या अन्य किसी शैली में वर्णित रहता
मानी हैं-पौगणिक और रोमाचक । इन दोनों शलियों है। चरितकाव्य मे नायक के सम्पूर्ण जीवन की विभिन्न
मे लिखे गये काव्यों को चरितकाव्य कहा गया है। संस्कृत घटनाग्रो तथा संघर्षों का वर्णन होता है। इसलिए प्राचार्य
के चरितकाव्य चारो शंलियों (शास्त्रीय, पौराणिक, रोमां
। मानन्दबद्धन ने इसे सकलकथा कहा है और प्राचार्य चक एतिहासिक) मे तथा प्राकृत के तीन शैलियो में हेमचन्द्र सकलकथा को ही चरितकाव्य कहते हैं। प्रा० परन्तु तथ्य यह है कि अपभ्रश के चरितकाव्य आधिकतर हरिभद्र सूरि रचित "णेमिणाहचरित" चरितकाव्य है।
पौराणिक शैली में लिखे गये है और कथाकाध्य रोमांचक किन्तु उसके अन्तर्गत वणित सनत्कुमार की कथा-कथा है
बोली मे । "विलासबई कहा" रोमाचक शैली में लिखा जिसे खण्डकथा कहा जा सकता है। प्रतएव किसी भी हुमा उत्कृष्ट काव्य है। यद्यपि शैली ही भेदक-रेखा नहीं रचना के पीछे 'चरिउ", "कहा", "पुराणु" या "कम्ब"
मानी जा सकती है पर कही कही शैलीगत यह भन्तर जडा होने से वह उस कोटि की रचना नही मानी जा
पवश्य मिलता है। अपभ्रंश के अधिकतर काव्य पौराणिक
शैली में ही लिखे गये हैं । इसलिए कथाकाव्यो के चरितसकती है। और इसलिए पुराण नाम से प्रचलित कुछ
कान्यो की सख्या अधिक है। संक्षेप में, चरितकाव्य मे काव्य ग्रन्थों को चरितकाव्य ही माना जाना चाहिए;
किसी महापुरुष के सम्पूर्ण जीवन का विस्तृत वर्णन रहता पौराणिक नहीं। उदाहरण के लिए-कवि पपकीति
है। जब कि कथाकाव्य का नायक या नायिका कोई भी विरचित "पार्श्व पुराण" अठारह सन्धियों में निबद्ध होने
साधारण पुरुष या नारी हो सकती है। चरितकाध्य में पर भी केवल एक महापुरुष तीर्थकर पार्श्वनाथ का चरित
प्रादर्श की प्रधानता रहती है और कथाकाव्य में यथार्थ वणित होने के कारण चरितकाव्य ही कहा जायगा । इसी
की । यद्यपि दोनों में ही नायक या नायिका के असाधारण प्रकार जयमित्र हल्ल के "वडढमाण कच्च" और "मरिल
कार्यों का वर्णन मिलता है परन्तु एक मे वह देवी संयोग मा'कब" काध्य सज्ञक होने पर भी चरितकाव्य है। और
और धार्मिक विश्वास से सम्बद्ध होता है और दूसरे मे 'पउमसिरिचरिउ" के पीछे चरित शब्द जुड़ा हुमा होने
प्रतिलौकिक एव असंभव घटनाभों से सबंधित। इसलिए से वह चरितकाव्य न होकर कथाकाव्य है। वस्तुत:
। वस्तुतः परितकाव्यों को वस्तु पौर नायक मे प्रादर्श चरित्रो की पराणकाम्य की भांति कथा पौर चरित तथा कथाकाव्य
प्रधानता रहती है। और उनके जीवन की सिद्धि तथा और चरितकाव्य में कई बातों में अन्तर है। अर्थ
पूर्णता का वर्णन किया जाता है। प्रतएव चरितकाव्य का प्रकृतियाँ, कार्यावस्थाएं, नाटकीय सन्धियां, कार्यान्विति
नायक लौकिक जीवन की सीमाओं से ऊपर असाधारण तथा कथा-तत्त्वों के संयोजन मे इन दोनों मे बहत भेद
गुण, शक्ति, ज्ञान प्रादि से समन्वित पूर्ण पुरुष के रूप में मिलता है। यथार्थ में तो चरित लोक में देखा जाता है,
चित्रित किया जाता है। वास्तव में चरितकाव्य पुराणकाव्य में तो वस्तु ही प्रधान होती है परन्तु चरितकाव्य मे
काव्य से विकसित हुआ है इसलिए पौराणिक पुरुष के रूप
में उमका सम्भावित तथा प्रकल्पित रूप भी वणित १. "सकलकथेति चरितमित्यर्षः ।" काव्यानुशासन ८,
रहता है । कथाका व्य मे भले ही भादर्श पुरुष का जीवनकी वृत्ति।
वर्णन हो; परन्तु पूर्ण पुरुष के रूप में उसका चित्रण नहीं २. ग्रन्थान्तरप्रसिद्ध यस्यामितिवृत्तमुच्यते विबुधः ।
होता। और फिर चरितकाव्य की कथा भी अधिकतर मध्यादुपान्ततो वा सा खण्डकथा यथेन्दुमती । वही . ३.विशेष दृष्टव्य है-"भविष्यत्तकहा और मपभ्रंश- ४. हिन्दी महाकाव्य का स्वरूप विकास-डा.शम्भूनाथ कथाकाव्य" शीर्षक लेखक का शोध-प्रबन्ध ।
सिंह, पृ० १७४ ।